
नयी दिल्ली:
पुरानी दिल्ली में स्थित हार्डिंग लाइब्रेरी के लिए नया साल उम्मीद लेकर आया है. नए साल में इस ऐतिहासिक संस्थान की दुर्लभ पुस्तकों के डिजिटलीकरण और सदी पुराने भवन की मरम्मत की योजना है.
हार्डिंग लाइब्रेरी को सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के केंद्र के तौर पर पुनर्जीवित करने के अलावा अधिकारी शहर के इस ऐतिहासिक भवन को पर्यटन मानचित्र पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.
कविता पाठ, मुशायरा से जान डालने की कोशिश
लाइब्रेरी की प्रबंधन समिति की सदस्य सचिव शोभा विजेंद्र ने बताया, ‘‘ऐतिहासिक पुस्तकों और पांडुलिपियों की निधि सहेजे यह पुस्तकालय अपने उत्कर्ष के दिनों में नियमित सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन का केंद्र रहा. बीते कई दशकों से इसकी आभा फीकी हुई है और अब हम कविता पाठ, मुशायरा और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से इसमें फिर से नई जान डालने की कोशिश कर रहे हैं.’’ इस पुस्तकालय की यात्रा वर्ष 1862 में शुरू हुई थी और तब इसके संग्रह को पुरानी दिल्ली के टाउन हॉल के लॉरेंस इंस्टिट्यूट में रखा जाता था. वर्ष 1916 में चांदनी चौक स्थित मौजूदा भवन में स्थानांतरित करने के साथ इसे वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर ‘हार्डिंग म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी’ का नया नाम दिया गया.
अब इसका नाम हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी
आजादी के बाद ‘हार्डिंग’ से बदलकर स्वतंत्रता सेनानी लाला हरदयाल के नाम पर इसका नामकरण ‘हरदयाल’ किया गया और अब इसे ‘हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी’ के नाम से जाना जाता है. बहरहाल, अब भी यह हार्डिंग लाइब्रेरी नाम ही प्रचलन में है.
एक लाख 70 हजार किताबों का संग्रह
पुस्तकालय में लोहे की भूरे रंग की ताखों पर सजी करीब एक लाख 70 हजार किताबों का संग्रह है जिनमें 20 किताबें दुनिया की सबसे दुर्लभतम किताबों में शामिल हैं. इसके अलावा 8,000 दुर्लभ पुस्तकें भी हैं. इसकी दुर्लभ 356 पांडुलिपियों में फारसी में लिखा ‘महाभारत’ भी शामिल है. दुर्भाग्य है कि कोष की कमी के कारण यह ऐतिहासिक संस्थान मलिन होता गया और संरक्षण के अभाव में अपनी अंतिम सांसें गिनती कई दुर्लभ पुस्तकों को नितांत देखभाल की आवश्यकता है. इसके अलावा सौ साल पुराने भवन में स्थित पुस्तकालय भी सही देखरेख के अभाव में अपनी चमक खो चुका है.
उन्होंने कहा, ‘‘अब हम इस इमारत को नया जीवन देना चाहते हैं और इसे शहर का प्रतीक चिह्न बनाने के साथ पर्यटन का केंद्र बनाना चाहते हैं. इसलिए हमने इसे नया रूप देने के मकसद से डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार कराने के लिए इनटैक का सहयोग लिया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी इसकी मुद्रित विरासत को डिजिटलीकरण के माध्यम से संरक्षित करना चाहते हैं और इसके वास्तुशिल्प को नया रूप देकर इस भवन की आभा लौटाना चाहते हैं.’’
हार्डिंग लाइब्रेरी को सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के केंद्र के तौर पर पुनर्जीवित करने के अलावा अधिकारी शहर के इस ऐतिहासिक भवन को पर्यटन मानचित्र पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.
कविता पाठ, मुशायरा से जान डालने की कोशिश
लाइब्रेरी की प्रबंधन समिति की सदस्य सचिव शोभा विजेंद्र ने बताया, ‘‘ऐतिहासिक पुस्तकों और पांडुलिपियों की निधि सहेजे यह पुस्तकालय अपने उत्कर्ष के दिनों में नियमित सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन का केंद्र रहा. बीते कई दशकों से इसकी आभा फीकी हुई है और अब हम कविता पाठ, मुशायरा और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से इसमें फिर से नई जान डालने की कोशिश कर रहे हैं.’’ इस पुस्तकालय की यात्रा वर्ष 1862 में शुरू हुई थी और तब इसके संग्रह को पुरानी दिल्ली के टाउन हॉल के लॉरेंस इंस्टिट्यूट में रखा जाता था. वर्ष 1916 में चांदनी चौक स्थित मौजूदा भवन में स्थानांतरित करने के साथ इसे वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर ‘हार्डिंग म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी’ का नया नाम दिया गया.
अब इसका नाम हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी
आजादी के बाद ‘हार्डिंग’ से बदलकर स्वतंत्रता सेनानी लाला हरदयाल के नाम पर इसका नामकरण ‘हरदयाल’ किया गया और अब इसे ‘हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी’ के नाम से जाना जाता है. बहरहाल, अब भी यह हार्डिंग लाइब्रेरी नाम ही प्रचलन में है.
एक लाख 70 हजार किताबों का संग्रह
पुस्तकालय में लोहे की भूरे रंग की ताखों पर सजी करीब एक लाख 70 हजार किताबों का संग्रह है जिनमें 20 किताबें दुनिया की सबसे दुर्लभतम किताबों में शामिल हैं. इसके अलावा 8,000 दुर्लभ पुस्तकें भी हैं. इसकी दुर्लभ 356 पांडुलिपियों में फारसी में लिखा ‘महाभारत’ भी शामिल है. दुर्भाग्य है कि कोष की कमी के कारण यह ऐतिहासिक संस्थान मलिन होता गया और संरक्षण के अभाव में अपनी अंतिम सांसें गिनती कई दुर्लभ पुस्तकों को नितांत देखभाल की आवश्यकता है. इसके अलावा सौ साल पुराने भवन में स्थित पुस्तकालय भी सही देखरेख के अभाव में अपनी चमक खो चुका है.
उन्होंने कहा, ‘‘अब हम इस इमारत को नया जीवन देना चाहते हैं और इसे शहर का प्रतीक चिह्न बनाने के साथ पर्यटन का केंद्र बनाना चाहते हैं. इसलिए हमने इसे नया रूप देने के मकसद से डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार कराने के लिए इनटैक का सहयोग लिया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी इसकी मुद्रित विरासत को डिजिटलीकरण के माध्यम से संरक्षित करना चाहते हैं और इसके वास्तुशिल्प को नया रूप देकर इस भवन की आभा लौटाना चाहते हैं.’’
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