Independence Day 2018: देशभक्ति के गीत जो दिला देंगे जोश
नई दिल्ली:
15 August, 2018: भारत में 72वें स्वतंत्रता दिवस (72nd Independence Day) का जश्न मनाया जा रहा है. स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2018) के मौके पर लाल किले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री तिरंगा लहराते हैं तो हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है. 1947 में भारत को अंग्रेजों के शासन से आजादी मिली थी, और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा लहराया था. आजादी बॉलीवुड का ऐसा टॉपिक है, जिसे लेकर ढेरों फिल्में बनीं और गाने भी रचे गए. भारत की स्वतंत्रता के 71 सालों के सफर से हमने यहां सात अत्यन्त देशप्रेम में पगे मार्मिक गीतों का चयन किया है, जिन्हें सुनते ही आपके अंदर देशभक्ति का जज्बा जाग जाएगा.
Independence Day (स्वतंत्रता दिवस) के मौके पर देशभक्ति भरे कुछ गानेः
1- दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है (क़िस्मत, 1943)
संगीतकार: अनिल विश्वास
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: अमीरबाई कर्नाटकी एवं साथी
पहला ऐसा सार्वजनिक क्रान्तिकारी गीत, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींदें हराम कर दी थीं. आज़ादी के ठीक पाँच बरस पहले प्रदर्शित हुए इस गीत ने व्यापक जन-समुदाय को अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फिल्मों के लिए पहले भी कुछ ओजपूर्ण और सांकेतिक गीत बनते रहे थे, मगर ‘क़िस्मत’ का यह गीत, जैसे आज़ादी के आह्वान का एक धारदार सन्देश लेकर आया. उस पर अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ के साथ अनिल विश्वास, पं. प्रदीप और अरुण कुमार का कोरस इसे ऐतिहासिक बना गए.
2- वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों (शहीद, 1948)
संगीतकार: मास्टर गुलाम हैदर
गीतकार: राजा मेंहदी अली खां
गायन: मो. रफ़ी खान मस्तान एवं साथ
अपने जमाने की मशहूर फिल्म कंपनी फिल्मिस्तान की फिल्म ‘शहीद’ के लिए रचे गये इस ऐतिहासिक गीत को मास्टर गुलाम हैदर ने संगीतबद्ध किया था, जिसे राजा मेंहदी अली ख़ां ने शब्द दिए. खान मस्ताना, मो. रफ़ी और साथियों की आवाज में इस गीत ने उस दौर में लोकप्रियता का कीर्तिमान बनाया और अपनी तरह से फ़िल्म की कामयाबी का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू साबित हुआ. इस गीत की धुन, उसकी संवेदनशील गायिकी और पूरे गीत में कोरस के समवेत स्वर के साथ मो. रफी और खान मस्तान की संवेदना चरम पर है. दिलीप कुमार की इस गीत पर भावप्रवण अदायगी भी अलग से रेखांकित किये जाने योग्य है. आज भी यह गीत सुना जाता है और अपनी बनावट में एक अलग ही मुकाम रखता है.
3- दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल (जागृति, 1954)
संगीतकार: हेमन्त कुमार
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: आशा भोंसले एवं साथी
हेमन्त कुमार की बेहद सौम्य ढंग की संगीतकार छवि वाला यह गीत, राष्ट्रप्रेम का एक आदर्श गीत है. पूरी तरह गांधीवादी विचारधारा के तहत विकसित किए गए इस गीत की एक विशिष्टता यह भी है कि इसके माध्यम से महात्मा गांधी के प्रयासों को स्वतंत्रता संघर्ष के सन्दर्भ में विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है. हमेशा की तरह, कवि पं. प्रदीप ने इस गाने में भी अपनी वही भावनाएं उड़ेल दी हैं, जिस तरह के गीतों के लिए वे अतुलनीय माने जाते हैं. आशा भोंसले की आवाज़ में इस गीत की पूरी संरचना अत्यन्त सुन्दर, कर्णप्रिय और सादगी भरी बन पड़ी है, जो किसी भी राष्ट्र-प्रेम से सम्बन्धित गीत या कविता-गायन के लिए सर्वथा उपयुक्त मानी जाती है। आज भी यह गीत कालजयी गीत का स्थान रखता है.
4- कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों (हकीकत, 1964)
संगीतकार: मदन मोहन
गीतकार: कैफी आजमी
गायन: मो. रफी एवं साथी
भारत-चीन के युद्ध की विभीषिका से उपजे त्रासदी और हतोत्साह से जब पूरा देश दुःखी था, ऐसे में इस फिल्म के माध्यम से प्रगतिशील शायर कैफी आजमी साहब ने कमाल का गीत रचा. यह गीत दरअसल भारतीयों में अपनी सेना के प्रति आदर और प्रेम भरने के सन्देशपरक गीत के रूप में भी देखा जा सकता है. संवेदनशील संगीतकार मदन मोहन, जो अपनी गजलनुमा धुनों के लिए फ़िल्म संगीत की दुनिया में अलग से याद किए जाते हैं, ने इस गीत की धुन को ख़ूबसूरत ढंग से संवारा है. मो. रफी की दर्दभरी आवाज में यह गीत असाधारण ऊंचाइयां हासिल करता है. आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद इस गीत का प्रतीकात्मक सन्देश यह भी है कि इसे रचने वाले तीन महान लोग- मदन मोहन, कैफी आजमी और मो. रफी, कहीं अपनी शुद्ध रचनात्मकता में हिन्दू-मुस्लिम एकता की अद्भुत इबारत रच रहे थे।
5- मेरा रंग दे बसन्ती चोला (शहीद, 1965)
संगीतकार: प्रेम धवन
गीतकार: प्रेम धवन
गायन: मुकेश, महेन्द्र कपूर एवं राजेन्द्र मेहता
एक गीतकार और संगीतकार दोनों ही रूपों में याद किये जाने वाले प्रेम धवन ने यह गीत उसी तरह अपने खाते में दर्ज़ कर खुद की शोहरत को अमर कर लिया है, जिस तरह चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने अपनी कहानी ‘उसने कहा था’ से साहित्य की दुनिया में स्थान बनाया. पूरी तरह राष्ट्रीयता के सन्देश से पगी हुई ऐतिहासिक फ़िल्म ‘शहीद’ में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के क्रान्तिकारी बलिदान को आधार बनाकर रचे गये इस बेहद भावुक और हृदय विदारक गीत में इन तीनों की आवाज़ के लिए मुकेश, महेन्द्र और राजेन्द्र मेहता ने पार्श्वगायन किया था. आज भी यह गीत सुनकर रूलाई आती है और देशभक्ति के अनूठे जज़्बे से भीतर तक भिगो डालती है. यह कहा जा सकता है कि यह गीत राष्ट्रभक्ति के गीतों में एक महान गीत का दर्ज़ा रखता है.
6- जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा (सिकन्दर-ए-आजम, 1965)
संगीतकार: हंसराज बहल
गीतकार: राजेन्द्र कृष्ण
गायन: मो. रफी एवं कोरस
यह गीत भारत के गौरवशाली अतीत, सांस्कृतिक सम्पन्नता और भारतीयता के आह्वान का गीत है, जिसे अत्यन्त सार्थक अर्थों में गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने कलमबद्ध किया था। संगीतकार हंसराज बहल की प्रतिभा से जन्में इस गीत की धुन एक नयी भंगिमा के तहत सकारात्मक ढंग से रोचक बन पड़ी है और सुनने पर आपको रोमांच से भरती है. इतना ही नहीं, मो. रफी की सदाबहार आवाज़ में सम्पन्न हुए इस गीत पर पृथ्वीराज कपूर की सिनेमाई अभिव्यक्ति भी शानदार लगती है. इस गीत का फ़िल्मांकन भव्य तरीके से किया गया है और पोरस के किरदार में उसकी सेना के विजय-जुलूस जैसा प्रदर्शन दिखाते हुए दरअसल निर्देशक, भारत का गौरव गान करता है, जो सटीक तौर पर उभर सका. हमेशा से सदाबहार रहा यह गीत, आज भी हर एक के स्मरण में बिल्कुल नया है.
