बिहार में वैसे तो 40 की 40 लोकसभा सीटों के चुनावी समीकरण और उन पर होने वाले चुनाव दिलचस्प होते हैं, मगर बीते दो चुनावों से एक नए लोकसभा सीट ने सबको अचंभित किया है. बिहार की प्राचीन राजधानी पाटलिपुत्र अपने उदय के समय से ही सियासी उठा-पटक का केंद्र रही है. पटना के पुराने नाम से मशहूर पाटलिपुत्र में कई राजवंशों के बीच सियासी लड़ाईयां हुईं और पाटलिपुत्र कई राजनीतिक बदलाव का गवाह बना रहा. मगर पाटलिपुत्र लोकसभा चुनाव 2019 (Loksabha Election 2019) में एक बार फिर से बिहार की सियासत का केंद्र बनने को तैयार है. लोकसभा चुनाव 2014 में पाटलिपुत्र लोकसभा सीट ने जिस राजनीतिक घमासान की वजह से पूरे देश का ध्यान खींचा था, इस बार भी ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साख और पगड़ी की लड़ाई में फिर पाटलिपुत्र बिहार की राजनीति का कहीं केंद्र न बन जाए.
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लोकसभा चुनाव 2014 में जिस तरह से पाटलिपुत्र सीट पर अपनों के बीच सियासी घमासान देखने को मिला, इस बार भी लगता है कि वही जोड़ी सियासी अखाड़े में आमने सामने होगी. दरअसल, कभी लालू प्रसाद यादव के राइट हैंड माने जाने वाले राम कृपाल यादव ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ राजद सुप्रीमो की बेटी मीसा भारती को पटखनी दी थी. लोकसभा चुनाव 2014 से पहले पाटलिपुत्र सीट पर राम कृपाल यादव का नाम राजद की ओर से तय माना जा रहा था, मगर ऐन वक्त लालू प्रसाद यादव ने राम कृपाल यादव को टिकट न देकर मीसा भारत को टिकट दे दिया, जिसके बाद राम कृपाल यादव बागी हो गए और बीजेपी ने मौके का फायदा उठाकर उन्हें टिकट दिया और वह पाटलिपुत्र से जीत कर लोकसभा पहुंच गए.
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दरअसल, पाटलिपुत्र लोकसभा सीट का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. क्योंकि लोकसभा सीट के तौर पर पाटलिपुत्र का उदय 2008 के परिसीमन के दौरान हुआ था. इससे पहले तक पटना शहर में मात्र एक ही लोकसभा सीट हुआ करती थी, जिसका नाम है- पटना साहिब. पटना साहिब को शत्रुघ्न सिन्हा का गढ़ माना जाता है. यानी अब पटना शहर में दो लोकसभा सीटें हैं- एक पटना साहिब और दूसरा पाटलीपुत्र. पाटलिपुत्र लोकसभा सीट में माना जाता है कि भूमिहार, यादव और मुसलमान का वोट बैंक ज्यादा है.
साल 2009 में पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर पहली बार चुनाव हुए. पाटलिपुत्र के पहले चुनावी अखाड़े में एक ओर जहां राजद नेता लालू प्रसाद यादव थे, वहीं दूसरी ओर थे जनता दल यूनाइटेड के नेता रंजन प्रसाद यादव. पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर हुए पहले मुकाबले में ही बड़ा उलटफेर हो गया और जदयू के रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद को पटखनी देकर सबको हैरान कर दिया. रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद यादव को करीब 23 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और लालू प्रसाद यादव के कद पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया.
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अब बारी थी साल 2014 की. इस बार राजद ने अपनी पार्टी के दिग्गज नेता और लालू प्रसाद यादव के वजीर कहे जाने वाले राम कृपाल यादव को नहीं, बल्कि अपनी बेटी मीसा भारती को पाटलिपुत्र सीट से उतारा. राम कृपाल यादव लालू प्रसाद यादव के इस फैसले से नाराज हुए. उन्होंने इस फैसले के विरोध किया और बागी तेवर अपनाया. पाटलिपुत्र से टिकट न मिलने से नाराज राम कृपाल यादव ने बीजेपी का दामन थामा और 2014 के लोकसभा चुनाव में ही अपनी 'भतीजी' और लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती को हरा दिया. लोकसभा चुनाव 2014 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर लड़ने वाले राम कृपाल यादव ने मीसा भारती को करीब 40 हजार वोटों से हरा दिया.
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चुनाव से पहले ऐसा माना जा रहा था कि राम कृपाल यादव बीजेपी में जाकर और पाटलिपुत्र से लालू यादव की बेटी के खिलाफ चुनाव लड़कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. मगर 2014 में लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती को हराकर उन्होंने सबको चौंका दिया. यही वजह है कि बीजेपी ने भी राजद को यहां से हराने के बदले उन्हें इनाम से नवाजा. राजद में सेंध लगाने की चाह रखने वाली बेजीप ने ने रामकृपाल यादव को जीत का इनाम दिया और उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली.
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अब 2019 लोकसभा चुनाव में अब तक जो तस्वीर सामने आई है, उससे साफ है कि इस बार भी पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से राजद की ओर से मीसा भारती और भाजपा की ओर से राम कृपाल यादव के बीच ही मुकाबला होगा. हार के बाद से ऐसी भी खबरें थीं कि मीसा भारती पाटलिपुत्र से चुनाव नहीं लड़ सकती हैं, मगर उनके भाई तेजप्रताप यादव जिस तरह से दावा ठोक रहे हैं कि मीसा भारती पाटलिपुत्र से ही चुनाव लड़ेंगी, उसके मुताबिक अब यही माना जा रहा है कि मीसा भारती एक बार फिर चाचा को सियासी लड़ाई में मात देने के इरादे से उतरेंगी.
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