अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां मौजूद यूरोपीय शक्तियां आज अपने नागरिकों और स्थानीय कर्मचारियों को निकालने की गतिविधियों को तेज कर दिया है. विदेश मंत्री हेइको मास ने ट्विटर पर कहा कि जर्मनी ने काबुल में अपने दूतावास से दर्जनों राजनयिक कर्मियों को सोमवार से योजनाबद्ध तरीके से निकालने से पहले हवाई अड्डे पर स्थानांतरित किया. विदेश मंत्री हेइको मास ने बिल्ड डेली को बताया, "हम अपने लोगों को तालिबान के हाथों में पड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते."
अधिकारियों ने कहा कि फ्रांस ने हवाई अड्डे के पास एक अस्थायी राजनयिक मिशन भी स्थापित किया है.
ब्रिटेन, इटली, डेनमार्क, स्वीडन और स्पेन सहित नाटो के अन्य सदस्यों ने भी घोषणा की है कि वे अपने दूतावास कर्मियों को निकाल रहे हैं.
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फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा कि वह देश में अभी भी और साथ ही अफगान कर्मचारियों की "सुरक्षा की गारंटी के लिए हर संभव प्रयास" करेंगे. बयान में कहा गया है, "फ्रांस उन कुछ देशों में से एक है जिसने फ्रांसीसी सेना के लिए काम करने वाले अफगानों के साथ-साथ पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कलाकारों और अफगान हस्तियों की रक्षा करने की क्षमता बनाए रखी है."
पेरिस ने अपने मानवाधिकार कार्यों के लिए खतरे में पड़े अफ़गानों का स्वागत करने के लिए "असाधारण प्रयास" करने की कसम खाई है. सरकार ने शुक्रवार को कहा कि देश में फ्रांसीसी संगठनों में कार्यरत 600 से अधिक अफगान अपने परिवारों के साथ फ्रांस पहुंच चुके हैं.
ब्रिटेन अपने लगभग 3,000 नागरिकों को निकालने में मदद के लिए लगभग 600 सैनिकों को तैनात कर रहा है, और प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि काबुल में शेष दूतावास के कर्मचारियों का "विशाल जत्था" यूके लौट आएगा.
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इटली के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि "आपातकालीन निकासी" अभियान शुरू करने के लिए पहला सैन्य विमान आज पहुंचेगा. नॉर्डिक देशों के मंत्रियों ने शुक्रवार को कहा कि डेनमार्क और नॉर्वे अपने काबुल दूतावासों को अस्थायी रूप से बंद कर देंगे, जबकि फिनलैंड 130 स्थानीय अफगान श्रमिकों को वहां से निकालेगा.
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