अनुच्छेद 35ए जो कश्मीर के निवासियों को विशेष अधिकार देता है, उसे हटाए जाने के कयासों और राज्य के राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे किसी भी संभावित कदम के कड़े विरोध के बीच सोनिया सिंह की किताब 'डिफाइनिंग इंडिया : थ्रू दीयर आईज' (Defining India: Through Their Eyes) में अरुण जेटली ने स्पष्ट किया है कि इस विवादास्पद अनुच्छेद पर बीजेपी सरकार क्या सोच रही है. इसके खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सोनिया सिंह से बातचीत की थी. अगर सरकार 35ए को हटाने पर पर आगे बढ़ती है तो उनकी बात भविष्यवाणी की तरह सच साबित हो जाएगी.
'अनुच्छेद 35ए (1954 का वह संवैधानिक प्रावधान जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा को यह निर्धारित करने की शक्ति देता है कि कौन राज्य के स्थायी निवासी होंगे जिन्हें राज्य में संपत्ति खरीदने और सरकारी नौकरी करने जैसे अधिकार प्राप्त होंगे, इत्यादि) एक संवैधानिक पहेली है. इसे किसी संशोधन द्वारा संविधान में नहीं जोड़ा गया था जिसे दोनों सदनों में दो तिहाई समर्थन प्राप्त हो. यह राष्ट्रपति की अधिसूचना द्वारा एक कार्यकारी प्रविष्टि थी. इसे पिछले दरवाजे से संविधान में शमिल किया गया. इसमें समानता के अधिकार का एक बुनियादी उल्लंघन शामिल है, क्योंकि यह एक क्षीण मानदंड के आधार पर नागरिकों की दो श्रेणियों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देता है. यह संवैधानिक रूप से कमजोर है.'
यह उस शख्स ने कहा है जो देश के चोटी के वकील रहे हैं और अब भी संवैधानिक और कानूनी मसलों पर सरकार जिनपर भरोसा करती है. इससे यह भी पता चलता है कि केंद्र इस मसले पर क्या सोच रहा है. अनुच्छेद 35ए के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
अरुण जेटली कहते हैं, 'अनुच्छेद 35ए के साथ ही विशेष दर्जे के संयोजन ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों के खिलाफ काम किया है. इसने राज्य में निवेश को बाधित किया. कोई भी बड़ा उद्योग, होटल श्रृंखला, निजी शिक्षण संस्थान आदि राज्य में नहीं आए. वैज्ञानिक अनुसंधान, अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों और तकनीकी कॉलेजों के प्रबंधन के लिए बाहर से विेशष योग्यता रखने वाले लोग उपलब्ध नहीं थे. कोई राज्य में क्यों आना चाहेगा अगर वो यहां घर नहीं खरीद सकता, उसके बच्चे सरकारी कॉलेजों में दाखिला नहीं ले सकते और वो सरकारी नौकरी नहीं कर सकते? राज्य के संवैधानिक ढांचे ने यहां के लोगों को चोट पहुंचाई, लेकिन इसने कुछ लोगों की अलगाववादी मानसिकता को संतुष्ट किया.'
जेटली जोर देकर कहते हैं, 'बहरहाल, पाकिस्तान ने परंपरागत युद्ध लड़ने की कोशिश की लेकिन हार गया. पिछले तीन दशकों में राज्य में अशांति फैलाने के लिए उसने संगठित आतंकवाद और सीमापार से घुसपैठ को प्रोत्साहित किया. लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सार्वजनिक व्यवस्था चरमरा गई. लोग आतंक की वजह से असुरक्षा में जीते थे. भय के माहौल में प्रशासन और चुनाव दोनों प्रभावित हुए. पूरा कश्मीरी पंडित समुदाय और ज्यादातर सिख राज्य से विस्थापित हो गए. यह किसी जातीय सफाए से कम नहीं था. यह स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता की एकमात्र सबसे बड़ी विफलता है.'
आज उन्हें लगता है कि कश्मीर मुद्दे के लिए यह एक निर्णायक क्षण है.
जेटली कहते हैं, 'देश आज इस बात पर चर्चा कर रहा है कि 70 साल पहले नेहरू द्वारा की गई बड़ी भूल को कैसे सुधारा जाए. अधिकांश भारतीय मानते हैं कि पंडितजी की दूरदर्शिता और कश्मीर का गठन विनाशकारी साबित हुए. सात दशकों का अनुभव और जो कीमत चुकानी पड़ी वो हमें घूर रहे हैं. कश्मीरी लोगों के हितों को जेहन में रखते हुए हमारा दृष्टिकोण राज्य के लोगों के कल्याण और सुरक्षा तथा संप्रभुता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होना चाहिए. इससे अलगाववादियों और आतंकियों के खिलाफ आक्रामक रवैये को दर्शाता है. अभी जो हम जो देख रहे हैं वह घाटी में कानून का शासन स्थापित करने का प्रयास है. यह एक निर्णायक क्षण है.'
(पेंगुइन इंडिया से अनुमति के तहत सोनिया सिंह की किताब 'डिफाइनिंग इंडिया: थ्रू देयर आइज' के अंश. किताब की प्रति के ऑर्डर करें.)
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