राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) का 1984 के दंगों पर दिया गया एक बयान कांग्रेस को अक्सर परेशान करता है.
नई दिल्ली:
वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद उपजी स्थिति से निपटने के लिए कांग्रेस को उनके बेटे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) से बेहतर कोई नहीं दिखा और इसके बाद राजीव गांधी राजनीति में आए. बतौर पायलट करियर की शुरुआत करने वाले राजीव गांधी ने सियासत में क्या खोया और क्या पाया इसकी चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है. कांग्रेस तमाम मौकों पर राजीव गांधी के कामों का जोर-शोर से बखान करती है, लेकिन राजीव गांधी का ही एक बयान कांग्रेस को अक्सर परेशान करता है. वह बयान जिसे विरोधी दल कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
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19 नवंबर 1984. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनका पहला जन्मदिन. दिल्ली में सिख विरोधी दंगों को शुरू हुए पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे और राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने तमाम रस्मों-रिवाज के साथ इंदिरा गांधी का जन्मदिन मनाने की घोषणा कर दी. यह वो दौर था जब इंडिया गेट के नजदीक बोट क्लब सियासत का केंद्र बिंदु हुआ करता था और इसको आज के रामलीला मैदान या जंतर-मंतर की हैसियत प्राप्त थी. इंदिरा का जन्मदिन इस रूप में भी खास था कि बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी पहली बार किसी रैली को संबोधित करने जा रहे थे. कांग्रेस ने आयोजन की तैयारियों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.
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वह दिन आ गया. बोट क्लब में दिल्ली के अलावा पड़ोसी राज्यों से जुटी 'कार्यकर्तानुमा भीड़' का पूरा ध्यान राजीव गांधी की तरफ था. वह बोलने खड़े हुए और जो कहा वह करीब चार दशक बाद अब भी रह-रहकर कांग्रेस को सालता है. उस रैली में राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) का पूरा संबोधन इंदिरा गांधी की हत्या के इर्द-गिर्द ही था. दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगों पर राजीव गांधी ने कुछ खास नहीं बोला. मनोज मित्ता और एचएस फुल्का अपनी किताब 'व्हेन अ ट्री शुक डेल्ही' में लिखते हैं कि, राजीव गांधी ने बोट क्लब की रैली में कहा, 'गुस्से में उठाया गया कोई भी कदम देश के लिए घातक होता है. कई बार गुस्से में हम जाने-अनजाने ऐसे ही लोगों की मदद करते हैं जो देश को बांटना चाहते हैं'. लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा वो चौंकाने वाला था. उन्होंने आगे कहा, 'हमें मालूम है कि लोगों के अंदर कितना क्रोध है, लेकिन जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती है'.
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इस बयान के बाद सिख समुदाय में राजीव गांधी के प्रति काफी नाराजगी बढ़ी. ऐसा माना गया कि राजीव की दंगाइयों के प्रति हमदर्दी थी और उन्होंने कत्लो-गारत को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जिस रूप में लिया जाना चाहिए था. आज भी अक्सर विरोधी राजीव गांधी के इस बयान को कोट करते हैं और कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. यह बयान कांग्रेस के गले की हड्डी बन चुका है.
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