नई दिल्ली:
भारत में निर्मित एक लड़ाकू विमान, जो लगभग हर वायुसेना प्रमुख का पसंदीदा विषय रहा है, उसके निर्माण में इतनी अधिक देरी हो गई कि ऐसा लगने लगा कि यह एक ऐसा वादा है जो कभी पूरा नहीं हो पाएगा। हालांकि 'तेजस' नाम के इस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का विकास शुरू होने के करीब तीन दशक बाद अब बेंगलुरु में शुक्रवार को भारतीय वायुसेना में आधिकारिक रूप से शामिल हो गया, जो कई मायनों में विश्वस्तरीय है।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट कार्यक्रम में हुई देरी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। इसके कारणों को लेकर कई बार गर्मागर्म बहस भी हो चुकी है। इस बारे में तेजस कार्यक्रम में मुख्य भूमिका निभाने वाली सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का कहना है कि भारतीय वायुसेना का लक्ष्य बदलता रहा कि तेजस में वास्तव में उसे क्या चाहिए। कंपनी ने यह भी बताया कि पोखरण परमाणु परीक्षण, 1998 के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का भी तेजस कार्यक्रम पर बहुत बुरा असर पड़ा और इसके लिए अतिमहत्वपूर्ण तकनीक हासिल नहीं की जा सकी।
जहां तक वायुसेना की बात है, वह इस बात पर जोर देती रही कि विश्व बाजार में इससे बेहतर विकल्प मौजूद हैं और ऐसी कंपनियां मौजूद हैं, जो मिलिट्री एविएशन में दशकों से काम कर रही हैं। तेजस के बारे में वह कहती रहीं कि जब तक यह वायुसेना में शामिल होगा, तब तक यह पुराना हो चुका होगा।
हालांकि ऐसा नहीं हुआ। कम से कम अभी तक तो नहीं।
इजराइल में बने मल्टीरोल रडार एल्टा 2032, दुश्मन के विमानों पर हमला करने के लिए हवा से हवा में मार करने वाली डर्बी मिसाइलें और जमीन पर स्थित निशाने के लिए आधुनिक लेजर डेजिग्नेटर और टारगेटिंग पॉड्स से लैस तेजस क्षमता के मामले में कई मायनों में फ्रांस में निर्मित मिराज 2000 के जैसा है, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इस कार्यक्रम के लिए बेंचमार्क माना था।
विमान का परीक्षण करने वाला प्रत्येक पायलट तेजस के फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम से संतुष्ट है, चाहे कलाबाजी में इसकी कुशलता हो या फिर इसके फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम की रिस्पॉन्सिवनेस। तेजस की परीक्षण उड़ानों के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना में किसी भी पायलट को कभी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। अब तक इसकी 3000 से ज्यादा उड़ानें सफलतापूर्वक पूरी की जा चुकी हैं।
इन तथ्यों के बावजूद आलोचकों का कहना है कि तेजस पूरी तरह स्वदेशी नहीं है। उनका कहना है कि इसका इंजन अमेरिकन है, रडार और हथियार प्रणाली इजराइली हैं, इसकी इजेक्शन सीट ब्रिटिश है, साथ ही इसके कई अन्य कलपुर्जे भी आयातित हैं। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का कहना है कि फ्रांस के रफाल और स्वीडन के ग्रिपन जैसे विमानों में भी विदेशी सिस्टम लगे हैं क्योंकि इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच कलपुर्जों का विकास करना बहुत ही महंगा और बहुत ही ज्यादा समय लेने वाला होता है।
तो क्या तेजस कार्यक्रम ने भारत के इंजीनियरिंग और विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान दिया है? वास्तव में दिया है। तेजस में लगा फ्लाइ-बाइ-वायर सिस्टम जो विमान को नियंत्रित करने के लिए कंप्यूटर नियंत्रित इनपुट देता है, वह पूरी तरह भारतीय है। विमान में लगा मिशन कंप्यूटर, जो सेंसर से मिलने वाले डेटा को प्रोसेस करता है, वह भी पूरी तरह भारतीय है। मिशन कंप्यूटर का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ओपन आर्किटेक्चर फ्रेमवर्क को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। इसका मतलब है कि इसे भविष्य में अपग्रेड किया जा सकता है।
