भोपाल के बोर्ड आफिस चौराहे पर धरना देते हुए मेडिकल छात्र.
भोपाल:
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बोर्ड ऑफिस चौराहे पर तीखी गर्मी में सड़क पर एडवांस मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस छात्र धरना दे रहे हैं. शहर के अलग-अलग चौराहों पर ये प्रदर्शन कर रहे हैं. मंत्री-अदालत-एमसीआई तक जा चुके हैं लेकिन हर जगह मिल रही है तो बस तारीख. यही हाल इंदौर में भी मेडिकल छात्रों का है.
कॉलेज में ताला लग चुका है, छात्रों का भविष्य अधर में है. सरकार ने इन कॉलेजों को खोलने के लिए अपनी सहमति देते समय एमसीआई को एक प्रमाण पत्र डीएंडएफ (डिजायरबिलिटी एंड फिजिबिलिटी) दिया था. इसमें किसी वजह से कॉलेज बंद होने की दशा में यहां पढ़ रहे छात्रों की जिम्मेदारी सरकार के उठाने का वादा था. अब प्रदेश के दो निजी कॉलेज बंद हो चुके हैं तो इनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. मजबूरी में छात्र सड़क पर उतर आए हैं. इस सर्टिफिकेट को जारी करने में प्रमुख सचिव से विभागीय मंत्री तक की सहमति होती है, जो एक तरह का वचन पत्र है जिसमें किसी वजह से कॉलेज बंद होने की दशा में वहां पढ़ रहे छात्रों के आगे की पढ़ाई की लिखित जिम्मेदारी लेती है. इस प्रमाण पत्र के बिना एमसीआई किसी भी कॉलेज को मान्यता दे ही नहीं सकती.
कॉलेज में ताला लगने में छात्रों की कोई गलती नहीं है. एडवांस मेडिकल कॉलेज में 2 साल 150 छात्रों को प्रवेश दिया गया. पिछले सत्र से एमसीआई से अनुमति नहीं मिलने से कोई प्रवेश नहीं हुआ. आर्थिक परेशानियों की वजह से कॉलेज को बेच दिया गया नये मालिक ने कॉलेज चलाने बैंक से कर्ज लिया. छात्रों का कहना है कर्ज नहीं चुकाया गया अब वहां ताला पड़ा है. वैसे भी जब कॉलेज खुला था तब भी वहां कोई व्यवस्था नहीं थी, ना शिक्षकों की, ना लैब की ना प्रैक्टिकल की.
मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी है, सरकार ने इसे पूरा करने विज्ञापन भी छपवाया था आओ और मुंहमागी तनख्वाह बताओ फिर भी आवेदन नहीं आए. पहले भी 2100 भर्तियों में 500 डॉक्टर जुटे उसमें भी 200 ने तो अबतक नौकरी ज्वाइन नहीं की है. एसएएस सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मौत के आंकड़े लगभग 38 फीसद हैं, 51 जिलों के 250 अस्पतालों में डॉक्टर की कमी है, प्रथम श्रेणी के विशेषज्ञों के स्वीकृत पद 3266 हैं, 2044 ख़ाली पड़े हैं. चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत पद-4860, 1926 ख़ाली हैं. एनेस्थेटिस्ट 70 फीसदी पद खाली हैं. गायनॉकोलॉजिस्ट के 54 फीसदी पद खाली हैं. जबकि शिशु रोग विशेषज्ञों के 40 फीसदी पद खाली हैं.
मध्यप्रदेश सरकार 7 नए मेडिकल कॉलेज खोलने जा रही है, जबकि मौजूदा छात्र क्लास के बजाए इंसाफ के लिए सड़क पर बैठे हैं.
कॉलेज में ताला लग चुका है, छात्रों का भविष्य अधर में है. सरकार ने इन कॉलेजों को खोलने के लिए अपनी सहमति देते समय एमसीआई को एक प्रमाण पत्र डीएंडएफ (डिजायरबिलिटी एंड फिजिबिलिटी) दिया था. इसमें किसी वजह से कॉलेज बंद होने की दशा में यहां पढ़ रहे छात्रों की जिम्मेदारी सरकार के उठाने का वादा था. अब प्रदेश के दो निजी कॉलेज बंद हो चुके हैं तो इनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. मजबूरी में छात्र सड़क पर उतर आए हैं. इस सर्टिफिकेट को जारी करने में प्रमुख सचिव से विभागीय मंत्री तक की सहमति होती है, जो एक तरह का वचन पत्र है जिसमें किसी वजह से कॉलेज बंद होने की दशा में वहां पढ़ रहे छात्रों के आगे की पढ़ाई की लिखित जिम्मेदारी लेती है. इस प्रमाण पत्र के बिना एमसीआई किसी भी कॉलेज को मान्यता दे ही नहीं सकती.
कॉलेज में ताला लगने में छात्रों की कोई गलती नहीं है. एडवांस मेडिकल कॉलेज में 2 साल 150 छात्रों को प्रवेश दिया गया. पिछले सत्र से एमसीआई से अनुमति नहीं मिलने से कोई प्रवेश नहीं हुआ. आर्थिक परेशानियों की वजह से कॉलेज को बेच दिया गया नये मालिक ने कॉलेज चलाने बैंक से कर्ज लिया. छात्रों का कहना है कर्ज नहीं चुकाया गया अब वहां ताला पड़ा है. वैसे भी जब कॉलेज खुला था तब भी वहां कोई व्यवस्था नहीं थी, ना शिक्षकों की, ना लैब की ना प्रैक्टिकल की.
मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी है, सरकार ने इसे पूरा करने विज्ञापन भी छपवाया था आओ और मुंहमागी तनख्वाह बताओ फिर भी आवेदन नहीं आए. पहले भी 2100 भर्तियों में 500 डॉक्टर जुटे उसमें भी 200 ने तो अबतक नौकरी ज्वाइन नहीं की है. एसएएस सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मौत के आंकड़े लगभग 38 फीसद हैं, 51 जिलों के 250 अस्पतालों में डॉक्टर की कमी है, प्रथम श्रेणी के विशेषज्ञों के स्वीकृत पद 3266 हैं, 2044 ख़ाली पड़े हैं. चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत पद-4860, 1926 ख़ाली हैं. एनेस्थेटिस्ट 70 फीसदी पद खाली हैं. गायनॉकोलॉजिस्ट के 54 फीसदी पद खाली हैं. जबकि शिशु रोग विशेषज्ञों के 40 फीसदी पद खाली हैं.
मध्यप्रदेश सरकार 7 नए मेडिकल कॉलेज खोलने जा रही है, जबकि मौजूदा छात्र क्लास के बजाए इंसाफ के लिए सड़क पर बैठे हैं.
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