प्रतीकात्मक फोटो
लखनऊ:
प्रीति शुक्ला जब रानी से पहली बार मिली तो मक्खियों से घिरी, हड्डियों के ढांचे में तब्दील रानी अपनी उंगली तक हिला पाने में असमर्थ थी। केवल बढ़े पेट से ही उसके गर्भवती होने का पता चलता था। खून की कमी से पीड़ित होने पर भी उसके परिवार ने उसे अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया था।
प्रशिक्षित स्वयंसेवी महिला स्वास्थ्यकर्ता 28 वर्षीय प्रीति शुक्ला जो एक कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (सीआरपी) हैं, यदि वह समय पर नहीं पहुंचतीं तो सात माह की गर्भवती रानी का खून की कमी से गर्भपात हो जाता या प्रसव के दौरान ही उसकी मौत हो जाती।
लखनऊ के समीप खेड़ाबाद प्रशासनिक ब्लॉक में कार्यरत शुक्ला ने बताया कि रानी के परिवार को उसकी गंभीर स्थिति के बारे में समझाना और उसे नजदीकी सामाजिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराने के लिए राजी करना भी कठिन था।
प्रीति की मदद से मिली स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण आज पूर्ण रूप से स्वस्थ रानी अपनी दो माह की बेटी की देखभाल करते हुए बेहद खुश है।
प्रीति शुक्ला प्रजनन, मातृत्व, शिशु और किशोर स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए गठित टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (टीएसयू) में कार्यरत 390 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन टीम की सदस्य हैं।
प्रीति की तरह ही कई अन्य लोगों को 20 करोड़ की आबादी वाले देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के 100 पिछड़े ब्लॉकों में मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी चुनौतियों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया था।
100 पिछड़े ब्लॉकों में 3.1 करोड़ की आबादी है। ये ब्लॉक राज्य के 25 उच्च-प्राथमिकता वाले जिलों में स्थित हैं।
कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन स्वास्थ्य सुविधा श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी है।
टीम से जुड़े लोगों को सीमावर्ती एक्रीडिएटिड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (एएसएचए) कामगारों को परामर्श देने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। एएसएचए योजना, बेहतर संवाद और मां एवं शिशु स्वास्थ को सुधारने के लिए समुदायों को संगठित करने से जुड़े कार्य करते हैं।
दो बच्चों की मां और स्नातक डिग्रीधारी प्रीति 39 एएसएच की टीम की मुखिया हैं। वह ऐसी गर्भवती और नई मांओं की तलाश में एक माह में कई गांवों का दौरा करती हैं।
एक वर्ष पूर्व स्वास्थ्य कार्यकर्ता बनने से पहले प्रीति एक शिक्षिका थीं। अपना पिछला अनुभव याद करते हुए वह कहती हैं, "एक एएसएचए ने आकर उनसे कहा कि एक गांव में दो वर्षीय बच्चे को उसका परिवार टीके नहीं लगवा रहा है। प्रीति ने परिवार के सदस्यों को समझाया कि टीके नहीं लगवाने से बच्चे को भविष्य में स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। उसके बाद से बच्चे के टीकाकरण में कभी कोई समस्या नहीं हुई।"
टेक्निकल सपोर्ट यूनिट टीम के मुखिया भरतलाल पांडे के अनुसार, "सीआरपी का काम सभी एएसएचए को काम के आधार पर ग्रेड देना भी होता है, जो कि स्वास्थ्य कड़ी की अंतिम इकाई होते हैं। इसके कई मापदंड हैं, जैसे कि गांव के स्वास्थ्य सूची रजिस्टर (वीएचआईआर) में गर्भवती महिलाओं का सूचीकरण करना, संस्थागत प्रसव, प्रसव के बाद देखभाल और परिवार नियोजन।"
