(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:
मानवाधिकार संगठन और गैर लाभकारी संस्था (एनजीओ) एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मंगलवार को कहा कि मध्य प्रदेश विधानसभा में पारित जिस विधेयक में 12 वर्ष और उससे कम आयु की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दोषी को मौत की सजा का प्रावधान किया गया है, वह 'प्रतिगामी' और 'अनुपयुक्त' है. एमनेस्टी ने कहा है कि बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा को समाप्त करने के लिए संस्थागत सुधारों की जरूरत है ना कि मौत की सजा की.
इसके साथ ही एमनेस्टी ने राष्ट्रपति से अपील की है कि इस तरह के 'प्रतिगामी' विधेयक को कानून बनाने की इजाजत नहीं दी जाए. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की कार्यक्रम निदेशक अस्मिता बसु ने कहा, 'बाल यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर मध्य प्रदेश विधायिका की चिंता का स्वागत है, लेकिन समाधान अनुपयुक्त है.'
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उन्होंने कहा कि इसका 'कोई सबूत नहीं' है कि मृत्यु दंड, जेल की सजा की तुलना में अधिक निवारक है. उन्होंने कहा, 'सरकार को दंड की उग्रता को बढ़ाने के बजाए न्याय की निश्चितता को सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए. न्यायमूर्ति वर्मा समिति और भारतीय कानून आयोग, दोनों ने ही यौन हिंसा से संबंधित अपराधों में मौत की सजा का प्रयोग करने का विरोध किया है.'
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बसु ने कहा, 'मौत की सजा जीवन के अधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है. भारत में इसका उपयोग अत्यधिक मनमाने तरीके से हो रहा है और इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों पर विपरीत असर पड़ता है. राष्ट्रपति को इस प्रतिगामी विधेयक को कानून बनाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.'
मध्य प्रदेश विधानसभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से 12 वर्ष और उससे कम आयु वर्ग की लड़कियों के साथ दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म में शामिल लोगों के लिए मौत की सजा का एक विधेयक पारित किया था.
VIDEO : मध्य प्रदेश में बच्चियों से रेप के दोषियों को मौत की सजा, पास हुआ विधेयक
इससे पहले राज्य मंत्रिमंडल ने 26 नवंबर को संशोधित विधेयक को मंजूरी दे दी थी जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 में दो अतिरिक्त प्रावधानों का प्रस्ताव शामिल था. संशोधन विधेयक में शादी का झूठा वादा कर महिलाओं का शोषण करने पर तीन साल जेल की सजा भी शामिल है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
इसके साथ ही एमनेस्टी ने राष्ट्रपति से अपील की है कि इस तरह के 'प्रतिगामी' विधेयक को कानून बनाने की इजाजत नहीं दी जाए. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की कार्यक्रम निदेशक अस्मिता बसु ने कहा, 'बाल यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर मध्य प्रदेश विधायिका की चिंता का स्वागत है, लेकिन समाधान अनुपयुक्त है.'
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उन्होंने कहा कि इसका 'कोई सबूत नहीं' है कि मृत्यु दंड, जेल की सजा की तुलना में अधिक निवारक है. उन्होंने कहा, 'सरकार को दंड की उग्रता को बढ़ाने के बजाए न्याय की निश्चितता को सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए. न्यायमूर्ति वर्मा समिति और भारतीय कानून आयोग, दोनों ने ही यौन हिंसा से संबंधित अपराधों में मौत की सजा का प्रयोग करने का विरोध किया है.'
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बसु ने कहा, 'मौत की सजा जीवन के अधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है. भारत में इसका उपयोग अत्यधिक मनमाने तरीके से हो रहा है और इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों पर विपरीत असर पड़ता है. राष्ट्रपति को इस प्रतिगामी विधेयक को कानून बनाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.'
मध्य प्रदेश विधानसभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से 12 वर्ष और उससे कम आयु वर्ग की लड़कियों के साथ दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म में शामिल लोगों के लिए मौत की सजा का एक विधेयक पारित किया था.
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इससे पहले राज्य मंत्रिमंडल ने 26 नवंबर को संशोधित विधेयक को मंजूरी दे दी थी जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 में दो अतिरिक्त प्रावधानों का प्रस्ताव शामिल था. संशोधन विधेयक में शादी का झूठा वादा कर महिलाओं का शोषण करने पर तीन साल जेल की सजा भी शामिल है.
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