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This Article is From May 16, 2016

रेलवे के सफर की हकीकत कुछ और ही है, सुरेश प्रभु साहब...

रेलवे के सफर की हकीकत कुछ और ही है, सुरेश प्रभु साहब...
संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस से दिल्ली लौटते हुए: ट्रेन के सफ़र के दौरान जनता को बेहतरीन सेवा देने का दावा करने वाली सरकारें एयरकंडीशन्ड कमरों में बैठकर फ़ैसले लेती हैं, और उन्हें मंज़र-ए-आम तक पहुंचाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापनों का सहारा लेती हैं, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही है... फ़िलहाल मैं ज़िक्र कर रहा हूं रेलवे मंत्रालय का... केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु की छवि काम करने वाले मंत्री की है, लेकिन लगता है उनके अधिकारियों ने उन्हें अंधेरे में रखा हुआ है...

मैं 12 मई, 2016 को सम्पूर्ण क्रान्ति एक्सप्रेस रेलगाड़ी से दिल्ली से पटना गया था और अब 15 मई (रविवार) को पटना से नई दिल्ली तक सम्पूर्ण क्रान्ति एक्सप्रेस से ही लौट रहा हूं... जो मंज़र मैं इस ट्रेन के अन्दर देख रहा हूं, रोंगटे खड़े कर देने वाला है... पूरी ट्रेन मुसाफ़िरों से पटी पड़ी है, और सबसे बुरा हाल है जनरल बोगी का... यहां आदमी के ऊपर आदमी बैठा है, बाथरूम में भी लोग बैठे हैं, कोई हिल भी नहीं सकता, जानवरों से बदतर ज़िन्दगी देखने को मिली... पानी पीने और शौचालय जाने तक को मोहताज बैठे हैं लोग...
 

दूसरी तरफ रिज़र्व्ड बोगी का हाल यह है कि रिज़र्वेशन होना, न होना एक बराबर है... यहां भी सीट तो सीट, रास्ते के साथ-साथ बाथरूम तक मुसाफ़िरों से पटे हैं... कोई टेक लगाए खड़ा है तो कोई पूरा परिवार ही रास्ते में बैठा है... अब, रास्ता न होने की वजह से लोग अपने बिलखते बच्चों के लिए पैन्ट्री कार से पानी भी नहीं ला पा रहे हैं, और दूसरी तरफ पैन्ट्री कार के कर्मचारी - पुलिस व टीटी की मिलीभगत से - लिखे दामों से कहीं ज़्यादा वसूली कर सामान बेच रहे हैं...

जब मैं यह देखते-देखते थक गया तो मैंने रेलमंत्री, रेलवे मंत्रालय को ट्वीट किया, उसका जवाब भी आया पीएनआर, लोकेशन मांगा गया... जवाब भी ट्वीट किया गया, लेकिन असर के नाम पर लोकेशन से काफी आगे आ गए... ट्वीट ढाक के तीन पात साबित हुआ... यह असर ज़रूर रहा कि जिस बोगी नंबर 3 का ज़िक्र मैंने किया था, वहां पानी, चाय के साथ-साथ उन्हें बेचने वाले भी लापता हो गए... हम और हमारे साथ बहुत-से लोग पैन्ट्री कार तक पानी के लिए जा नहीं सकते थे, और वे यहां आ नहीं रहे...
 

ट्विटर पर एक्शन की उम्मीद ने अब भी ख़्वाब में जीने को मजबूर किया हुआ है... रात का 1 बज चुका है, और सुबह होने की उम्मीद में, ट्रेन में भरे लोगों के जागने की उम्मीद में, और सबसे बड़ा - पानी मिलने की उम्मीद में - रेलवे का सुहाना सफ़र जारी है...

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