कोझीकोड:
केरल के कोझीकोड में रहने वाले 16-वर्षीय मोहम्मद मुज़म्मिल को हर वह चीज़ पसंद है, जो डिजिटल है... उसका ज़्यादातर वक्त ऑनलाइन रहकर वीडियो देखने में, दोस्तों से 'मिलने-जुलने' में और कम्प्यूटर की दुनिया में हो रही ताजातरीन घटनाओं की जानकारी हासिल करने में गुज़रता है...
...और वह यह सब अपने लैपटॉप पर करता है, लेकिन सिर्फ अपने पैरों के पंजों से...
मुज़म्मिल जन्म से ही मांसपेशियों के ऐसे विकार से जूझ रहा है, जिसकी वजह से उसकी हड्डियां कमज़ोर हो चुकी हैं, और उसके शरीर को सहारा देने में असमर्थ हैं... उसे खाना खाने और यहां तक कि हिलने-डुलने में भी मदद की दरकार होती है, लेकिन यह शारीरिक कमज़ोरी स्कूल जाने वाले एक आम बच्चे जैसी ज़िन्दगी जीने की मुज़म्मिल की इच्छा को कुंद नहीं कर पाई है...
मुज़म्मिल की मां शमीरा का कहना है, "उसकी हड्डियां कमज़ोर हैं, और उसके शरीर की बनावट भी बचपन से ही बिगड़ती चली गई थी... लेकिन वह हमेशा स्कूल जाने का ख्वाब देखता रहा है..."
चूंकि बेटे को किसी नियमित स्कूल में भेजने के लिए दरकार रकम भी उनके पास नहीं थी, सो, शमीरा ने तो इस ख्वाब को लगभग भुला ही दिया था... तभी उन्हें सरकारी स्कूल के दो अध्यापकों - सुरेंद्रन ए तथा मुमताज़ टी - की सूरत में मदद मिली, जो हर हफ्ते कम से कम दो बार मुज़म्मिल के घर आते हैं, और स्कूल के कामकाज में उसकी मदद करते हैं...
वषक्कड़ (वझक्कड़) सरकारी स्कूल में विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों की प्रशिक्षक के रूप में तैनात मुमताज़ का कहना है, "स्कूल में हमारे पास उसकी मदद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं... अगर हमारे पास उसके लिए सहायक रखने या उसे स्कूल लाने-ले जाने की खातिर गाड़ी किराये पर लेने के लिए पैसे होते, तो काफी फर्क पड़ सकता था... मेरा भी सपना है कि उसे क्लासरूम में बैठकर पढ़ते हुए देखूं..."
मुज़म्मिल जिस लैपटॉप के ज़रिये पढ़ता है, वह भी उसके अध्यापकों ने कम्प्यूटर में उसके रुझान को देखकर तोहफे के रूप में दिया था...
मुज़म्मिल कहता है, "मुझे पढ़ना पसंद है, और मैं कम्प्यूटरों के बारे में और भी ज़्यादा जानना चाहता हूं..."
उसके अध्यापक फख्र से बताते हैं कि लैपटॉप भले ही मुज़म्मिल को तोहफे में मिला था, लेकिन उसने उसे चलाना खुद सीखा है... वह दिमागी तौर पर बेहद होशियार है...
सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक सुरेंद्रन बताते हैं, "एक बार हम लोगों ने स्कूल में क्विज़ आयोजित की थी, और मुज़म्मिल बेहद निराश था कि वह उसमें भाग नहीं ले सका... इसके बाद मैंने 15 बच्चों को इकट्ठा किया, और उसके घर पर क्विज़ का आयोजन किया... उसे क्विज़ में भाग लेते हुए और जीतते हुए देखना बेहद खुशनुमा अनुभव था..."
सो, मुज़म्मिल का स्कूल जाने का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन उसके इन अध्यापकों की बदौलत वह अभी टूटा भी नहीं है, और सपना देखना जारी रख सकता है...
...और वह यह सब अपने लैपटॉप पर करता है, लेकिन सिर्फ अपने पैरों के पंजों से...
मुज़म्मिल जन्म से ही मांसपेशियों के ऐसे विकार से जूझ रहा है, जिसकी वजह से उसकी हड्डियां कमज़ोर हो चुकी हैं, और उसके शरीर को सहारा देने में असमर्थ हैं... उसे खाना खाने और यहां तक कि हिलने-डुलने में भी मदद की दरकार होती है, लेकिन यह शारीरिक कमज़ोरी स्कूल जाने वाले एक आम बच्चे जैसी ज़िन्दगी जीने की मुज़म्मिल की इच्छा को कुंद नहीं कर पाई है...
मुज़म्मिल की मां शमीरा का कहना है, "उसकी हड्डियां कमज़ोर हैं, और उसके शरीर की बनावट भी बचपन से ही बिगड़ती चली गई थी... लेकिन वह हमेशा स्कूल जाने का ख्वाब देखता रहा है..."
चूंकि बेटे को किसी नियमित स्कूल में भेजने के लिए दरकार रकम भी उनके पास नहीं थी, सो, शमीरा ने तो इस ख्वाब को लगभग भुला ही दिया था... तभी उन्हें सरकारी स्कूल के दो अध्यापकों - सुरेंद्रन ए तथा मुमताज़ टी - की सूरत में मदद मिली, जो हर हफ्ते कम से कम दो बार मुज़म्मिल के घर आते हैं, और स्कूल के कामकाज में उसकी मदद करते हैं...
वषक्कड़ (वझक्कड़) सरकारी स्कूल में विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों की प्रशिक्षक के रूप में तैनात मुमताज़ का कहना है, "स्कूल में हमारे पास उसकी मदद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं... अगर हमारे पास उसके लिए सहायक रखने या उसे स्कूल लाने-ले जाने की खातिर गाड़ी किराये पर लेने के लिए पैसे होते, तो काफी फर्क पड़ सकता था... मेरा भी सपना है कि उसे क्लासरूम में बैठकर पढ़ते हुए देखूं..."
मुज़म्मिल जिस लैपटॉप के ज़रिये पढ़ता है, वह भी उसके अध्यापकों ने कम्प्यूटर में उसके रुझान को देखकर तोहफे के रूप में दिया था...
मुज़म्मिल कहता है, "मुझे पढ़ना पसंद है, और मैं कम्प्यूटरों के बारे में और भी ज़्यादा जानना चाहता हूं..."
उसके अध्यापक फख्र से बताते हैं कि लैपटॉप भले ही मुज़म्मिल को तोहफे में मिला था, लेकिन उसने उसे चलाना खुद सीखा है... वह दिमागी तौर पर बेहद होशियार है...
सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक सुरेंद्रन बताते हैं, "एक बार हम लोगों ने स्कूल में क्विज़ आयोजित की थी, और मुज़म्मिल बेहद निराश था कि वह उसमें भाग नहीं ले सका... इसके बाद मैंने 15 बच्चों को इकट्ठा किया, और उसके घर पर क्विज़ का आयोजन किया... उसे क्विज़ में भाग लेते हुए और जीतते हुए देखना बेहद खुशनुमा अनुभव था..."
सो, मुज़म्मिल का स्कूल जाने का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन उसके इन अध्यापकों की बदौलत वह अभी टूटा भी नहीं है, और सपना देखना जारी रख सकता है...
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