इस्लामाबाद:
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि सरकार ने उस पत्र को वापस लेने का निर्णय लिया है, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले बंद करने के लिए स्विस प्रशासन को भेजा गया था। इस कदम से जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले फिर से खुल सकते हैं।
न्यायालय ने भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने हेतु अशरफ को 25 सितम्बर तक का समय दे दिया है।
न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने अशरफ के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस पर सुनवाई की।
जियो न्यूज के अनुसार, अशरफ ने कहा कि सरकार ने पूर्व महान्यायवादी मलिक कय्यूम का पत्र वापस लेने का निर्णय लिया है, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान स्विस प्रशासन को लिखा गया था।
प्रधानमंत्री अशरफ मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुए। न्यायालय ने पिछले महीने (27 अगस्त) अशरफ को राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने हेतु तीन सप्ताह का समय दिया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कानून मंत्री फारुक एच. नाइक को निर्देश दिया है कि वह स्विस प्रशासन को भेजे गए उस पत्र को वापस ले लें, जिसमें राष्ट्रपति के खिलाफ सभी मामले बंद करने के लिए कहा गया था।
मीडिया रपट में कहा गया है कि मलिक कय्यूम के पत्र द्वारा जिन मामलों को बंद कर दिया गया है, वे मामले अब खुल सकते हैं, बशर्ते कि स्विस प्रशासन ऐसा करना चाहे।
न्यायालय ने अगली सुनवाई पर प्रधानमंत्री को उपस्थित होने से छूट दे दी। इसके पहले सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि सरकार को हर हाल में 25 सितम्बर तक यह पत्र तैयार करना होगा।
न्यायमूर्ति खोसा ने लम्बे समय से लम्बित मुद्दे के समाधान के लिए अशरफ के प्रयासों की सराहना की।
समाचार पत्र डान के अनुसार, पीठ ने हालांकि कहा कि राय-मशविरे का समय समाप्त हो चुका है और अब सरकार को पत्र लिखने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
न्यायमूर्ति खोसा ने प्रधानमंत्री से कहा कि स्विस प्रशासन को पत्र लिखने में चार बिंदुओं का अनुसरण किया जाए : प्रधानमंत्री पत्र लिखने के लिए किसी को अधिकृत करें, पत्र की सामग्री से न्यायालय संतुष्ट हो, उसके बाद पत्र भेजा जाए और अंत में पत्र भेजने के बाद न्यायालय को सूचित किया जाए।
भ्रष्टाचार के आरोपी जरदारी को 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जरदारी और उनकी पत्नी पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की घर वापसी सुनिश्चित कराने के लिए राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) के तहत छूट दी थी।
जरदारी और भुट्टो पर 1990 के दशक में सीमा शुल्क निरीक्षण करार चाहने वाली कम्पनियों द्वारा प्राप्त लगभग 1.20 करोड़ डॉलर के कथित रिश्वत को ठिकाने लगाने के लिए स्विस खातों का इस्तेमाल करने का संदेह है।
यह एनआरओ राजनेताओं व नौकरशाहों को भ्रष्टाचार के मामलों से छूट देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में इसे अवैध करार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को आदेश दिया था कि जरदारी के खिलाफ मामले को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखा जाए।
गिलानी द्वारा ऐसा करने से इनकार किए जाने के बाद न्यायालय ने उन्हें 26 अप्रैल को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था और 19 जून को प्रधानमंत्री पद के साथ ही संसद सदस्य के रूप में अयोग्य ठहरा दिया था।
न्यायालय ने भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने हेतु अशरफ को 25 सितम्बर तक का समय दे दिया है।
न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने अशरफ के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस पर सुनवाई की।
जियो न्यूज के अनुसार, अशरफ ने कहा कि सरकार ने पूर्व महान्यायवादी मलिक कय्यूम का पत्र वापस लेने का निर्णय लिया है, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान स्विस प्रशासन को लिखा गया था।
प्रधानमंत्री अशरफ मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुए। न्यायालय ने पिछले महीने (27 अगस्त) अशरफ को राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने हेतु तीन सप्ताह का समय दिया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कानून मंत्री फारुक एच. नाइक को निर्देश दिया है कि वह स्विस प्रशासन को भेजे गए उस पत्र को वापस ले लें, जिसमें राष्ट्रपति के खिलाफ सभी मामले बंद करने के लिए कहा गया था।
मीडिया रपट में कहा गया है कि मलिक कय्यूम के पत्र द्वारा जिन मामलों को बंद कर दिया गया है, वे मामले अब खुल सकते हैं, बशर्ते कि स्विस प्रशासन ऐसा करना चाहे।
न्यायालय ने अगली सुनवाई पर प्रधानमंत्री को उपस्थित होने से छूट दे दी। इसके पहले सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि सरकार को हर हाल में 25 सितम्बर तक यह पत्र तैयार करना होगा।
न्यायमूर्ति खोसा ने लम्बे समय से लम्बित मुद्दे के समाधान के लिए अशरफ के प्रयासों की सराहना की।
समाचार पत्र डान के अनुसार, पीठ ने हालांकि कहा कि राय-मशविरे का समय समाप्त हो चुका है और अब सरकार को पत्र लिखने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
न्यायमूर्ति खोसा ने प्रधानमंत्री से कहा कि स्विस प्रशासन को पत्र लिखने में चार बिंदुओं का अनुसरण किया जाए : प्रधानमंत्री पत्र लिखने के लिए किसी को अधिकृत करें, पत्र की सामग्री से न्यायालय संतुष्ट हो, उसके बाद पत्र भेजा जाए और अंत में पत्र भेजने के बाद न्यायालय को सूचित किया जाए।
भ्रष्टाचार के आरोपी जरदारी को 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जरदारी और उनकी पत्नी पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की घर वापसी सुनिश्चित कराने के लिए राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) के तहत छूट दी थी।
जरदारी और भुट्टो पर 1990 के दशक में सीमा शुल्क निरीक्षण करार चाहने वाली कम्पनियों द्वारा प्राप्त लगभग 1.20 करोड़ डॉलर के कथित रिश्वत को ठिकाने लगाने के लिए स्विस खातों का इस्तेमाल करने का संदेह है।
यह एनआरओ राजनेताओं व नौकरशाहों को भ्रष्टाचार के मामलों से छूट देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में इसे अवैध करार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को आदेश दिया था कि जरदारी के खिलाफ मामले को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखा जाए।
गिलानी द्वारा ऐसा करने से इनकार किए जाने के बाद न्यायालय ने उन्हें 26 अप्रैल को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था और 19 जून को प्रधानमंत्री पद के साथ ही संसद सदस्य के रूप में अयोग्य ठहरा दिया था।
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