विज्ञापन

नौवीं अनुसूची है क्या? नीतीश कुमार क्या इसी से बिहार में वापस लाएंगे 65% आरक्षण, समझिए यह रण

Ninth Schedule of Constitution : बिहार एक बार फिर जातियों में उलझ गया है. सभी राजनीतिक दल जाति आधारित आरक्षण बढ़ाने की मांग को लेकर आगे दिखना चाहते हैं और यहीं से नौवीं अनुसूची का जिक्र करते नहीं थक रहे...आखिर यह है क्या और इसके फायदे-नुकसान जान लें.

नौवीं अनुसूची है क्या? नीतीश कुमार क्या इसी से बिहार में वापस लाएंगे 65% आरक्षण, समझिए यह रण
Bihar : नीतीश कुमार पर कांग्रेस और राजद नौवीं अनुसूची को लेकर लगातार दबाव बना रहे हैं.

Reservation Demand : नौवीं अनुसूची. यह आजकल हर जगह चर्चा में है. हर राजनीतिक दल के नेता आजकल इस पर बात कर रहे हैं. बिहार के संबंध में ज्यादा इसकी बात हो रही है. अभी दो दिन पहले ही 24 जुलाई को बिहार विधानसभा में इसे लेकर खूब घमासान हुआ.बिहार विधानसभा में बुधवार को राज्य के संशोधित आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों के भारी हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही बाधित हुई. बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने बार-बार विपक्षी सदस्यों से अनुरोध किया कि वे अपनी सीट पर लौट जाएं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हस्तक्षेप करने के लिए खड़े हुए, पर विपक्षी विधायक नहीं माने.

Latest and Breaking News on NDTV
नीतीश कुमार ने कहा, ‘‘मेरे कहने पर आप सभी जाति आधारित गणना के लिए सहमत हुए जिसके बाद एससी, एसटी, ओबीसी और अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए कोटा बढ़ाया गया. अब जब पटना उच्च न्यायालय ने आरक्षण कानूनों को रद्द कर दिया है, तो हम उच्चतम न्यायालय गए हैं. इन्हें नौवीं अनुसूची में डालने के लिए केंद्र से एक औपचारिक अनुरोध भी किया गया है.''

पटना उच्च न्यायालय का आदेश

20 जून को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका देते हुये पटना उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में दिये जाने वाले आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने के इसके फैसले को रद्द कर दिया. मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया. इन याचिकाओं में नवंबर 2023 में राज्य सरकार द्वारा जाति आधारित गणना के बाद आरक्षण में वृद्धि को लेकर लाए गए कानूनों का विरोध किया गया था.

Latest and Breaking News on NDTV

कब से शुरू हुआ ये मामला?

दरअसल, नीतीश कुमार सरकार ने पिछले साल 21 नवंबर को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में वंचित जातियों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की सरकारी अधिसूचना जारी की थी. बिहार सरकार द्वारा कराए गए जाति आधारित गणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जबकि एससी और एसटी की कुल आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है. सरकार का मानना है कि आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन केंद्र द्वारा ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किये जाने के कारण पहले ही हो चुका है. इसलिए राज्य सरकार अपने आरक्षण कानूनों में संशोधन लेकर आई, जिसके तहत दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एवं ईबीसी (आर्थिक रूप से कमजोर) वर्ग के लिए कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया. ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा मिलाकर बिहार में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत हो गई थी.

Latest and Breaking News on NDTV

क्या है राजनीति?