विमान का ढांचा भी भारत में बने कार्बन फाइबर, जो कि धातु की तुलना में कहीं ज्यादा हल्का और मजबूत होता है, से बना है। यहां तक कि विमान में लगे सामान्य सिस्टम जिसमें ईंधन प्रबंधन से लेकर स्टीयरिंग तक, सब भारत में ही निर्मित हैं। एक महत्वपूर्ण सेंसर तरंग रडार, जो कि दुश्मन के विमान या जमीन से हवा में दागी गई मिसाइल के तेजस के पास आने की सूचना देता है, भारत में ही बना है।
आधुनिक लड़ाकू विमान, जिसमें भारतीय वायुसेना का सर्वश्रेष्ठ विमान सुखोई 30 भी शामिल है, अपने महंगे रखरखाव के लिए कुख्यात हैं। सुखोई 30 की फ्लीट में 60 फीसदी से भी कम विमान एक वक्त पर मिशन के लिए उपलब्ध होते हैं, जो कि भारतीय वायुसेना के लिए चिंता का विषय है। एचएएल का कहना है कि तेजस 70 फीसदी से ज्यादा समय के लिए उपलब्ध होगा, जब भी मिशन पर जाने की जरूरत होगी और 80 फीसदी के लिए भी प्रयास जारी हैं। यह वर्तमान में वायुसेना के किसी भी विमान द्वारा हासिल किए जाने वाले लक्ष्य से कहीं ज्यादा है।
शुक्रवार को, जब भारतीय वायुसेना की 45वीं स्क्वाड्रन, 'फ्लाइंग डैगर्स' के रूप में तेजस को शामिल किया जाएगा तो तेजस कार्यक्रम के एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। एक दशक से भी पहले की जरूरतों के हिसाब से बनाया गया विमान तेजस कभी भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू विमानों में शुमार नहीं होगा। हालांकि यह भारतीय वायुसेना को मिग 21 का विकल्प उपलब्ध कराएगा, जो वह चाहती थी। तेजस के रूप में भारतीय वायुसेना के पास एक आधुनिक लड़ाकू विमान है जो आधुनिकीकरण और क्षमताओं में विस्तार के साथ और बेहतर होता जाएगा। फिलहाल, यह भारतीय वायुसेना में इस नए अध्याय के शुरू होने के जश्न का समय है।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट कार्यक्रम में हुई देरी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। इसके कारणों को लेकर कई बार गर्मागर्म बहस भी हो चुकी है। इस बारे में तेजस कार्यक्रम में मुख्य भूमिका निभाने वाली सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का कहना है कि भारतीय वायुसेना का लक्ष्य बदलता रहा कि तेजस में वास्तव में उसे क्या चाहिए। कंपनी ने यह भी बताया कि पोखरण परमाणु परीक्षण, 1998 के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का भी तेजस कार्यक्रम पर बहुत बुरा असर पड़ा और इसके लिए अतिमहत्वपूर्ण तकनीक हासिल नहीं की जा सकी।
जहां तक वायुसेना की बात है, वह इस बात पर जोर देती रही कि विश्व बाजार में इससे बेहतर विकल्प मौजूद हैं और ऐसी कंपनियां मौजूद हैं, जो मिलिट्री एविएशन में दशकों से काम कर रही हैं। तेजस के बारे में वह कहती रहीं कि जब तक यह वायुसेना में शामिल होगा, तब तक यह पुराना हो चुका होगा।
हालांकि ऐसा नहीं हुआ। कम से कम अभी तक तो नहीं।
इजराइल में बने मल्टीरोल रडार एल्टा 2032, दुश्मन के विमानों पर हमला करने के लिए हवा से हवा में मार करने वाली डर्बी मिसाइलें और जमीन पर स्थित निशाने के लिए आधुनिक लेजर डेजिग्नेटर और टारगेटिंग पॉड्स से लैस तेजस क्षमता के मामले में कई मायनों में फ्रांस में निर्मित मिराज 2000 के जैसा है, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इस कार्यक्रम के लिए बेंचमार्क माना था।
