सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन(GHCAA) के चीफ यतिन ओझा (Yatin Oza) को गुजरात हाईकोर्ट को बिना शर्त माफी मांगने की इजाजत दे दी है.SC ने कहा कि उसे उम्मीद है कि हाईकोर्ट ओझा के माफीनामे पर विचार करेगा और मामले को खत्म कर देगा. वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, अभिषेक मनु सिंघवी, अरविंद दातार ओझा के लिए उपस्थित हुए और अदालत से कहा कि वह मामले को समाप्त कर दें क्योंकि ओझा भावुक हो गए थे और उन्हें यह नहीं कहना चाहिए था. वह दोहराएंगे नहीं और वह 62 वर्ष के हैं और उन्होंने अच्छा काम किया है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अजय रस्तोगी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई की. इसके बाद यतिन ओझा ने बिना शर्त माफी (unconditional apology)मांगी.
पालघर में साधुओं की हत्या का मामला, महाराष्ट्र पुलिस की चार्जशीट का परीक्षण करेगा SC
जस्टिस कौल ने कहा कि गुजरात HC के पास बहुत सारी विरासत है. बार हमेशा बेंच के साथ मुद्दे को इंगित कर सकता है लेकिन भाषा को देखने की जरूरत है और इस तरह की भाषा में मतभेद नहीं होना चाहिए. SC ने ओझा को हाईकोर्ट में एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने के लिए कहा जो इस मामले पर विचार करेगा और उस मामले को समाप्त करेगा. अदालत ने दो सप्ताह के लिए सुनवाई टाल दी और इस बीच ओझा हाईकोर्ट में बिना शर्त माफी पेश करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम विषय यह है कि याचिकाकर्ता बार का नेता रहा है और कई बार खुद को व्यक्त करने में अपनी सीमा को पार कर गया है. यह मामला है और बिना शर्त माफी मांगी गई है.याचिकाकर्ता ओझा कहते हैं कि इस्तेमाल किए गए शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. शिकायतें हो सकती हैं, लेकिन अनुचित आरोपण नहीं हो.
याचिकाकर्ता का कहना है कि हाईकोर्ट में भी बिना शर्त माफी मांगेंगे और अपने वरिष्ठ वकील के गाउन से वंचित करने के संबंध में पूर्ण अदालत में एक प्रतिनिधित्व करेंगे. यह एक पर्याप्त सजा थी. लेकिन इस बीच हमें उम्मीद है कि HC इस पर विचार करेगा और मामले को बंद कर देगा. गौरतलब है कि गुजरात हाईकोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष, यतिन ओझा, जिनके वरिष्ठ पदनाम को हाल ही में हटा दिया गया था, ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है कि हाईकोर्ट का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी) और 21 के तहत उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन है.
ओझा से हाईकोर्ट रजिस्ट्री के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी करने के लिए पदनाम छीन लिया था. पिछले महीने फेसबुक पर एक लाइव सम्मेलन के दौरान ओझा ने उच्च न्यायालय और रजिस्ट्री के खिलाफ आरोप लगाए थे कि
गुजरात हाईकोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा भ्रष्ट आचरण है और हाई-प्रोफ़ाइल उद्योगपति और तस्करों और देशद्रोहियों का पक्ष लिया जा रहा है. हाईकोर्ट का कामकाज प्रभावशाली और अमीर लोगों और उनके अधिवक्ताओं के लिए है. अरबपति दो दिनों में उच्च न्यायालय से आदेश लेकर चले जाते हैं जबकि गरीबों और गैर-वीआईपी लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है.
इस पर हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ संज्ञान लेकर अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया था.
वोडाफोन-आइडिया कंपनी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं