धनंजय का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली नेताओं में शुमार है. उन्होंने दो बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है. उनका जौनपुर की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव है और उन्होंने अपना पहला चुनाव निर्दलीय लड़कर जीता था. इसके बाद 2007 के चुनाव में भी धनंजय ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की, लेकिन इस बार उन्होंने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा.
धनंजय का छात्र राजनीति से भी पुराना नाता रहा है. या यूं कहे कि उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत ही लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की मदद से हुई थी.
2002 में जौनपुर के रारी से विधानसभा चुनावों में लोकजनशक्ति पार्टी ने धनंजय को समर्थन दिया और करीब 27 साल की उम्र में वह विधायक बन गए. इसके बाद उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत अजमाने का फैसला किया, लेकिन वह इस बार जीत दर्ज नहीं कर पाए.
हालांकि 2007 के विधानसभा चुनावों में धनंजय ने शानदार वापसी की और जदयू के समर्थन से दोबारा रारी से चुनाव जीते. धनंजय ने इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर पहली बार सांसद बने. सांसद बनने के बाद उन्होंने रारी की सीट छोड़ी और अपने पिता राजदेव सिंह को चुनाव लड़ाकर विधायक बना दिया.
हालांकि 2011 में धनंजय के बागी सुर को देखते हुए 2011 में मायातवी ने उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया. एक साल बाद मजबूरी में बसपा ने फिर वापस लिया. धनंजय सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव में अब एक बार फिर मल्हनी से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
धनंजय का छात्र राजनीति से भी पुराना नाता रहा है. या यूं कहे कि उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत ही लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की मदद से हुई थी.
2002 में जौनपुर के रारी से विधानसभा चुनावों में लोकजनशक्ति पार्टी ने धनंजय को समर्थन दिया और करीब 27 साल की उम्र में वह विधायक बन गए. इसके बाद उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत अजमाने का फैसला किया, लेकिन वह इस बार जीत दर्ज नहीं कर पाए.
हालांकि 2007 के विधानसभा चुनावों में धनंजय ने शानदार वापसी की और जदयू के समर्थन से दोबारा रारी से चुनाव जीते. धनंजय ने इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर पहली बार सांसद बने. सांसद बनने के बाद उन्होंने रारी की सीट छोड़ी और अपने पिता राजदेव सिंह को चुनाव लड़ाकर विधायक बना दिया.
हालांकि 2011 में धनंजय के बागी सुर को देखते हुए 2011 में मायातवी ने उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया. एक साल बाद मजबूरी में बसपा ने फिर वापस लिया. धनंजय सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव में अब एक बार फिर मल्हनी से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
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