विमान का परीक्षण करने वाला प्रत्येक पायलट तेजस के फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम से संतुष्ट है, चाहे कलाबाजी में इसकी कुशलता हो या फिर इसके फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम की रिस्पॉन्सिवनेस। तेजस की परीक्षण उड़ानों के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना में किसी भी पायलट को कभी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। अब तक इसकी 3000 से ज्यादा उड़ानें सफलतापूर्वक पूरी की जा चुकी हैं।
इन तथ्यों के बावजूद आलोचकों का कहना है कि तेजस पूरी तरह स्वदेशी नहीं है। उनका कहना है कि इसका इंजन अमेरिकन है, रडार और हथियार प्रणाली इजराइली हैं, इसकी इजेक्शन सीट ब्रिटिश है, साथ ही इसके कई अन्य कलपुर्जे भी आयातित हैं। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का कहना है कि फ्रांस के रफाल और स्वीडन के ग्रिपन जैसे विमानों में भी विदेशी सिस्टम लगे हैं क्योंकि इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच कलपुर्जों का विकास करना बहुत ही महंगा और बहुत ही ज्यादा समय लेने वाला होता है।
तो क्या तेजस कार्यक्रम ने भारत के इंजीनियरिंग और विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान दिया है? वास्तव में दिया है। तेजस में लगा फ्लाइ-बाइ-वायर सिस्टम जो विमान को नियंत्रित करने के लिए कंप्यूटर नियंत्रित इनपुट देता है, वह पूरी तरह भारतीय है। विमान में लगा मिशन कंप्यूटर, जो सेंसर से मिलने वाले डेटा को प्रोसेस करता है, वह भी पूरी तरह भारतीय है। मिशन कंप्यूटर का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ओपन आर्किटेक्चर फ्रेमवर्क को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। इसका मतलब है कि इसे भविष्य में अपग्रेड किया जा सकता है।
विमान का ढांचा भी भारत में बने कार्बन फाइबर, जो कि धातु की तुलना में कहीं ज्यादा हल्का और मजबूत होता है, से बना है। यहां तक कि विमान में लगे सामान्य सिस्टम जिसमें ईंधन प्रबंधन से लेकर स्टीयरिंग तक, सब भारत में ही निर्मित हैं। एक महत्वपूर्ण सेंसर तरंग रडार, जो कि दुश्मन के विमान या जमीन से हवा में दागी गई मिसाइल के तेजस के पास आने की सूचना देता है, भारत में ही बना है।
आधुनिक लड़ाकू विमान, जिसमें भारतीय वायुसेना का सर्वश्रेष्ठ विमान सुखोई 30 भी शामिल है, अपने महंगे रखरखाव के लिए कुख्यात हैं। सुखोई 30 की फ्लीट में 60 फीसदी से भी कम विमान एक वक्त पर मिशन के लिए उपलब्ध होते हैं, जो कि भारतीय वायुसेना के लिए चिंता का विषय है। एचएएल का कहना है कि तेजस 70 फीसदी से ज्यादा समय के लिए उपलब्ध होगा, जब भी मिशन पर जाने की जरूरत होगी और 80 फीसदी के लिए भी प्रयास जारी हैं। यह वर्तमान में वायुसेना के किसी भी विमान द्वारा हासिल किए जाने वाले लक्ष्य से कहीं ज्यादा है।
शुक्रवार को, जब भारतीय वायुसेना की 45वीं स्क्वाड्रन, 'फ्लाइंग डैगर्स' के रूप में तेजस को शामिल किया जाएगा तो तेजस कार्यक्रम के एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। एक दशक से भी पहले की जरूरतों के हिसाब से बनाया गया विमान तेजस कभी भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू विमानों में शुमार नहीं होगा। हालांकि यह भारतीय वायुसेना को मिग 21 का विकल्प उपलब्ध कराएगा, जो वह चाहती थी। तेजस के रूप में भारतीय वायुसेना के पास एक आधुनिक लड़ाकू विमान है जो आधुनिकीकरण और क्षमताओं में विस्तार के साथ और बेहतर होता जाएगा। फिलहाल, यह भारतीय वायुसेना में इस नए अध्याय के शुरू होने के जश्न का समय है।
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