बिहार में शनिवार को महागठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों के समझौते पर औपचारिक घोषणा हुई. इस घोषणा के अनुसार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पहली बार स्थापना के बाद से मात्र 20 सीटों पर लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) लड़ेगी. उसने अपने पांच सहयोगियों के लिए 20 सीटें छोड़ी हैं. आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (Lalu Yadav) की महागठबंधन (Mahagathbandhan) के सहयोगी दलों के प्रति इस उदारता के पीछे कई कारण हैं.
सीटों के इस समझौते से साफ है कि आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (Lalu Yadav) ने अपने सहयोगियों को उनकी क्षमता के अनुसार या उनके बारे में अपने आकलन के अनुसार सीटें दीं. इस बार के सीटों के समझौते से यह भी साफ है कि लालू यादव को इस बात का अंदाजा हो गया है कि उनका परंपरागत मुस्लिम-यादव वोट बैंक उन्हें चार से अधिक सीटें जिता पाने में कामयाब नहीं होगा. साथ ही उनको यह भी अंदाजा है कि इस बार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) उनके साथ न होकर उनके विरोधी एनडीए (NDA) के साथ हैं और नीतीश के साथ खास तौर पर एक ऐसा मजबूत वोट बैंक है जिसका मुकाबला करने के लिए उन्हें अपने साथ हर छोटी-बड़ी पार्टी को एकजुट रखना होगा.
हालात को समझते हुए ही शायद लालू यादव ने मात्र नौ सीटें कांग्रेस को दीं जिससे कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व उनसे खुश तो नहीं ही होगा, लेकिन लालू यादव ने यह जोखिम लिया. उन्होंने छोटी पार्टियां, जैसे उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को पांच और जीतन राम मांझी और मुकेश मल्लाह की पार्टी को तीन-तीन सीटें देने का अपना वादा पूरा किया. साथ ही साथ पार्टी के कई नेताओं के आग्रह पर लालू यादव सीपीआई-माले को एक सीट पर समर्थन देने के लिए तैयार हो गए हैं.
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लालू यादव को यह भी मालूम है कि उनके मौजूदा तीन सहयोगी पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. तब इन सहयोगियों को तमाम संसाधन उपलब्ध कराने के बावजूद बीजेपी का सत्ता में आने का सपना पूरा नहीं हो पाया था. लालू इसका कारण जानते थे कि नीतीश का नेतृत्व और पूरा चुनाव जाति, खासकर अगड़ा-पिछड़ा कराने में सफल होने के कारण सत्ता मिल पाई थी.
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लालू यादव और उनके सहयोगी एक बार फिर चुनाव जाति और स्थानीय मुद्दों पर लड़ने की कोशिश करेंगे, क्योंकि चुनाव में वोटों की बिसात पर अभी भी एनडीए आगे है.
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