आईआईटी में अपने कमरे में चरखा चलाते हुए संदीप पाण्डेय।
वाराणसी:
बीएचयू आईआईटी के केमिकल इंजीनियरिंग के गेस्ट लेक्चरर मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त संदीप पाण्डेय को टर्मिनेट कर दिया गया है। भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान बीएचयू के डायरेक्टर आफिस में इन दिनों उनके टर्मिनेशन की चर्चा जोरों पर है। आईआईटी बीएचयू के संचालक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर) की मीटिंग में यह मामला उठाया गया था कि पाण्डेय की सर्विसेज को टर्मिनेट कर दिया जाए। उन पर नक्सली गतिविधियों से सम्बद्ध होने के साथ ही निर्भया फिल्म दिखाने की पेशकश भी कारण रहा।
संदीप पाण्डेय ने कहा, आरएसएस की साजिश
उक्त आरोपों के आधार पर आईआईटी बीएचयू से हटाए गए संदीप पाण्डेय जब केमिकल डिपार्टमेंट के अपने कमरे में पहुंचे तो बर्खास्तगी का विरोध करते हुए अपने कमरे में ही गांधी चरखा चलाने लगे। उनके साथ उनके कुछ समर्थक भी थे। इसी दौरान उनके सामने टर्मिनेशन का लेटर भी पहुंचा। उसे उन्होंने रिसीव किया और उसमें लगाए गए आरोपों के बारे में अपनी सफाई भी दी। उन्होंने कहा " मेरे ऊपर आरोप लगा है कि मैं नक्सली हूं और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहता हूं। अगर मेरे ऊपर कोई तथ्य है तो मेरे ऊपर एफआईआर होकर मुकदमा दर्ज होना चाहिए। सिर्फ निकालने से काम कैसे चलेगा। यह आरोप बेबुनियाद है और आरएसएस की साजिश है। इन लोगों को बर्दाश्त नहीं कि मैं यहां रहूं और काम करूं। छात्रों और आसपास के लोगों से संपर्क न करूं, तो निकाल रहे हैं।
कश्मीर, नक्सल और निर्भया पढ़ाना अपराध नहीं
संदीप पाण्डेय पर सिर्फ नक्सल गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप ही नहीं लगा बल्कि इनके ऊपर यह भी आरोप है कि उन्होंने क्लास में बच्चों की नक्सल के टॉपिक पर क्लास ली। इतना ही नहीं कश्मीर भारत का अंग नहीं है, इस पर भी लेक्चर कराया। साथ ही अपनी सोशलिस्ट पार्टी के लिए छात्रों से चंदा भी मांगा। उन्होंने निर्भया की सीडी को आईआईटी के नेट पर डाला। इन आरोपों पर संदीप पाण्डेय के अपने तर्क हैं। वह कहते हैं कि कश्मीर समस्या, नक्सल समस्या और निर्भया जैसे कांड के बारे में भी छात्रों को समझना चाहिए। इसको क्लास में बताना कोई अपराध नहीं। इसे साम्प्रदायिक ताकतें रोकना चाहती हैं। जो बड़ी लड़ाई है वह साम्प्रादायिकता के खिलाफ है। उनकी साजिश है शैक्षणिक संस्था पर काबिज होने की और इस देश के सामाजिक ढांचे को तहस-नहस करने की। तो यह लड़ाई लड़ी जाएगी।
पाण्डेय की वापसी के लिए हस्ताक्षर अभियान
इस लड़ाई की शुरुआत भी बीएचयू के आईआईटी कैम्पस में ही शुरू हो गई है। पाण्डेय को चाहने वाले छात्र उनकी वापसी के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। बैनर पोस्टर के साथ शांति मार्च निकालने की तैयारी कर रहे हैं। इस अभियान में लोगों से शामिल होने की अपील कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पाण्डेय एक अच्छे टीचर हैं। आईआईटी की छात्रा भारती अग्रवाल कहती हैं कि 'मैंने संदीप सर से कंट्रोल सिस्टम पढ़ा। उनके पढ़ाने का तरीका अलग है। वे स्टूडेंट को अन्दर तक जाकर समझाते हैं। उनके एक्जाम लेने का तरीका अलग है। वी वांट कम बैक।'
