बात पिछले साल की है. तारीख 23 अक्टूबर, दिन मंगलवार. जब शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) ने नई पार्टी गठन की सूचना दी. कहा कि पार्टी का रजिस्ट्रेशन हो गया है और नाम मिला है- प्रगतिशाली समाजवादी पार्टी लोहिया. नई पार्टी के लिए कई महीनों से कोशिशें जारीं थीं. यूं तो पहले, शिवपाल यादव और उनके करीबियों की ओर से 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा' नाम उछाला जा रहा था. मगर बाद में साफ कर दिया गया कि रजिस्ट्रेशन प्रगतिशाली समाजवादी पार्टी के नाम से हुआ है. उस दौरान शिवपाल यादव ने नई पार्टी बनाने के पीछे वजह बताते हुए कहा था, "वह हमेशा सपा में एकजुटता चाहते थे, लेकिन कुछ ‘चुगलखोरों और चापलूसों' की वजह से उन्हें मजबूरन पार्टी से किनारा करना पड़ा. "
भाई मुलायम सिंह के लिए यूपी के सियासी रण में हमेशा 'लक्ष्मण' बनकर खड़े रहने वाले शिवपाल यादव(Shivpal Singh Yadav) ने जब सपा से 'रुसवाई' के बाद भतीजे अखिलेश यादव से मुकाबले के लिए पार्टी बनाई तो सियासी गलियारे में तरह-तरह की चर्चाएं उड़नें लगीं. इसमें ज्यादातर चर्चाएं अफवाह के तौर पर रहीं. मसलन, शिवपाल सिंह यादव की पार्टी को परदे के पीछे से बीजेपी सपोर्ट कर रही है. और मुलायम सिंह की सरकार में कभी बेहद प्रभावशाली नेता रहे शख्स के जरिए बीजेपी बड़ी डील में जुटी है. सपाई खेमे में भी यह चर्चा उड़ने लगी कि सपा-बसपा गठबंधन के काट के तौर पर बीजेपी शिवपाल यादव को आगे कर दांव चल रही है. इस बीच बसपा मुखिया मायावती का बंगला योगी सरकार ने शिवपाल सिंह यादव को दे दिया. वर्तमान में महज जसवंत सीट से विधायक की हैसियत रखने वाले शिवपाल सिंह यादव को जैसे ही बंगला मिला, फिर उनके विरोधी बीजेपी से सांठगांठ की चर्चा शुरू कर दिए. हालांकि इन चर्चाओं की प्रमाणिकता नहीं रही, क्योंकि किसी बात की पुष्टि के लिए कुछ सुबूत चाहिए.
बहरहाल, पिछले साल उड़ी ये 'अफवाहें' शनिवार को फिर से चर्चा में आ गईं, जब उत्तर-प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन की घोषणा के दौरान बसपा मुखिया मायावती ने भी इसे 'बल' दे दिया. उन्होंने यह कहकर चौंका दिया कि शिवपाल यादव की पार्टी में बीजेपी का पैसा लगा है. मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा- शिवपाल यादव और अन्य लोगों की पार्टी में जो बीजेपी पानी की तरह पैसा बहा रही है, वो सारा पैसा बर्बाद हो जाएगा. मायावती ने इस बहाने यह जताने की कोशिश की यूपी में प्रमुख दलों के मुकाबले हाल में जो नए दल गठित हुए हैं, वह महज वोटकटवा हैं और बीजेपी परदे के पीछे से उन दलों को चला रही है. खास बात है कि जब मायावती शिवपाल यादव की पार्टी में बीजेपी का पैसा लगा होने पर तंज कस रहीं थीं,तब अखिलेश यादव मुस्कुराने लगे. यह देख पत्रकारों की तरफ से भी हंसी की आवाज आई. मायावती ने कहा कि वह लोगों से भी अपील करना चाहती हैं कि इस तरह की पार्टियों का लक्ष्य वोट बांटकर बीजेपी की मदद करना है, इस नाते इनके झांसे में न फंसे.
बयान के पीछे मायावती की बड़ी चाल
मायावती ने यह आरोप यूं ही नहीं लगा दिया. इसके पीछे उनका बड़ा दांव रहा. जिस तरह से शिवपाल यादव ने सपा के कई पुराने नेताओं को अपनी पार्टी से जोड़ा है, जिस ढंग से कई जिलों में असरदार तमाम जातियों के छोटे संगठनों को अपनी छतरी के नीचे लाने का काम किया है, उससे गठबंधन कैंप में कुछ चिंता की लहरें भी हैं. गठबंधन कैंप के रणनीतिकारों का कई सीटों पर कम अंतर से हार-जीत होती है. ऐसे में अगर शिवपाल यादव ने अपने प्रभाव के दम पर वोटकटवा की भूमिका निभा दी तो गठबंधन को नुकसान हो सकता है. ऐसे में मायावती ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत शिवपाल यादव और बीजेपी के बीच सांठगांठ होने का संदेश देने की कोशिश की. ताकि बीजेपी के विरोध में खड़े तबका का वोट शिवपाल यादव की पार्टी को न मिल सके.
प्रसपा ने आरोपों को किया खारिज
उधर, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने बसपा मुखिया मायावती के इस आरोप को 'झूठा एवं निराधार' बताया है कि उसे बीजेपी आर्थिक मदद दे रही है.प्रसपा के मुख्य प्रवक्ता सीपी राय ने एक बयान जारी कर कहा, बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से यह आरोप लगाया गया कि भाजपा द्वारा शिवपाल यादव को आर्थिक सहयोग दिया जा रहा है, यह आरोप झूठा एवं निराधार है.''उन्होंने कहा, ''यह सभी को पता है कि कौन लोग आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और कौन सी पार्टी में टिकट बेचे जाते हैं. ''उल्लेखनीय है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज ही साझा प्रेस कांफ्रेंस कर अखिलेश के चाचा शिवपाल की पार्टी का मजाक उडाते हुये कहा कि ''भाजपा का पैसा बेकार हो जायेगा क्योंकि वह ही शिवपाल की पार्टी चला रही है.''
राय ने कहा कि प्रसपा पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाया गया है, यह आरोप पूर्णतया तथ्यहीन व बेबुनियाद है. आम जनमानस और मीडिया को यह पता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर बार-बार किसने सरकार बनाई है.उन्होंने कहा कि अखिलेश का जब जन्म भी नहीं हुआ था, उसके पहले से ही उत्तर प्रदेश में शिवपाल भाजपा और साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ सबसे मुखर रहे हैं. राय ने कहा कि अखिलेश को यह समझना चाहिए कि इसके पूर्व भी मायावती पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों का वोट लेकर भाजपा की गोद में बैठ चुकी हैं. ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि इतिहास फिर से स्वयं को दोहराए और मायावती चुनाव के बाद भाजपा से जा मिलें.
वीडियो- सपा-बसपा के बीच हुआ गठबंधन
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