7- भारत हमको जान से प्यारा है (रोजा, 1992)
संगीतकार: ए.आर. रहमान
गीतकार: पी.के. मिश्र
गायन: हरिहरन एवं कोरस
इधर के दशकों में बनने वाले राष्ट्रभक्ति के गीतों में यह गाना सबसे अधिक संवेदनशील ढंग से रचा गया है.
यतींद्र मिश्र, 'लता सुर गाथा' के लेखक हैं. उनकी इस किताब को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
Independence Day (स्वतंत्रता दिवस) के मौके पर देशभक्ति भरे कुछ गानेः
1- दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है (क़िस्मत, 1943)
संगीतकार: अनिल विश्वास
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: अमीरबाई कर्नाटकी एवं साथी
पहला ऐसा सार्वजनिक क्रान्तिकारी गीत, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींदें हराम कर दी थीं. आज़ादी के ठीक पाँच बरस पहले प्रदर्शित हुए इस गीत ने व्यापक जन-समुदाय को अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फिल्मों के लिए पहले भी कुछ ओजपूर्ण और सांकेतिक गीत बनते रहे थे, मगर ‘क़िस्मत’ का यह गीत, जैसे आज़ादी के आह्वान का एक धारदार सन्देश लेकर आया. उस पर अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ के साथ अनिल विश्वास, पं. प्रदीप और अरुण कुमार का कोरस इसे ऐतिहासिक बना गए.
2- वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों (शहीद, 1948)
संगीतकार: मास्टर गुलाम हैदर
गीतकार: राजा मेंहदी अली खां
गायन: मो. रफ़ी खान मस्तान एवं साथ
अपने जमाने की मशहूर फिल्म कंपनी फिल्मिस्तान की फिल्म ‘शहीद’ के लिए रचे गये इस ऐतिहासिक गीत को मास्टर गुलाम हैदर ने संगीतबद्ध किया था, जिसे राजा मेंहदी अली ख़ां ने शब्द दिए. खान मस्ताना, मो. रफ़ी और साथियों की आवाज में इस गीत ने उस दौर में लोकप्रियता का कीर्तिमान बनाया और अपनी तरह से फ़िल्म की कामयाबी का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू साबित हुआ. इस गीत की धुन, उसकी संवेदनशील गायिकी और पूरे गीत में कोरस के समवेत स्वर के साथ मो. रफी और खान मस्तान की संवेदना चरम पर है. दिलीप कुमार की इस गीत पर भावप्रवण अदायगी भी अलग से रेखांकित किये जाने योग्य है. आज भी यह गीत सुना जाता है और अपनी बनावट में एक अलग ही मुकाम रखता है.
3- दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल (जागृति, 1954)
संगीतकार: हेमन्त कुमार
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: आशा भोंसले एवं साथी
हेमन्त कुमार की बेहद सौम्य ढंग की संगीतकार छवि वाला यह गीत, राष्ट्रप्रेम का एक आदर्श गीत है. पूरी तरह गांधीवादी विचारधारा के तहत विकसित किए गए इस गीत की एक विशिष्टता यह भी है कि इसके माध्यम से महात्मा गांधी के प्रयासों को स्वतंत्रता संघर्ष के सन्दर्भ में विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है. हमेशा की तरह, कवि पं. प्रदीप ने इस गाने में भी अपनी वही भावनाएं उड़ेल दी हैं, जिस तरह के गीतों के लिए वे अतुलनीय माने जाते हैं. आशा भोंसले की आवाज़ में इस गीत की पूरी संरचना अत्यन्त सुन्दर, कर्णप्रिय और सादगी भरी बन पड़ी है, जो किसी भी राष्ट्र-प्रेम से सम्बन्धित गीत या कविता-गायन के लिए सर्वथा उपयुक्त मानी जाती है। आज भी यह गीत कालजयी गीत का स्थान रखता है.
4- कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों (हकीकत, 1964)
संगीतकार: मदन मोहन
गीतकार: कैफी आजमी
गायन: मो. रफी एवं साथी
भारत-चीन के युद्ध की विभीषिका से उपजे त्रासदी और हतोत्साह से जब पूरा देश दुःखी था, ऐसे में इस फिल्म के माध्यम से प्रगतिशील शायर कैफी आजमी साहब ने कमाल का गीत रचा. यह गीत दरअसल भारतीयों में अपनी सेना के प्रति आदर और प्रेम भरने के सन्देशपरक गीत के रूप में भी देखा जा सकता है. संवेदनशील संगीतकार मदन मोहन, जो अपनी गजलनुमा धुनों के लिए फ़िल्म संगीत की दुनिया में अलग से याद किए जाते हैं, ने इस गीत की धुन को ख़ूबसूरत ढंग से संवारा है. मो. रफी की दर्दभरी आवाज में यह गीत असाधारण ऊंचाइयां हासिल करता है. आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद इस गीत का प्रतीकात्मक सन्देश यह भी है कि इसे रचने वाले तीन महान लोग- मदन मोहन, कैफी आजमी और मो. रफी, कहीं अपनी शुद्ध रचनात्मकता में हिन्दू-मुस्लिम एकता की अद्भुत इबारत रच रहे थे।
5- मेरा रंग दे बसन्ती चोला (शहीद, 1965)
संगीतकार: प्रेम धवन
गीतकार: प्रेम धवन
गायन: मुकेश, महेन्द्र कपूर एवं राजेन्द्र मेहता
एक गीतकार और संगीतकार दोनों ही रूपों में याद किये जाने वाले प्रेम धवन ने यह गीत उसी तरह अपने खाते में दर्ज़ कर खुद की शोहरत को अमर कर लिया है, जिस तरह चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने अपनी कहानी ‘उसने कहा था’ से साहित्य की दुनिया में स्थान बनाया. पूरी तरह राष्ट्रीयता के सन्देश से पगी हुई ऐतिहासिक फ़िल्म ‘शहीद’ में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के क्रान्तिकारी बलिदान को आधार बनाकर रचे गये इस बेहद भावुक और हृदय विदारक गीत में इन तीनों की आवाज़ के लिए मुकेश, महेन्द्र और राजेन्द्र मेहता ने पार्श्वगायन किया था. आज भी यह गीत सुनकर रूलाई आती है और देशभक्ति के अनूठे जज़्बे से भीतर तक भिगो डालती है. यह कहा जा सकता है कि यह गीत राष्ट्रभक्ति के गीतों में एक महान गीत का दर्ज़ा रखता है.
6- जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा (सिकन्दर-ए-आजम, 1965)
संगीतकार: हंसराज बहल
गीतकार: राजेन्द्र कृष्ण
गायन: मो. रफी एवं कोरस
यह गीत भारत के गौरवशाली अतीत, सांस्कृतिक सम्पन्नता और भारतीयता के आह्वान का गीत है, जिसे अत्यन्त सार्थक अर्थों में गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने कलमबद्ध किया था। संगीतकार हंसराज बहल की प्रतिभा से जन्में इस गीत की धुन एक नयी भंगिमा के तहत सकारात्मक ढंग से रोचक बन पड़ी है और सुनने पर आपको रोमांच से भरती है. इतना ही नहीं, मो. रफी की सदाबहार आवाज़ में सम्पन्न हुए इस गीत पर पृथ्वीराज कपूर की सिनेमाई अभिव्यक्ति भी शानदार लगती है. इस गीत का फ़िल्मांकन भव्य तरीके से किया गया है और पोरस के किरदार में उसकी सेना के विजय-जुलूस जैसा प्रदर्शन दिखाते हुए दरअसल निर्देशक, भारत का गौरव गान करता है, जो सटीक तौर पर उभर सका. हमेशा से सदाबहार रहा यह गीत, आज भी हर एक के स्मरण में बिल्कुल नया है.
7- भारत हमको जान से प्यारा है (रोजा, 1992)
संगीतकार: ए.आर. रहमान
गीतकार: पी.के. मिश्र
गायन: हरिहरन एवं कोरस
इधर के दशकों में बनने वाले राष्ट्रभक्ति के गीतों में यह गाना सबसे अधिक संवेदनशील ढंग से रचा गया है.
यतींद्र मिश्र, 'लता सुर गाथा' के लेखक हैं. उनकी इस किताब को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
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