अब यह साफ है कि जिन वजहों से संदीप पण्डेय को हटाया गया है उन वजहों ने राजनीति करने का मौका दे दिया है। यही वजह है कि एक तरफ जहां संदीप पाण्डेय कह रहे हैं कि उनकी अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ छात्र आंदोलन की राह पर हैं। लिहाजा बीएचयू में एक नए तरह की बहस शुरू हो गई है।
संदीप पाण्डेय ने कहा, आरएसएस की साजिश
उक्त आरोपों के आधार पर आईआईटी बीएचयू से हटाए गए संदीप पाण्डेय जब केमिकल डिपार्टमेंट के अपने कमरे में पहुंचे तो बर्खास्तगी का विरोध करते हुए अपने कमरे में ही गांधी चरखा चलाने लगे। उनके साथ उनके कुछ समर्थक भी थे। इसी दौरान उनके सामने टर्मिनेशन का लेटर भी पहुंचा। उसे उन्होंने रिसीव किया और उसमें लगाए गए आरोपों के बारे में अपनी सफाई भी दी। उन्होंने कहा " मेरे ऊपर आरोप लगा है कि मैं नक्सली हूं और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहता हूं। अगर मेरे ऊपर कोई तथ्य है तो मेरे ऊपर एफआईआर होकर मुकदमा दर्ज होना चाहिए। सिर्फ निकालने से काम कैसे चलेगा। यह आरोप बेबुनियाद है और आरएसएस की साजिश है। इन लोगों को बर्दाश्त नहीं कि मैं यहां रहूं और काम करूं। छात्रों और आसपास के लोगों से संपर्क न करूं, तो निकाल रहे हैं।
कश्मीर, नक्सल और निर्भया पढ़ाना अपराध नहीं
संदीप पाण्डेय पर सिर्फ नक्सल गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप ही नहीं लगा बल्कि इनके ऊपर यह भी आरोप है कि उन्होंने क्लास में बच्चों की नक्सल के टॉपिक पर क्लास ली। इतना ही नहीं कश्मीर भारत का अंग नहीं है, इस पर भी लेक्चर कराया। साथ ही अपनी सोशलिस्ट पार्टी के लिए छात्रों से चंदा भी मांगा। उन्होंने निर्भया की सीडी को आईआईटी के नेट पर डाला। इन आरोपों पर संदीप पाण्डेय के अपने तर्क हैं। वह कहते हैं कि कश्मीर समस्या, नक्सल समस्या और निर्भया जैसे कांड के बारे में भी छात्रों को समझना चाहिए। इसको क्लास में बताना कोई अपराध नहीं। इसे साम्प्रदायिक ताकतें रोकना चाहती हैं। जो बड़ी लड़ाई है वह साम्प्रादायिकता के खिलाफ है। उनकी साजिश है शैक्षणिक संस्था पर काबिज होने की और इस देश के सामाजिक ढांचे को तहस-नहस करने की। तो यह लड़ाई लड़ी जाएगी।
पाण्डेय की वापसी के लिए हस्ताक्षर अभियान
इस लड़ाई की शुरुआत भी बीएचयू के आईआईटी कैम्पस में ही शुरू हो गई है। पाण्डेय को चाहने वाले छात्र उनकी वापसी के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। बैनर पोस्टर के साथ शांति मार्च निकालने की तैयारी कर रहे हैं। इस अभियान में लोगों से शामिल होने की अपील कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पाण्डेय एक अच्छे टीचर हैं। आईआईटी की छात्रा भारती अग्रवाल कहती हैं कि 'मैंने संदीप सर से कंट्रोल सिस्टम पढ़ा। उनके पढ़ाने का तरीका अलग है। वे स्टूडेंट को अन्दर तक जाकर समझाते हैं। उनके एक्जाम लेने का तरीका अलग है। वी वांट कम बैक।'
अब यह साफ है कि जिन वजहों से संदीप पण्डेय को हटाया गया है उन वजहों ने राजनीति करने का मौका दे दिया है। यही वजह है कि एक तरफ जहां संदीप पाण्डेय कह रहे हैं कि उनकी अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ छात्र आंदोलन की राह पर हैं। लिहाजा बीएचयू में एक नए तरह की बहस शुरू हो गई है।
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