Supreme Court On Divorce
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6 महीने के इंतजार के बिना तलाक मुमकिन : सुप्रीम कोर्ट
- Monday May 1, 2023
- Reported by: आशीष भार्गव, Edited by: रितु शर्मा
पीठ ने 29 सितंबर, 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा था कि सामाजिक बदलाव में 'थोड़ा समय' लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है.
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ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, CJI बोले- तथ्य के बाद भी हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे
- Friday November 2, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से इंकार किया. CJI रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं को कहा कि आपके पास कोई तथ्य हो सकता है, लेकिन हम दखल नहीं देंगे.
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सुप्रीम कोर्ट बोला: व्यभिचार अपराध नहीं, पति, पत्नी का मालिक नहीं, पढ़ें इस मामले की पूरी टाइमलाइन
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को रद्द कर दिया और अब से यह अपराध नहीं रहा. सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया. मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना. इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा.
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सुप्रीम कोर्ट के ये हैं 5 जज, जिन्होंने समलैंगिकता के बाद अब व्यभिचार को किया अपराध से बाहर
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यभिचार को आपराधिक कृत्य बताने वाले दंडात्मक प्रावधान को सर्वसम्मति से निरस्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने व्यभिचार को रद्द कर दिया और कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार कानून असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यभिचार कानून मनमाना और भेदभावपूर्ण है. यह लैंगिक समानता के खिलाफ है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. बता दें कि इस पीठ ने ही धारा 377 पर अपना अहम फैसला सुनाया था. इससे पहले इसी बेंच ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से अलग किया था. तो चलिए जानते हैं उन पांचों जजों के बारे में...
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हलाला और बहु विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करने वाली महिला पर एसिड अटैक
- Thursday September 13, 2018
- Reported by: कमाल खान, Edited by: सूर्यकांत पाठक
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सरे बाजार डिप्टी गंज पुलिस चौकी के पास तीन तलाक पीड़िता पर एसिड अटैक का मामला सामने आया है. महिला ने अपने देवर पर अटैक का आरोप लगाया है. पुलिस जांच में जुट गई है.
- ndtv.in
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तलाक मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी कानूनी अड़चन को किया समाप्त
- Tuesday September 12, 2017
- Reported by: आशीष भार्गव
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामलों में बड़ी कानूनी अड़चन को खत्म कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अगर परिस्थितियां खास हों तो तलाक के लिए 6 महीने का इंतज़ार अनिवार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य मानने से मना कर दिया है. इस सेक्शन के तहत आपसी सहमति से तलाक के मामलों में भी अंतिम आदेश 6 महीने बाद दिया जाता है. दरअसल सेक्शन 13B(2) में कहा गया है कि पहले मोशन यानी तलाक की अर्ज़ी फैमिली जज के सामने आने के 6 महीने बाद ही दूसरा मोशन हो सकता है.
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6 महीने के इंतजार के बिना तलाक मुमकिन : सुप्रीम कोर्ट
- Monday May 1, 2023
- Reported by: आशीष भार्गव, Edited by: रितु शर्मा
पीठ ने 29 सितंबर, 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा था कि सामाजिक बदलाव में 'थोड़ा समय' लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है.
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ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, CJI बोले- तथ्य के बाद भी हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे
- Friday November 2, 2018
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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से इंकार किया. CJI रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं को कहा कि आपके पास कोई तथ्य हो सकता है, लेकिन हम दखल नहीं देंगे.
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सुप्रीम कोर्ट बोला: व्यभिचार अपराध नहीं, पति, पत्नी का मालिक नहीं, पढ़ें इस मामले की पूरी टाइमलाइन
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को रद्द कर दिया और अब से यह अपराध नहीं रहा. सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया. मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना. इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा.
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सुप्रीम कोर्ट के ये हैं 5 जज, जिन्होंने समलैंगिकता के बाद अब व्यभिचार को किया अपराध से बाहर
- Thursday September 27, 2018
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158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यभिचार को आपराधिक कृत्य बताने वाले दंडात्मक प्रावधान को सर्वसम्मति से निरस्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने व्यभिचार को रद्द कर दिया और कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार कानून असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यभिचार कानून मनमाना और भेदभावपूर्ण है. यह लैंगिक समानता के खिलाफ है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. बता दें कि इस पीठ ने ही धारा 377 पर अपना अहम फैसला सुनाया था. इससे पहले इसी बेंच ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से अलग किया था. तो चलिए जानते हैं उन पांचों जजों के बारे में...
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हलाला और बहु विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करने वाली महिला पर एसिड अटैक
- Thursday September 13, 2018
- Reported by: कमाल खान, Edited by: सूर्यकांत पाठक
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सरे बाजार डिप्टी गंज पुलिस चौकी के पास तीन तलाक पीड़िता पर एसिड अटैक का मामला सामने आया है. महिला ने अपने देवर पर अटैक का आरोप लगाया है. पुलिस जांच में जुट गई है.
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तलाक मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी कानूनी अड़चन को किया समाप्त
- Tuesday September 12, 2017
- Reported by: आशीष भार्गव
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामलों में बड़ी कानूनी अड़चन को खत्म कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अगर परिस्थितियां खास हों तो तलाक के लिए 6 महीने का इंतज़ार अनिवार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य मानने से मना कर दिया है. इस सेक्शन के तहत आपसी सहमति से तलाक के मामलों में भी अंतिम आदेश 6 महीने बाद दिया जाता है. दरअसल सेक्शन 13B(2) में कहा गया है कि पहले मोशन यानी तलाक की अर्ज़ी फैमिली जज के सामने आने के 6 महीने बाद ही दूसरा मोशन हो सकता है.
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