
महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुपोषण को मिटाने के लिए राज्य सरकार के प्रयास सफल रहे हैं. यह देखा गया है कि पिछले दो वर्षों में राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या में कमी आ रही है. इसमें गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 1.93 से घटकर 0.61 प्रतिशत हो गई है. जबकि आंकड़े बताते हैं कि मध्यम रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 5.9 से घटकर 3.11 प्रतिशत हो गई है. पिछले वर्ष गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या आधी हो गई है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि कुपोषण मुक्त राज्य की ओर यह कदम राज्य के विभिन्न विभागों और एजेंसियों के संयुक्त प्रयास, समन्वय और संचार का परिणाम है. मुख्यमंत्री ने इस उपलब्धि के लिए इस प्रणाली में विभिन्न अधिकारियों, इकाइयों और मैदानी स्तर पर काम करने वाले सभी लोगों की प्रशंसा की है. महाराष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी राज्य है. राज्य ने सामाजिक न्याय के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण और जनोन्मुखी निर्णय लिए हैं.
कुपोषण को मिटाने के लिए राज्य में लागू की जा रही पहलों की सफलता आंकड़ों से स्पष्ट है. पिछले दो वर्षों में, महिलाओं और बच्चों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं और पहलों को राज्य में प्रभावी रूप से लागू किया गया है. इसके कारण कुपोषण की दर में काफी कमी आई है. कुपोषण के संबंध में किए गए एक सर्वेक्षण से यह जानकारी सामने आई है. वर्षवार जिन बच्चों का वजन और लंबाई ली गई उनकी संख्या मार्च अंत में इस प्रकार है- 2023 में 41 लाख, 67 हजार 180, 2024 में 42 लाख 62 हजार 652, 2025 में 48 लाख 10 हजार 302. इसमें राज्य में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या मार्च 2023 के अंत में 80,248 (1.93%) थी, जो मार्च 2024 के अंत में घटकर 51,475 (1.21%) हो गई. जबकि मार्च 2025 के अंत तक यह संख्या घटकर 29,107 (0.61) हो गई है. वहीं मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या मार्च 2023 से उल्लेखनीय रूप से घटकर 2,12,203 (5.09%), 1,66,998 (3.92%) और 1,54,998 (4.92%) हो गई है. 1,49,617 (3.11%) क्रमशः.
महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से राज्य में एकीकृत बाल विकास सेवा योजना का प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है. इस योजना के तहत 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को नियमित पूरक पोषण आहार उपलब्ध कराया जा रहा है. 6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को घर पर ही भोजन (टीएचआर) तथा 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को गर्म ताजा भोजन (एचसीएम) उपलब्ध कराया जा रहा है.
आदिवासी परियोजना में भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अमृत आहार योजना के तहत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को एक समय का भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों को केला और अंडा दिया जा रहा है. साथ ही, गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चों के लिए ग्राम बाल विकास केंद्र शुरू किए गए हैं, जहां बच्चों को दिन में तीन बार आवश्यक पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं. इसी तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में गंभीर कुपोषित बच्चों के लिए शहरी बाल विकास केंद्र शुरू किए गए हैं. इन बच्चों के समग्र विकास पर नर्चर एप के माध्यम से नजर रखी जा रही है. वहीं, पोषण ट्रैकर एप के माध्यम से एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लाभार्थियों के पोषण पर नजर रखी जा रही है.
लाभार्थियों को समय पर शत-प्रतिशत पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने, पोषण ट्रैकर पर बच्चों का वजन और ऊंचाई सही दर्ज करने, कुपोषित बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देकर उपाय करने के साथ ही शत-प्रतिशत गृह भ्रमण का लक्ष्य और आंगनवाड़ी स्तर तक के मैदानी अधिकारियों द्वारा विस्तृत योजना बनाने के कारण ये सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं. कुपोषण को कम करने के लिए राज्य में टास्क फोर्स का गठन किया गया है और उनकी सिफारिशों के अनुसार कार्रवाई की जा रही है. योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मैदानी तंत्र की साप्ताहिक समीक्षा की जा रही है. पाया गया है कि मैदानी अधिकारियों के क्षमता निर्माण, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के नियमित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के कारण यह सकारात्मक बदलाव हो रहा है.
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