सोमवार 30 मार्च को अमेरिका के इंडियाना स्टेट में भारतीय मूल की अमेरिकी महिला पूर्वी पटेल को कन्या भ्रूणहत्या मामले में 20 साल जेल की सज़ा सुनाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। पूर्वी पटेल पर अपने अजन्मे बच्चे की देखभाल न करने का आरोप लगा था, जिसके एवज़ में उसे 30 साल की सज़ा सुनाई गई जिसे बाद में कम कर के 20 साल कर दिया गया।
मानवाधिकार संगठनों और प्रेगनेंट महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाली संस्था के अनुसार देश में गर्भपात निरोधी कानून का इस्तेमाल प्रेगनेन्ट महिलाओं के ख़िलाफ़ किया जा रहा है।
पटेल को जुलाई 2013 में उस वक्त़ गिरफ्तार किया गया था जब वे मिशावाका शहर के सेंट जोसेफ रीजनल मेडिकल सेंटर में थीं और उनके शरीर से काफी ज्य़ादा ब्लीडिंग हो रही थी। इलाज के दौरान पूर्वी ने डॉक्टरों को बताया कि उनका गर्भपात हुआ है और उन्होंने मृत भ्रूण को डस्टबीन में फेंक दिया।
कोर्ट में पूर्वी के पक्ष में कहा गया कि भ्रूण की उम्र 23-24 हफ्त़े की थी, लेकिन सरकारी वकील का कहना था कि भ्रूण की उम्र 25 सप्ताह की थी और उसने जनम लेते ही दम तोड़ दिया था।
पूर्वी के लाख कहने के बाद भी कि उसने एक मृत भ्रूण को जन्म दिया था न कि जीवित बच्चे को, अदालत ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया और उसपर एक ज़िंदा बच्चे की देख़भाल ठीक तरह से नहीं करने का आरोप लगा दिया। अदालत ने इसके अलावा पूर्वी पटेल पर अपने अजन्मे बच्चे की हत्या करने के लिए ऑनलाइन, जानलेवा दवाईयां मंगवाने का भी आरोप लगाया।
हालांकि इसकी पुष्टि टॉक्सिकोलॉजी जांच में नहीं की जा सकी कि उन्होंने उन दवाईयों का सेवन किया था या नहीं।
पूर्वी के पक्ष में ये भी कहा गया कि वे एक रुढ़ीवादी भारतीय परिवार से आती हैं जहाँ शादी से पहले बच्चे को जन्म देना एक कलंक माना जाता है ऐसे में जब वो अपने प्रेमी के बच्चे की माँ बनने वाली थीं तो डर गईं।
स्टेट ऑफ़ इंडियाना के फीटीसाइड लॉ के तहत़ सज़ा पाने वाली पटेल पहली महिला हैं, उनसे पहले चीनी मूल की बी बी शुआई पर केस चला था जब उन्होंने मानसिक बीमारी के कारण, प्रेगनेंसी के दौरान आत्महत्या की कोशिश थी। हालांकि तब शुआई जीवित बच गईं पर उनका अजन्मा बच्चा नहीं बच सका। तब शुआई को भी मेडिकल सहायता मिलने के बजाय उनपर लंबा केस चलाया गया।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के एशियन अमेरिकन विभाग में कार्यरत दीपा अय्यर दोनों मामलों का उदाहरण देते हुए सवाल करती हैं कि दोनों ही मामलों मे पीड़ित महिलाओं के एशियाई मूल के होने से ये साफ़ होता है कि यहाँ उन्हें न्याय देने में भेदभाव किया जा रहा है। दूसरे देशों से यहाँ आई इन प्रवासी महिलाओं के साथ ना सिर्फ़ उनके रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है बल्कि उन्हें वो क़ानूनी और मेडिकल सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं जो यहाँ के मूल निवासियों को मिलती है। ऐसे में उनका कई स्तरों पर शोषण किया जाता है जो पूर्वी पटेल के साथ किया जा रहा है।
The Journal of Health Politics, Policy and Laws 2013 की एक स्टडी के अनुसार पूरे अमेरिका में प्रेगनेंट महिलाओं के ख़िलाफ़ जितने भी मामले दर्ज किए हैं उनमें से 70% ग़रीब महिलाएं हैं और इनमें से 59% अश्वेत महिलाओं के ख़िलाफ़ हैं।
National Asian Pacific American Women's Forum की मीरियम यीयूंग के अनुसार ऐसे में गिरफ़्तार होने या जेल जाने के डर से कई बार ये महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान ज़रूरी मेडिकल सेवाएं लेने नहीं जातीं। इसलिए ज़रूरत प्रेगनेंसी से जुड़े मुद्दों, मानसिक और शारीरिक समस्यायों के बारे में एशियन अमेरिकन कम्यूनिटी की महिलाओं को ज्य़ादा जागरुक करने के अलावा उन्हें बेहतर हेल्थ सुविधाएं मुहैया कराने की है।
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