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This Article is From Dec 22, 2014

खुफियागिरी के इतिहास में सबसे बड़ी चूक का नतीजा था मुंबई हमला : रिपोर्ट

खुफियागिरी के इतिहास में सबसे बड़ी चूक का नतीजा था मुंबई हमला : रिपोर्ट
फाइल फोटो
न्यूयॉर्क:

मुंबई हमले 'खुफियागीरी के इतिहास में सबसे गंभीर चूकों में से एक' के परिणाम के चलते हुए जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भारत की वित्तीय राजधानी पर हमले को टालने के लिए अपने हाईटेक निगरानी तंत्र द्वारा जुटाई गई जानकारी को एक साथ रखने में नाकाम रहीं।

न्यूयॉर्क टाइम्स, प्रोपब्लिका और पीबीएस सीरीज 'फ्रंटलाइन' की 'इन 2008 मुंबई किलिंग्स, पाइल्स ऑफ स्पाई डाटा, बट एन अनकंप्लीटेड पजल' शीषर्क वाली एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है, 'मुंबई हमलों का छिपा इतिहास संवेदनशीलता, कंप्यूटर निगरानी की शक्ति और इंटरसेप्ट्स के आतंकवाद रोधी हथियार के रूप में होने का खुलासा करता है।'

इस विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है, 'आगे जो हुआ, वह खुफियागीरी के इतिहास में सर्वाधिक घातक चूकों में से एक है। तीन देशों की खुफिया एजेंसियां अपने हाईटेक निगरानी और अन्य उपकरणों द्वारा जुटाई गइ सभी जानकारी को एकसाथ रखने में नाकाम रहीं, जिनसे आतंकी हमले को रोका जा सकता था, जो इतना भयावह था कि इसे अक्सर भारत का 9/11 कहा जाता है।'

रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे बड़ी खुफिया विफलता के उदाहरणों में से एक में भारतीय और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों ने 26/11 की योजना बनाने वाले और पाकिस्तान आधारित लश्कर ए तैयबा आतंकी समूह के प्रौद्योगिकी प्रमुख जरार शाह की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखी थी, लेकिन वे हमलों से पहले 'कड़ियों को नहीं जोड़ पाईं।' मुंबई हमलों में छह अमेरिकियों सहित 166 लोग मारे गए थे।

इसमें अभियान पर जानकारी देने वाले एक पूर्व अधिकारी के हवाले से कहा गया है, 'सिर्फ ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां ही उस पर निगाह नहीं रख रही थीं। शाह पर इसी तरह की नजर एक भारतीय खुफिया एजेंसी भी रख रही थी।'

रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि अमेरिका दोनों देशों की एजेंसियों के प्रयासों से अनजान था, लेकिन इसने अन्य इलेक्ट्रानिक तथा मानव स्रोतों से साजिश के कुछ संकेत पकड़े थे, और भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को हमले से महीनों पहले कई बार आगाह किया था।

इसमें हमलों से महीनों पहले अमेरिका, भारत और ब्रिटेन की एजेंसियों द्वारा जुटाई गई खुफिया सूचना के संदर्भ में पूर्व सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के हवाले से कहा गया है कि 'किसी ने भी समूची तस्वीर को साफ नहीं किया।'

हमलों के समय तत्कालीन विदेश सचिव रहे मेनन ने कहा, 'न अमेरिकियों ने, न ब्रिटिशों ने और न भारतीयों ने.. जब गोलीबारी शुरू हो गई तो हर किसी ने सूचना साझा करनी शुरू कर दी।'

हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका से अलर्ट के बावजूद भारत साजिश का पता नहीं लगा पाया। अमेरिकी जिन महत्वपूर्ण संकेतों से चूक गए उनमें एक पाकिस्तानी-अमेरिकी डेविड हेडली की गतिविधियों से संबंधित था, जिसने मुंबई हमलों के लिए लक्ष्य तलाशे थे और वह साजिशकर्ताओं के साथ ईमेल्स के जरिए संपर्क में था। लेकिन अमेरिका 2009 के अंत में शिकागो में उसकी गिरफ्तारी तक उसकी गतिविधियों से अनजान रहा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की आतंकवाद रोधी एजेंसियां भी हेडली की असंतुष्ट पत्नी से मिली जानकारी पर काम करने में विफल रहीं। हेडली की पत्नी ने मुंबई हमलों से काफी पहले अमेरिकी अधिकारियों को बताया था कि उसका पति एक पाकिस्तानी आतंकवादी है और वह मुंबई में रहस्यमय मिशन चला रहा है।

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