मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को सुप्रीम कोर्ट से 19 फरवरी तक गिरफ़्तारी से राहत मिल गई है। आइए समझते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला और क्यों तीस्ता के खिलाफ कार्रवाई पर विवाद खड़ा हो रहा है।
तीस्ता सीतलवाड़ 2002 से ही गुजरात में दंगा पीड़ितों की मदद में जुटी हैं। उनके एनजीओ ने कई सारे मामलों में पीड़ितों की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ी है और कई आरोपियों को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई है और तो और, नरेंद्र मोदी को जिस वजह से विशेष जांच दल (एसआईटी) के सामने पेश होना पड़ा था, उसके पीछे भी तीस्ता ही थीं।
गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाए थे कि नरेंद्र मोदी दंगों के लिए ज़िम्मेदार हैं। इसी की जांच के लिए एसआईटी ने नरेंद्र मोदी से पूछताछ भी की थी। पहली बार उन्हें किसी जांच आयोग के सामने पेश होना पड़ा था।
एसआईटी ने मोदी से पूछताछ के बाद उनको क्लीनचिट दे दी थी। अब इस क्लीनचिट को ज़किया हाईकोर्ट में चुनौती दे रही हैं। अब आते हैं मौजूदा मामले पर। मामला है गुलबर्ग सोसाइटी में रायट म्यूजियम बनाने का।
गुलबर्ग सोसाइटी के करीब 20 घर फिलहाल खंडहर बने हुए हैं। सिर्फ एक घर में कासिम मंसूरी को छोड़कर और बाकी घर अब भी जले, बर्बाद हुए पड़े हैं। तीस्ता ने यह घोषणा की थी कि यहां दंगों में मारे गए लोगों की याद में ये म्यूजियम बनाया जाएगा। इसके लिए यहां जिनके घर हैं, उन्हें बाजार कीमत पर उसे खरीदने की बात कही थी। लेकिन फिर ज़मीन के दाम अगले 3-4 सालों में बेहद बढ़ जाने की वजह से यह योजना ठन्डे बस्ते में पड़ गई।
इस दौरान गुलबर्ग सोसाइटी के कुछ दंगा पीड़ितों ने तीस्ता पर आरोप लगाया कि रायट म्यूजियम बनाने के लिए उन्होंने एक बड़ी रकम का चंदा जमा किया था, जिसमें से कुछ पैसा उन्होंने अपने निजी फायदे के लिए खर्च कर दिए। ऐसी एक अर्ज़ी क्राइम ब्रांच को भी सौंपी गई। क्राइम ब्रांच ने भी इस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी।
क्राइम ब्रांच ने कहा कि तीस्ता ने करीब 10 करोड़ रुपये का चंदा जमा किया और उसमें से 3-4 करोड़ रुपये अपने निजी फायदे के लिए खर्च किए। तीस्ता से इस मामले में पूछताछ हो चुकी है। क्राइम ब्रांच उन्हें गिरफ्तार करना चाहती है। तीस्ता इसके खिलाफ अग्रिम ज़मानत के लिए गुजरात हाईकोर्ट गई थी, जहां से उनकी याचिका ख़ारिज हो गई।
क्राइम ब्रांच कुछ ही मिनट बाद अहमदाबाद से 400 किलोमीटर दूर मुंबई में उनके घर गिरफ़्तारी के लिए पहुंच गई। वहां तीस्ता नहीं मिलीं और कुछ घंटे बाद उन्हें अपने वकीलों के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट से गिरफ़्तारी पर रोक मिल गई।
इस बीच गुलबर्ग सोसाइटी में भी दो खेमे हो गए हैं। एक बड़ा खेमा अब भी कह रहा है की तीस्ता ने उनके लिए बहुत किया है और उन्होंने किसी तरह का ग़बन नहीं किया है। लेकिन फरियादी कह रहे हैं कि उन्हें न्याय मिले इसके लिए जरूरी है कि तीस्ता की गिरफ़्तारी हो।
तीस्ता के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मामला जितना बड़ा बताया जा रहा है, उतना बड़ा है नहीं। उनका दावा है कि मामला करोड़ों का नहीं, महज चार लाख का है और सिर्फ मोदी सरकार के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने की कीमत तीस्ता अदा कर रही हैं।
लेकिन इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर है। वहां आरोपों से ज़्यादा सबूत अहमियत रखते हैं। दोनों ही पक्षों को अपने आरोप साबित करने के लिए सबूत पेश करने होंगे।
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