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This Article is From Aug 31, 2017

बिहार के कांग्रेस विधायकों को लेकर क्यों चिंतित हैं सोनिया गांधी? दो नेताओं को तलब किया

बिहार के कांग्रेस के 27 विधायकों में से कम से कम 18 के नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के साथ जाने की आशंका

बिहार के कांग्रेस विधायकों को लेकर क्यों चिंतित हैं सोनिया गांधी? दो नेताओं को तलब किया
बिहार कांग्रेस के विधायक दल में विभाजन की आशंका को लेकर सोनिया गांधी ने राज्य के दो वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुलाया है.
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल विधायकों को रोकने में जुटे
कांग्रेस विधायकों का मत- लालू यादव का साथ देगा नुकसान
लालू यादव के साथ गठबंधन को लेकर विधायकों में असंतोष
पटना: बिहार कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह और अशोक चौधरी को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली तलब किया है. सिंह जहां विधायक दल के नेता हैं वहीं चौधरी न केवल पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष पिछले कई सालों से हैं बल्कि महगठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. इन दोनों नेताओं को पार्टी के विधायक दल में संभावित विभाजन को लेकर बुलाया गया है.

दिल्ली में पार्टी नेता इस आशय की खबर से परेशान हैं कि राज्य के 27 विधायकों में से कम से कम 18 नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के साथ कभी भी जा सकते हैं. पार्टी के दो वरिष्ठ महासचिव गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल ने विधायकों को रोकने की कमान खुद सम्भाल रखी है और सोनिया गांधी भी अब बिहार के नेताओं से बृहस्पतिवार को मिलने वाली हैं.

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बिहार कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि पार्टी के 27 विधायकों में से अधिकांश का मत है कि राष्ट्रीय स्तर पर लालू यादव के साथ रहना पार्टी की मजबूरी हो सकती है लेकिन विधायक अपने क्षेत्र में कैसे लालू का बचाव करें, आलाकमान यह समझने के लिए तैयार नहीं है. इन विधायकों का मानना है कि लालू का आधारभूत वोट उन्हें मिले या नहीं लेकिन उनके अपने जाति के वोट शायद ही लालू यादव के साथ रहते हुए मिलें. इस बात का पूरा अंदाजा उन्हें अभी से है. इनमें से बगावत पर उतारू अधिकांश विधायक ऊंची जाति से हैं.

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विद्रोह पर उतारू विधायकों का मानना है कि लालू ने कभी भी गठबंधन में उन्हें सम्मानजनक स्थान न तो विधानसभा चुनाव में और न ही लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में दिया. साथ ही राज्य कांग्रेस के नेताओं के प्रति उनका व्यवहार भी कभी सम्मानजनक नहीं रहा. वहीं नीतीश कुमार के साथ उनका अनुभव इसके विपरीत रहा. नीतीश ने न केवल लालू यादव के दबाव के बावजूद 2015 के चुनाव में 40 सीटें दीं बल्कि चुनाव प्रचार में भी कोई कसर नहीं रहने दी. साथ ही मंत्रियों के कामकाज में उनकी दखलअंदाजी न के बराबर रही. नीतीश कुमार के नेतृत्व के कारण बीजेपी की शहरों की परम्परागत सीटें कांग्रेस ने जीतीं.

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कांग्रेस के विधायक जहां बगावत पर उतारू हैं वहीं नीतीश इस मामले में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से सलाह लेकर ही कोई कदम उठाएंगे. नीतीश का प्रयास होगा कि उनकी पार्टी के किसी कदम से उनके और बीजेपी के बीच कोई तनाव पैदा न हो.

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