बीजिंग:
दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) ने दक्षिण चीन सागर में बढ़ते क्षेत्रीय तनावों पर बयान दिया, फिर मेजबान चीन को बुरा लगने के डर से वापस भी ले लिया। दस देशों के संगठन ने मंगलवार रात को ये बयान दिया गया था। चीन में होने वाली चीन-आसियान बैठक के मद्देनजर दिए गए इस बयान में कहा गया था कि समूह दक्षिण चीन सागर में होने वाली घटनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता क्योंकि ये आसियान और चीन के बीच संबंधों और सहयोग के लिहाज से बहुत अहम है। हाल ही में हुए घटनाक्रम में प्रति हम गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं जिनकी वजह से हमारा भरोसा और विश्वास आहत हुआ है और जिससे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र की शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता को खतरा है।
आसियान का ये बयान मलेशिया के विदेशमंत्री ने मंगलवार रात को ऑनलाइन चैट ग्रुप पर दिया था जहां फिर बयान से पीछे हटने का भी वक्तव्य आ गया था। ये अभी स्पष्ट नहीं है संशोधित बयान जारी किया जाएगा या नहीं जबकि आसियान के सदस्यों जैसे सिंगापुर ने अपनी ओर से जारी बयान में दक्षिण चीन सागर इलाके के बारे में अपनी चिंताएं भी जताईं हैं।
हालांकि मूल बयान में सीधे सीधे चीन पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है, इसमें चीन द्वारा बनाए गए द्वीपों और उन पर हवाई पट्टी आदि बनाए जाने को लेकर मामले की संवेदनशीलता का जिक्र जरूर किया गया है। इन घटनाओं को पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे को मजबूत बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है जिससे कि वहां के भूगोल में परिवर्तन कर सेना को लगाया जा सके। बयान में कहा गया था कि हम असैन्यकरण और जमीन पर कब्जा करने जैसे दावों से बचने पर जोर देते है जिनकी वजह से दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ सकता है।
आसियान का इस कड़ी भाषा वाला क्षेत्रीय मुद्दों पर बयान असामान्य माना जा रहा है जबकि उसमें मलेशिया, वियतनाम, ब्रुनेई , इंडोनेशिया और फिलीपींस भी शामिल हैं जो दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपने दावे कर रहे हैं जिन पर चीन भी अपना दावा जता रहा है। समूह में कंबोडिया और लाओ जैसा छोटा देश भी शामिल है जिसपर चीन का खासा प्रभाव है। चीन दक्षिण चीन सागर मुद्दे को द्वपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाना चाहता है न कि आसियान के मंच या किसी अन्य मध्यस्ता के जरिए।
आसियान का ये बयान मलेशिया के विदेशमंत्री ने मंगलवार रात को ऑनलाइन चैट ग्रुप पर दिया था जहां फिर बयान से पीछे हटने का भी वक्तव्य आ गया था। ये अभी स्पष्ट नहीं है संशोधित बयान जारी किया जाएगा या नहीं जबकि आसियान के सदस्यों जैसे सिंगापुर ने अपनी ओर से जारी बयान में दक्षिण चीन सागर इलाके के बारे में अपनी चिंताएं भी जताईं हैं।
हालांकि मूल बयान में सीधे सीधे चीन पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है, इसमें चीन द्वारा बनाए गए द्वीपों और उन पर हवाई पट्टी आदि बनाए जाने को लेकर मामले की संवेदनशीलता का जिक्र जरूर किया गया है। इन घटनाओं को पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे को मजबूत बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है जिससे कि वहां के भूगोल में परिवर्तन कर सेना को लगाया जा सके। बयान में कहा गया था कि हम असैन्यकरण और जमीन पर कब्जा करने जैसे दावों से बचने पर जोर देते है जिनकी वजह से दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ सकता है।
आसियान का इस कड़ी भाषा वाला क्षेत्रीय मुद्दों पर बयान असामान्य माना जा रहा है जबकि उसमें मलेशिया, वियतनाम, ब्रुनेई , इंडोनेशिया और फिलीपींस भी शामिल हैं जो दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपने दावे कर रहे हैं जिन पर चीन भी अपना दावा जता रहा है। समूह में कंबोडिया और लाओ जैसा छोटा देश भी शामिल है जिसपर चीन का खासा प्रभाव है। चीन दक्षिण चीन सागर मुद्दे को द्वपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाना चाहता है न कि आसियान के मंच या किसी अन्य मध्यस्ता के जरिए।
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