सीआरपी के कार्य क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने से संबंधित समस्याओं से जूझने वाले एएसएचए को सलाह देना और गांव के स्वास्थ्य रजिस्टर पर कड़ी नजर रखना भी शामिल होता है।
पांडे ने कहा, "कई एएसएचए खुद भी अनपढ़ होते हैं, जो रजिस्टर में लिख भी नहीं सकते। सीआरपी उनकी हर प्रकार से सहायता करते हैं।"
टीएसयू ने सीआरपी के ऊपर ब्लॉक काम्यूनिटी सुपरवाइजर बीसीएस नियुक्त किए हैं। ऐसे 150 सुपरवाइजर हैं।
बीसीएस समग्र प्रभारी होते हैं जो एएसएचए और सीआरपी के कामकाज पर नजर रखते हैं।
पिछले वर्ष बीसीएस के रूप में नियुक्त हुए हुकुम सिंह कहते हैं, "मेरा काम एएसएचए और सीआरपी को सहायता देना और उनके काम की देखरेख करना है। हम ऐसे एसएसएचए पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जिनका काम 50 प्रतिशत से भी कम अंकित किया गया है।"
उनके अधीन 124 एएसएचए और तीन सीआरपी हैं।
प्रीति गर्व से बताती हैं कि सीआरपी कार्यकर्ता बनने के बाद से समाज और परिवार में उनका सम्मान बढ़ गया है। बच्चों के टीकाकरण के अलावा उनका काम मुख्य तौर पर परिवार नियोजन योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना है। कई बार वे लोगों को समझाने के लिए अपना उदाहरण देती हैं।
प्रीति कहती हैं, मेरे सबसे छोटे बच्चे का जन्म पांच वर्ष पूर्व हुआ था, उसके बाद मैंने कॉपर-टी लगवा ली थी। ऐसी महिलाएं जो परिवार नियोजन के महत्व को नहीं समझतीं, उन्हें मैं अपना उदाहरण देकर समझाती हूं। तथ्यों और संख्याओं की तुलना में व्यक्तिगत उदाहरण से लोग बेहतर तरीके से समझ जाते हैं।
उन्होंने कहा, मैं उन्हें स्पष्ट समझाती हूं कि ज्यादा ब्च्चे होने पर वे बच्चों को अच्छी शिक्षा, खानपान और बेहतर जीवन नहीं दे पाएंगे। ज्यादातर महिलाएं मेरी बात को गौर से सुनती हैं और इस पर अमल करने की हामी भरती हैं।
प्रीति ने कहा, उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने के अलावा उनका लक्ष्य लोगों में जागरूकता पैदा करना है। हालत सुधारने का यही एकमात्र उपाय है।
प्रशिक्षित स्वयंसेवी महिला स्वास्थ्यकर्ता 28 वर्षीय प्रीति शुक्ला जो एक कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (सीआरपी) हैं, यदि वह समय पर नहीं पहुंचतीं तो सात माह की गर्भवती रानी का खून की कमी से गर्भपात हो जाता या प्रसव के दौरान ही उसकी मौत हो जाती।
लखनऊ के समीप खेड़ाबाद प्रशासनिक ब्लॉक में कार्यरत शुक्ला ने बताया कि रानी के परिवार को उसकी गंभीर स्थिति के बारे में समझाना और उसे नजदीकी सामाजिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराने के लिए राजी करना भी कठिन था।
प्रीति की मदद से मिली स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण आज पूर्ण रूप से स्वस्थ रानी अपनी दो माह की बेटी की देखभाल करते हुए बेहद खुश है।
प्रीति शुक्ला प्रजनन, मातृत्व, शिशु और किशोर स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए गठित टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (टीएसयू) में कार्यरत 390 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन टीम की सदस्य हैं।
प्रीति की तरह ही कई अन्य लोगों को 20 करोड़ की आबादी वाले देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के 100 पिछड़े ब्लॉकों में मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी चुनौतियों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया था।
100 पिछड़े ब्लॉकों में 3.1 करोड़ की आबादी है। ये ब्लॉक राज्य के 25 उच्च-प्राथमिकता वाले जिलों में स्थित हैं।
कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन स्वास्थ्य सुविधा श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी है।
