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This Article is From Apr 13, 2015

'अगेंस्ट ऑल ऑड्स' : शिखर पर सानिया मिर्जा

नई दिल्‍ली : सुर्खियां सुर्ख़ हसीना के साथ चलती हैं। तल्ख़ तेवर और बिंदास अंदाज़। 'नोज रिंग' हो या 'टी शर्ट' पर संदेश या फिर उनका स्कर्ट। उनसे जुड़ी हर चीज ख़बर बनती है। इन तमाम बातों और विवादों के बीच ये नहीं छुप पाता कि 28 साल की सानिया मिर्ज़ा टेनिस की भी बेहतरीन खिलाड़ी हैं।

पिछले हफ़्ते डब्ल्यू.टी.ए (वीमेंस टेनिस एसोसिएशन) ने उनकी प्रतिभा पर सबसे बड़ी मुहर लगा दी। डबल्स रैंकिंग में सानिया मिर्ज़ा पहले पायदान पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं।

'जिस खेल को मैं इतना प्यार करती हूं उसमें नंबर-1 बनना सचमुच मेरे लिए असाधारण बात है। उम्मीद है कि इससे सही संदेश जाएगा। लोगों को समझने की ज़रुरत है कि लड़कियां जो करना चाहें करने दिया जाए। अगर दूसरे उन पर भरोसा नहीं करें तो माता-पिता को उन पर यकीन करना चाहिए। साथ देना चाहिए।' नंबर-1 बनने के बाद सानिया ने सीधी बात कही।

सानिया मिर्ज़ा कामयाबी की उस ऊंचाई पर हैं जहां दूर तक कोई भारतीय महिला खिलाड़ी नज़र नहीं आती। डब्ल्यू.टी.ए ख़िताब जीतने वाली पहली भारतीय। सिंगल्स में पहले टॉप 50 और फिर टॉप 30 में पहुंचने वाली पहली भारतीय और ग्रैंड स्लैम जीतने वाली भी पहली भारतीय महिला खिलाड़ी।

2003 में जूनियर विंबल्डन चैंपियन ख़िताब, 26 डब्ल्यू.टी.ए ख़िताब और मिक्स्ड डबल्स में 3 ग्रैंड स्लैम। सिंगल्स में अब तक उनकी सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग रही है 27। लिएंडर पेस और महेश भूपति भी यहां तक नहीं पहुंच पाए हैं। कलाई और दोनों पैरों में सर्जरी के कारण वे टॉप 20 में नहीं पहुंच पायीं। इसके बाद 2012 से उन्होंने डबल्स पर ध्यान देना शुरू किया और 3 साल में ही नंबर-1 बन गईं।

'भारत में महिलाएं खेलों में करियर तलाशने लगी हैं। लेकिन ज़्यादातर अब भी ये ही सोचती हैं कि कई चीजें लड़कियों के लिए नहीं हैं। सभ्यता और संस्कृति इसकी अनुमति नहीं देता। मेरी कामयाबी ये ही कहती है कि लड़की जो करना चाहे वो करने दीजिए। मुझे उम्मीद है कि और भी लड़कियां आगे आएंगी।' कहती हैं सानिया मिर्ज़ा जो पिछले नवंबर में दक्षिण एशिया के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला गुडविल एंबेसडर चुनी जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

सानिया 6 साल से टेनिस खेल रही हैं। शुरुआत में क्ले कोर्ट या हार्ड कोर्ट नहीं था। गोबर के मैदान पर अभ्यास शुरू किया। करियर पटरी पर बढ़ा तो विवादों का भी साथ हो चला। टेनिस कोर्ट पर स्कर्ट पहनने के कारण 2005 में सुन्नी उलेमा बोर्ड ने सानिया के ख़िलाफ़ फ़तवा तक जारी कर दिया।

सानिया को सुरक्षा तक लेनी पड़ी थी। 5 साल पहले 12 अप्रैल 2010 को सानिया मिर्ज़ा ने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी की और ठीक 5 साल बाद 12 अप्रैल के ही नंबर-1 बनी। शादी पर भी कम विवाद नहीं हुए। यहां तक की उनकी देशभक्ति पर भी सवाल उठाए गए। जब उन्हें तेलंगाना का ब्रैंड एंबेसडर बनाया गया तब भी हंगामा हुआ।

लेकिन जैसा की उनकी आने वाली आत्मकथा का नाम है 'अगेंस्ट ऑल ऑड्स', सानिया मिर्ज़ा हर कठिनाईयों पर फ़तह हासिल करती गईं। भारत सरकार ने 2004 में उन्हें अर्जुन और 2006 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाज़ा।

युवा सानिया मिर्ज़ा संदेश वाले अपने टी-शर्ट के लिए हमेशा चर्चा में रहीं हैं लेकिन इन सब में एक स्लोगन खास था जो शायद उनकी शख़्सियत को बयान करता है- 'सभ्य और सुशील लड़कियां इतिहास नहीं लिख सकतीं। आप मुझसे सहमत हो सकते हैं या फिर गलत।'

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