बिहार में राजद (RJD) की करारी हार के बाद पूरी पार्टी सकते में है. बिहार में कांग्रेस-राजद-आरएलएसपी-हम और वीआईपी ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था. बिहार की 40 में 39 सीटों पर BJP-JDU-LJP गठबंधन का कब्जा रहा वहीं, महागठंधन के हिस्से एक सीट आई. महागठबंधन से कांग्रेस (Congress) ने किशनगंज की सीट जीती. किशनगंज में कांग्रेस उम्मीदवार डॉक्टर मोहम्मद जावेद ने जेडीयू (JDU) के सैयद महमूद अशरफ को शिकस्त देकर जीती. उन्होंने 34466 वोट से महमूद अशरफ को मात दी. बिहार में राजद ने 20, कांग्रेस ने 9, उपेंद्र कुशवाहा की RLSP ने 5, जीतनराम मांझी की हम ने 3 और सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी की VIP ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. वहीं, JDU ने 17, BJP 17 और LJP ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था. दूसरी तरफ हारने वाली पार्टियों की तरफ से इसकी समीक्षा जारी है. इस बीच राजद में अंदरूनी कलह और बगावती तेवर भी दिखने शुरू हो गए हैं. मुजफ्फरपुर जिले से पार्टी के एक विधायक ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा मांगा है.
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मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट से राजद विधायक महेश्वर प्रसाद यादव (Maheshwar Prasad Yadav) ने सोमवार को पत्रकारों से कहा कि परिवारवाद के कारण राजद की यह दुर्गति हुई है. उन्होंने कहा, 'राजद परिवार के चक्कर में उलझा हुआ है, और उसी के कारण पार्टी की बुरी हालत हुई है.' उन्होंने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने से लेकर तेजस्वी (Tejashwi Yadav) को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने और सरकार से बाहर होने के बाद विपक्ष का नेता बनाए जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि राजद में कई वरिष्ठ नेता हैं, जिन्हें यह जिम्मेदारी दी सकती थी, परंतु परिवारवाद के कारण परिवार के लोगों को ही जिम्मेदारी दी गई.
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उन्होंने कहा, 'तेजस्वी को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. अगर तेजस्वी इस्तीफा देकर किसी बड़े नेता को यहां नहीं बैठाते हैं तो अगले चुनाव में पार्टी की और दुर्दशा होगी.' उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ जाने के बाद ही राजद को यह सफलता मिली, वरना राजद को विधानसभा में इतनी सीटें नहीं मिलतीं.
बता दें कि बिहार की राजनीति में तकरीबन 20 साल बाद ऐसा पहली बार हो रहा था कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार और राम विलास पासवान एक साथ थे. 2014 में नीतीश कुमार की पार्टी एनडीए से अलग चुनाव लड़ी थी और हार गई थी. रामविलास पासवान चुनाव से ठीक पहले एनडीए में शामिल हुए थे और जीत हासिल कर सरकार में भी शामिल हुए थे. नीतीश कुमार अपने पिछले चुनाव के समय लिए गए निर्णय को भूले नहीं थे. एनडीए से उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से अपनी शर्तों पर सीटें हासिल कीं और चुनाव लड़े. रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा भी फायदे में रही. लेकिन इन दोनों की रणनीति ने आरजेडी और महागठबंधन को ध्वस्त कर दिया.
बिहार में हुए इस बार के लोकसभा चुनाव में आरजेडी और उनके सहयोगी दलों को संभालने वाले लालू प्रसाद जैसे मंजे हुए नेता का न होना भी काफी नुकसानदेह साबित हुआ. महागठबंधन की हार की कहानी लिखने में एनडीए से ज्यादा उसके अपने नेता ही जिम्मेदार हैं.
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