इसके अलावा बिहार सरकार ने केंद्र से यह भी अनुरोध किया था कि राज्य के आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखा जाए, ताकि इसको लेकर कोई कानूनी अड़चन न उत्पन्न हो सके. बिहार सरकार के जाति आधारित गणना कराने और आरक्षण की सीमा को बढाए जाने को कई टिप्पणीकारों ने ‘‘मंडल 2'' करार दिया था और बाद में कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता में आने पर राष्ट्रव्यापी जाति सर्वेक्षण का वादा किया था, जो उस समय बिहार में सत्ता साझा कर रही थी. राजद और कांग्रेस अब भी इस मामले को नौवीं अनुसूची में डालने का दबाव बना रही हैं. इन दोनों के समर्थन के राजनीतिक हित भी हैं. नीतीश कुमार पर एक तो इससे दबाव बढ़ेगा और दूसरा केंद्र सरकार से नीतीश कुमार का टकराव बढ़ेगा, जिससे मोदी सरकार अल्पमत में आ सकती है. 

Latest and Breaking News on NDTV

नौवीं अनुसूची है क्या?

नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची है, जिसे किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. इसे संविधान के पहले संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया था. पहले संशोधन में अनुसूची में 13 कानूनों को जोड़ा गया था. बाद के विभिन्न संशोधनों सहित वर्तमान में संरक्षित कानूनों की संख्या 284 है. नौवीं अनुसूची भारतीय संविधान में एक विशेष प्रावधान है, जो विधायिका को संविधा संशोधन के जरिए कुछ कानूनों को न्यायिक समीक्षा से छूट देता है. नौवीं अनुसूची में नया अनुच्छेद 31बी जोड़ा गया, जिसे अनुच्छेद 31ए के साथ मिलकर कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने तथा जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया. नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ असंगति के आधार पर अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.

Latest and Breaking News on NDTV

कहां से मिलती है ताकत?

अनुच्छेद 31बी नौवीं अनुसूची में शामिल कृत्यों और विनियमों को किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दिए जाने और अवैध ठहराए जाने से संरक्षण प्रदान करता है. अनुच्छेद 31ए की तुलना में इसका दायरा अधिक व्यापक है. अनुच्छेद 31ए केवल पांच विशिष्ट श्रेणियों के कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दिए जाने से बचाता है. इसमें मुख्य रूप से भूमि और आरक्षण से संबंधित कानून शामिल हैं. ये कानून मुख्य रूप से कृषि और भूमि से संबंधित हैं, हालांकि, आरक्षण से संबंधित कुछ कानून भी इसमें शामिल हैं. उदाहरण के लिए, अनुसूची में तमिलनाडु का एक कानून है, जो राज्य में 69% आरक्षण को अनिवार्य बनाता है. नौवीं अनुसूची आर्थिक असमानता को कम करने तथा आरक्षण जैसे कानूनों एवं नीतियों के संरक्षण के माध्यम से सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने में मदद करती है.

नौवीं अनुसूची क्यों है खतरनाक?

नौवीं अनुसूची सरकार को आरक्षण जैसे कानून बनाने की अनुमति देती है, जो संविधान द्वारा गारंटीकृत समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. सरकार राजनीतिक कारणों से या निहित स्वार्थों की रक्षा के लिए नौवीं अनुसूची में कानून जोड़ सकती है, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी हो सकती है. नौवीं अनुसूची में कानूनों को शामिल करने से न्यायपालिका की उनकी संवैधानिकता की समीक्षा करने की शक्ति सीमित हो जाती है, जिससे न्यायिक निगरानी का अभाव हो जाता है. नौवीं अनुसूची विभिन्न कानूनों और नीतियों के लिए असमान व्यवहार प्रदान करती है. कुछ कानून न्यायिक जांच से सुरक्षित हैं, जबकि अन्य न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं. नौवीं अनुसूची में कानूनों को शामिल करने के मानदंडों के बारे में स्पष्टता का अभाव है. इससे कानूनों और नीतियों की संवैधानिकता के बारे में भ्रम और अनिश्चितता पैदा हो सकती है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी हो सकती है. उदाहरण के लिए, झारखंड के नए विधेयक में सरकारी पदों में आरक्षण को बढ़ाकर 77% करने की बात कही गई है. झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार से इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कहा है.
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com