विज्ञापन
This Article is From Jan 31, 2017

फिल्मों और टीवी पर हिंसा से तंग आ चुका हूं: प्रख्यात लेखक रस्किन बॉण्ड

फिल्मों और टीवी पर हिंसा से तंग आ चुका हूं: प्रख्यात लेखक रस्किन बॉण्ड
रस्किन बॉण्ड
कोलकाता:
अपने लेखन से बच्चों की सपनीली दुनिया रचने वाले रस्किन बॉण्ड यदि यह कहें 'मुझे कई बार लगता है कि दुनिया निश्चित तौर पर रहने लायक अच्छी जगह नहीं है' तो दुख तो होता है. 

82 वर्षीय प्रख्यात लेखक रस्किन बॉण्ड लगातार बढ़ रहे तनाव, हिंसा और पर्यावरण की दुर्गति से चिंतित नजर आते हैं.

टाटा स्टील साहित्य महोत्सव में हिस्सा लेने आए रस्किन बॉण्ड ने कार्यक्रम से इतर कहा, "मुझे कई बार लगता है कि दुनिया अच्छी जगह नहीं है. विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद संघर्ष की स्थितियां बढ़ी हैं. हम अपने चारों ओर मौजूद प्रकृति को नष्ट करने में पुरजोर तरीके से लगे हुए हैं. वृक्ष खत्म होने की कगार पर हैं. एक हद तक इन सबकी जरूरत है, लेकिन अब बहुत हो चुका."

अवनति की ओर जा रही दुनिया की तरफ इशारा करते हुए बॉण्ड कहते हैं कि उनके युवा काल में भी हिंसा मौजूद थी, लेकिन अब हर व्यक्ति के अंदर हिंसा प्रबल हुई है.

कॉलेज प्लेसमेंट में पाना चाहते हैं मोटी सैलरी, तो करें ये काम

अब व्यक्तिगत हिंसा हो रही है 
बॉण्ड कहते हैं, "हमेशा से समाज अवनति की ओर जाता रहा है. हो सकता है उस समय भी हिंसा रही हो, लेकिन तब इसमें अंतर था. जब मैं किशोर था मेरा सामना कभी हिंसा से नहीं हुआ, लेकिन अब तो जैसे लड़ाई छिड़ी हुई है. द्वितीय विश्व युद्ध, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, भारत छोड़ो आंदोलन और इन सबके बाद सभी ने दंगे झेले और देश का बंटवारा हो गया. हिंसा कभी कम नहीं रही. लेकिन अब यह व्यक्तिगत हिंसा का रूप ले चुकी है."

1934 में कसौली में जन्मे रस्किन बॉण्ड का अधिकांश जीवन मसूरी में गुजरा. बॉण्ड की कहानियों में बचपन, प्रेम, आम नागरिकों के जीवन, ट्रेनों, पहाड़ों और बरसात के बेहद मनमोहक वर्णन मिलेंगे.

रस्किन बॉण्ड के अपार साहित्य कर्म में उनकी 'रूम ऑन द रूफ', 'ऑवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा', 'द ब्लू अंब्रेला' और 'अ फाइट ऑफ पीजन्स' पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.
हिंसा के बढ़ते प्रभाव पर चिंता
रस्किन बॉण्ड ने फिल्मों और टेलीविजन पर भी हिंसा के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, "हमारी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में आप भरपूर हिंसा देख सकते हैं. हॉरर फिल्में हैं, दूसरे ग्रह के वासियों पर बनने वाली फिल्में हैं, अत्यंत प्रताड़ना के दृश्य हैं, इन सबके बीच मैं टीवी पर मनोरंजक सामग्री की तलाश करते तंग आ जाता हूं."

उन्होंने कहा, "उन्हें देखकर मैं आतंकित हो जाता हूं. लेकिन आज के बच्चे इन्हें देखकर लुत्फ उठाते और परेशान नहीं होते."

मोबाइल फोन नहीं रखते रस्किन बॉण्ड
उल्लेखनीय है कि रस्किन बॉण्ड आज भी मोबाइल फोन नहीं रखते और न ही उन्हें लैपटॉप इस्तेमाल करना आता है, सोशल मीडिया की तो बात ही छोड़ दीजिए. इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह प्रौद्योगिकी के गुलाम नहीं बनना चाहते.

बाण्ड कहते हैं, "मैं इसे लेकर परेशान नहीं होता और न ही उसके लिए कोशिश करता हूं. लेकिन मैं बहुत चालाक हूं, मैं प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल नहीं कर सकता, लेकिन मेरे घर में चूंकि हर सदस्य के पास मोबाइल फोन या लैपटॉप है तो मैं उनके जरिए इसका इस्तेमाल कर लेता हूं."

रस्किन बॉण्ड इन दिनों आत्मकथा लिख रहे हैं, हालांकि उनका कहना है कि इससे उनके जीवन की सारी सच्चाई नहीं जानी जा सकती.

 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
टाटा स्टील साहित्य महोत्सव, रस्किन बॉण्ड, प्रख्यात लेखक, Ruskin Bond, Violence In Movies, Writer
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com