नई दिल्ली:
प्रसिद्ध जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने रविवार को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि तीर्थ में सल्लेखना के बाद अंतिम सांस ली. पूरे जैन समाज के लिए यह दिन बेहद दुखद है. तीर्थ के एक बयान के मुताबिक सल्लेखना एक जैन धार्मिक प्रथा है, जिसमें आध्यात्मिक शुद्धि के लिए स्वैच्छिक आमरण उपवास किया जाता है.
- आचार्य विद्यासागर महाराज दिगंबर जैन समुदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे. संत आचार्य विद्यासागर, आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे. जब आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि ली थी तब उन्होंने अपना आचार्य पद मुनि विद्यासागर को सौंप दिया था. तभी मुनि विद्यासागर महज 26 वर्ष की आयु में ही 22 नवंबर 1972 को आचार्य हो गए थे.
- आचार्य विद्यासागर का जन्म 1946 में कर्नाटक के बेलगांव जिले के गांव चिक्कोड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्टूबर को हुआ था. विद्यासागर के पिता का नाम मल्लप्पाजी अष्टगे और माता का नाम श्रीमती अष्टगे था. घर पर विद्यासागर को सब नीलू के नाम से बुलाते थे. बता दें कि आचार्य विद्यासागर महाराज अबतक 500 से अधिक दिक्षा दे चुके हैं.
- आचार्य विद्यासागर महाराज की माता श्रीमति और पिता मल्लप्पाजी ने भी उन्हीं से दिक्षा प्राप्त की थी और फिर उन्होंने समाधि ले ली थी.
- आचार्य विद्यासागर को उनके गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए व्यापक रूप से पहचाना जाता था.
- 1968 में 22 वर्ष की आयु में, आचार्य विद्यासागर महाराज को आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा दिगंबर साधु के रूप में दीक्षा दी गई थी और फिर 1972 में उन्हें आचार्य का दर्जा प्राप्त हुआ था.
- अपने पूरे जीवन में, आचार्य विद्यासागर महाराज जैन धर्मग्रंथों और दर्शन के अध्ययन और अनुप्रयोग में गहराई से लगे रहे.
- वह संस्कृत और अन्य भाषाओं पर अपनी पकड़ के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने कई ज्ञानवर्धक टिप्पणियां, कविताएं और आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे हैं.
- जैन समुदाय में उनके कुछ व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त कार्यों में निरंजन शतक, भावना शतक, परीष जया शतक, सुनीति शतक और श्रमण शतक शामिल हैं.
- उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने और किसी भी राज्य में न्याय प्रणाली को उसकी आधिकारिक भाषा में बनाने के अभियान का भी नेतृत्व किया था.
- 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया था.