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This Article is From May 10, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: उत्तर प्रदेश में आखिरी दो चरणों में BJP और गठबंधन के सामने क्या हैं चुनौतियां, प्रणय रॉय का विश्लेषण

Elections 2019: उत्तर प्रदेश में अब दो चरणों का चुनाव रह गया है. बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन के सामने क्या है चुनौती, कितना असर डालेगा प्रियंका फैक्टर, पढ़िए, डॉ. प्रणय रॉय का विश्लेषण.

लोकसभा चुनाव 2019: उत्तर प्रदेश में आखिरी दो चरणों में BJP और गठबंधन के सामने क्या हैं चुनौतियां, प्रणय रॉय का विश्लेषण
डॉ. प्रणय रॉय ने यूपी में बीजेपी और गठबंधन के सामने चुनौतियों और प्रियंका फैक्टर का विश्लेषण किया.
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019)  के अगले दो में चरणों उत्तर प्रदेश में बीजेपी और गठबंधन के लिए चुनौती माने जा रहे हैं. यह वो सूबा है, जो सबसे ज्यादा लोकसभा सांसद चुनता है. अगले दो चरणों में राज्य की कुल मिलाकर 27 सीटों पर मतदान होना है. सभी सीटें यूपी के पूर्वी हिस्से की हैं. इसमें बनारस और गोरखपुर जैसी लोकसभा सीटें भी शामिल हैं. बनारस से जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं गोरखपुर सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ मानी जाती है.2014 में, बीजेपी और सहयोगी दलों ने 73 सीटें जीतीं थीं. यह प्रदर्शन 2017 के विधानसभा चुनावों में भी जारी रहा. जब बीजेपी ने कुल 403 में से 312 सीटों पर फतह हासिल की थी. 2014 की तुलना में इस बार लोकसभा चुनाव पर कई चीजों का फर्क पड़ रहा है. गठबंधन से इस बार का चुनाव कुछ अलग है. वजह कि 2017 के विधानसभा चुनाव के वोट शेयर की लोकसभा क्षेत्रवार दलों के वोटबैंक से तुलना करने पर कई जगहों पर गठबंधन का वोट बीजेपी के वोटबैंक पर भारी पड़ रहा है.

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दूसरा बड़ा अंतर प्रियंका गांधी वाड्रा का है.राहुल गांधी की छोटी बहन ने इस साल फरवरी में बहुप्रतीक्षित रूप से सक्रिय राजनीति में पदार्पण करते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी का पद संभाला. पिछले कुछ महीनों से लोगों का कहना है कि उन्होंने काफी प्रभाव छोड़ा है और कांग्रेस के मतों में दस प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है. लेकिन  इसका विपरीत असर महागठबंधन पर पड़ सकता है. क्योंकि कांग्रेस के वोट अगर बीजेपी विरोधी खेमे से आएंगे तो फिर यह गठबंधन के लिए महंगा पड़ेगा.

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पिछली बार बीजेपी  को मिले 41 प्रतिशत वोट ने 85 प्रतिशत सीटें उसकी झोली में डाल दीं. मगर 41 प्रतिशत वोट को लहर कहा जाए. ऐसी परिभाषा किताबों में तो नहीं मिलती. 1977 में जनता पार्टी के पक्ष में जरूर एक लहर थी, जब पार्टी को 48 प्रतिशत वोट शेयर मिले थे. वहीं 2015 में, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में 53 प्रतिशत वोट हासिल किए थे.2015 में 'मोदी वेव' का जो टर्म प्रचलन में आया, दरअसल वह लैंडस्लाइड विक्ट्री थी. वेव और लैंडस्लाइड में फर्क जानना जरूरी है. 'वेव' यानी लहर 'हाई पॉपुलर' वोट से तय होती है, जबकि लैंडस्लाइड अधिक संख्या में सीटें आने से. उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां देश के अन्य हिस्सों से कहीं ज्यादा दलित और मुस्लिम रहते हैं. यहां नगरीय इलाकों से ज्यादा लोग गांवों में रहते हैं.मगर इस बार अनुसूचित जाति का वोट बीजेपी से दूर जा रहा है. यह वोट कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन में बंट रहा है.मुस्लिम वोट भी कांग्रेस और गठबंधझन को जा रहा है.

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कहा जा रहा है कि बीजेपी के पाले से करीब 15 प्रतिशत दलित दूर हो रहे हैं. इसमें 10 प्रतिशत वोट कांग्रेस को और पांच प्रतिशत गठबंधन को. महागठबंधन को मुस्लिमों का 75 प्रतिशत और कांग्रेस को 25 प्रतिशत वोट मिल रहा है. ऐसे ही वोट 2014 में भी बंटे थे.बीजेपी का जादू युवाओं पर चल रहा है.ऐसे युवाओं की तादाद 18 से 25 साल है. इसके अलावा महिलाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) का भी बीजेपी को साथ मिल रहा है.बीजेपी को ओबीसी मतदाताओं का 55 प्रतिशत, महागठबंध को 35 और कांग्रेस को 10 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना बताई जा रही है. वहीं 18-25 वर्ष के 50 प्रतिशत मतदाता बीजेपी के पाले में खड़े दिख रहे हैं.गठबंधन के चलते उच्च जातियों के बीच भी हलचल मचने की संभावना है. उच्च वर्ग को बीजेपी का वोटर माना जाता है. उत्तर प्रदेश में नौ 'बेल वेदर' सीटें हैं, यानी जो सियासी मौसम का हाल बयां करने वालीं मानी जाती हैं.

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ये सीटें अक्सर जीतने वाली पार्टी के उम्मीदवारों को ही चुनती आई है. इसके अलावा तीन सीटें हमेशा धारा के विपरीत उम्मीदवारों को चुनती आई हैं. यानी चुनाव जीतने वाले दल के कंडीडेट यहां नहीं जीतते. इस प्रकार देखें तो अमेठी, रायबरेली और आजमगढ़ की सीट "अल्टा बेलवेदर" की श्रेणी में आती है. वहीं हवा के रुख के साथ चलने वालीं बेलवेदर सीटों में रामपुर, हरदोई. आखिरी चरण का मतदान 19 को होगा और नतीजे 23 को आएंगे.

वीडियो- यूपी में प्रियंका गांधी के असर पर डॉ. प्रणय रॉय का विश्लेषण

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