टीम से जुड़े लोगों को सीमावर्ती एक्रीडिएटिड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (एएसएचए) कामगारों को परामर्श देने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। एएसएचए योजना, बेहतर संवाद और मां एवं शिशु स्वास्थ को सुधारने के लिए समुदायों को संगठित करने से जुड़े कार्य करते हैं।
दो बच्चों की मां और स्नातक डिग्रीधारी प्रीति 39 एएसएच की टीम की मुखिया हैं। वह ऐसी गर्भवती और नई मांओं की तलाश में एक माह में कई गांवों का दौरा करती हैं।
एक वर्ष पूर्व स्वास्थ्य कार्यकर्ता बनने से पहले प्रीति एक शिक्षिका थीं। अपना पिछला अनुभव याद करते हुए वह कहती हैं, "एक एएसएचए ने आकर उनसे कहा कि एक गांव में दो वर्षीय बच्चे को उसका परिवार टीके नहीं लगवा रहा है। प्रीति ने परिवार के सदस्यों को समझाया कि टीके नहीं लगवाने से बच्चे को भविष्य में स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। उसके बाद से बच्चे के टीकाकरण में कभी कोई समस्या नहीं हुई।"
टेक्निकल सपोर्ट यूनिट टीम के मुखिया भरतलाल पांडे के अनुसार, "सीआरपी का काम सभी एएसएचए को काम के आधार पर ग्रेड देना भी होता है, जो कि स्वास्थ्य कड़ी की अंतिम इकाई होते हैं। इसके कई मापदंड हैं, जैसे कि गांव के स्वास्थ्य सूची रजिस्टर (वीएचआईआर) में गर्भवती महिलाओं का सूचीकरण करना, संस्थागत प्रसव, प्रसव के बाद देखभाल और परिवार नियोजन।"
सीआरपी के कार्य क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने से संबंधित समस्याओं से जूझने वाले एएसएचए को सलाह देना और गांव के स्वास्थ्य रजिस्टर पर कड़ी नजर रखना भी शामिल होता है।
पांडे ने कहा, "कई एएसएचए खुद भी अनपढ़ होते हैं, जो रजिस्टर में लिख भी नहीं सकते। सीआरपी उनकी हर प्रकार से सहायता करते हैं।"
टीएसयू ने सीआरपी के ऊपर ब्लॉक काम्यूनिटी सुपरवाइजर बीसीएस नियुक्त किए हैं। ऐसे 150 सुपरवाइजर हैं।
बीसीएस समग्र प्रभारी होते हैं जो एएसएचए और सीआरपी के कामकाज पर नजर रखते हैं।
पिछले वर्ष बीसीएस के रूप में नियुक्त हुए हुकुम सिंह कहते हैं, "मेरा काम एएसएचए और सीआरपी को सहायता देना और उनके काम की देखरेख करना है। हम ऐसे एसएसएचए पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जिनका काम 50 प्रतिशत से भी कम अंकित किया गया है।"
उनके अधीन 124 एएसएचए और तीन सीआरपी हैं।
प्रीति गर्व से बताती हैं कि सीआरपी कार्यकर्ता बनने के बाद से समाज और परिवार में उनका सम्मान बढ़ गया है। बच्चों के टीकाकरण के अलावा उनका काम मुख्य तौर पर परिवार नियोजन योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना है। कई बार वे लोगों को समझाने के लिए अपना उदाहरण देती हैं।
प्रीति कहती हैं, मेरे सबसे छोटे बच्चे का जन्म पांच वर्ष पूर्व हुआ था, उसके बाद मैंने कॉपर-टी लगवा ली थी। ऐसी महिलाएं जो परिवार नियोजन के महत्व को नहीं समझतीं, उन्हें मैं अपना उदाहरण देकर समझाती हूं। तथ्यों और संख्याओं की तुलना में व्यक्तिगत उदाहरण से लोग बेहतर तरीके से समझ जाते हैं।
उन्होंने कहा, मैं उन्हें स्पष्ट समझाती हूं कि ज्यादा ब्च्चे होने पर वे बच्चों को अच्छी शिक्षा, खानपान और बेहतर जीवन नहीं दे पाएंगे। ज्यादातर महिलाएं मेरी बात को गौर से सुनती हैं और इस पर अमल करने की हामी भरती हैं।
प्रीति ने कहा, उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने के अलावा उनका लक्ष्य लोगों में जागरूकता पैदा करना है। हालत सुधारने का यही एकमात्र उपाय है।
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