याकूब मेमन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
1993 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी के मामले में नया मोड़ आ गया है। याकूब की याचिका की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की मौजूदा बेंच के दो जजों की राय इस केस में अलग रहने के बाद चीफ जस्टिस एच.एल दत्तू ने केस की सुनवाई के लिए नई बेंच बनाने का निर्णय लिया है। लिहाज़ा, अब इस मामले की सुनवाई कल होगी। याकूब ने चीफ जस्टिस से अपने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी। लिहाजा, फैसला आने तक याकूब की फांसी का मामला टलता नजर आ रहा है।
दरअसल, याकूब की याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच के दोनों जजों की राय अलग-अलग होने पर याक़ूब का केस चीफ़ जस्टिस के पास चला गया था। याकूब की याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच के एक जज ने कई बड़े सवाल उठा दिए थे। ये सवाल उसकी क्यूरेटिव पेटिशन को लेकर उठाए गए हैं।
याकूब ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती, क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैरकानूनी है। याकूब के मुताबिक, उसकी पुर्नविचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी कर दिया गया, जबकि उसकी क्यूरेटिव याचिका कोर्ट में पेंडिंग थी। ऐसे में डेथ वारंट जारी करना गैरकानूनी है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे एक जज ने सवाल उठाते हुए कहा था कि याकूब की क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई में उन्हें शामिल क्यों नहीं किया गया। याकूब के समर्थन में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने भी याचिका दाखिल कर उसकी फांसी पर रोक लगाने की मांग की है।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने याकूब की याचिका पर सुनवाई मंगलवार को भी जारी रखने का निर्णय लिया था। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने याकूब का डेथ वारंट जारी कर दिया है, जिसके लिए 30 जुलाई का दिन तय किया गया है।
ऐसे में क्यूरेटिव से पहले डेथ वारंट जारी करना गैर-कानूनी है, नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसके लिए 27 मई 2015 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया गया है। इसके लिए शबनम जजमेंट का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि डेथ वारंट सारे कानूनी उपचार पूरे होने के बाद जारी होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने शबनम और उसके प्रेमी का डेथ वारंट को रद्द किया था। कोर्ट ने दोनों की फांसी को 15 मई को बरकरार रखा था और छह दिनों के भीतर 21 मई को डेथ वारंट जारी हुआ था। 27 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस डेथ वारंट को रद्द कर दिया था।
2010 में अपने परिवार के सात लोगों की हत्या में फांसी की सजायाफ्ता शबनम और सलीम पुनर्विचार, क्यूरेटिव और दया याचिका से पहले ही डेथ वारंट जारी कर दिया गया था।
दरअसल, याकूब की याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच के दोनों जजों की राय अलग-अलग होने पर याक़ूब का केस चीफ़ जस्टिस के पास चला गया था। याकूब की याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच के एक जज ने कई बड़े सवाल उठा दिए थे। ये सवाल उसकी क्यूरेटिव पेटिशन को लेकर उठाए गए हैं।
याकूब ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती, क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैरकानूनी है। याकूब के मुताबिक, उसकी पुर्नविचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी कर दिया गया, जबकि उसकी क्यूरेटिव याचिका कोर्ट में पेंडिंग थी। ऐसे में डेथ वारंट जारी करना गैरकानूनी है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे एक जज ने सवाल उठाते हुए कहा था कि याकूब की क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई में उन्हें शामिल क्यों नहीं किया गया। याकूब के समर्थन में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने भी याचिका दाखिल कर उसकी फांसी पर रोक लगाने की मांग की है।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने याकूब की याचिका पर सुनवाई मंगलवार को भी जारी रखने का निर्णय लिया था। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने याकूब का डेथ वारंट जारी कर दिया है, जिसके लिए 30 जुलाई का दिन तय किया गया है।
ऐसे में क्यूरेटिव से पहले डेथ वारंट जारी करना गैर-कानूनी है, नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसके लिए 27 मई 2015 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया गया है। इसके लिए शबनम जजमेंट का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि डेथ वारंट सारे कानूनी उपचार पूरे होने के बाद जारी होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने शबनम और उसके प्रेमी का डेथ वारंट को रद्द किया था। कोर्ट ने दोनों की फांसी को 15 मई को बरकरार रखा था और छह दिनों के भीतर 21 मई को डेथ वारंट जारी हुआ था। 27 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस डेथ वारंट को रद्द कर दिया था।
2010 में अपने परिवार के सात लोगों की हत्या में फांसी की सजायाफ्ता शबनम और सलीम पुनर्विचार, क्यूरेटिव और दया याचिका से पहले ही डेथ वारंट जारी कर दिया गया था।
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