West Bengal Assembly Elections 2021 : पश्चिम बंगाल में गुरुवार को एक नई पार्टी अस्तित्व में आ गई है. गुरुवार को 35 साल के मुस्लिम धर्मगुरू अब्बास सिद्दीकी (Muslim Cleric Abbas Siddiqui) ने अपनी नई पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट (ISF) ऐलान किया है. इस पार्टी के सामने आने से पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटबैंक की तस्वीर बदल सकती है. सिद्दीक़ी (Abbas Siddiqui) की अभी राजनेता के तौर पर हैसियत साबित नहीं हुई है, हालांकि, ऐसी जानकारी है कि वो लगभग 50 सीटों तक अपनी नई पार्टी के नेता उतार सकते हैं. हुगली जिले के फुरफुरा शरीफ के धर्मगुरू सिद्दीक़ी यहां पर दलित, मटुआ और मुस्लिम समुदाय के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं. उन्हें यहां पर 'भाईजान' के नाम से बुलाया जाता है.
दिलचस्प बात यह है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) उनके नेतृत्व में पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ने का ऑफर दे चुके हैं. वो 3 जनवरी को यहां आए थे और सिद्दीक़ी से मिले थे. ऐसी जानकारी है कि सिद्दीक़ी ने एक वक्त तृणमूल के साथ लड़ने के बदले में 40 सीटों की मांग की थी, जिसे तृणमूल ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने अकेले ही मैदान में लड़ने का फैसला किया.
कुछ तबकों में इस बात की फिक्र है कि अब्बास सिद्दीक़ी तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक को नुकसान पहुंचा सकते हैं. बंगाल में मुस्लिम टीएमसी के साथ पिछले 10 सालों से बने हुए हैं. लेकिन इस बीच सिद्दीक़ी ने अपने भाषणों से काफी नाम कमाया है, जो सोशल मीडिया पर काफी शेयर किए जाते हैं.
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वहीं कुछ लोगों को लगता है कि उनके प्रभाव को जरूरत से ज्यादा आंका जा रहा है. उनका कहना है कि वो धार्मिक नेता के तौर पर वो प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन राजनीति में नहीं. बता दें कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों में तबसे सेंध लगने की बात हो रही है, जबसे बिहार विधानसभा चुनावों में कुछ सीटें जीतने के बाद से ओवैसी ने बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा की है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसके बाद से यहां मुस्लिम वोट बैंक संगठित हो गया है.
हाल ही में अपने एक वायरल हुए भाषण में सिद्दीक़ी ने कहा था, 'हम ही हैं, जो बीजेपी को बंगाल में लड़ाई में रख रहे हैं. 2021 में, बंगाल की लड़ाई में बीजेपी और अब्बास सिद्दीक़ी के बीच होगी. टीएमसी बस हमें बेवकूफ बना रही है....वो बीजेपी को बस डर की तरह पेश कर रही है. एक ओर अब्बास सिद्दीक़ी और मुस्लिम, दलित, आदिवासी, मटुआ और गरीब हिंदू हैं. वहीं दूसरी ओर से फासीवादी सरकार है. तृणमूल अभी 70-80 नेता ओर खोएगी. 70-80 मुस्लिम उम्मीदवार देने का कोई फायदा नहीं है. कुछ 40-50 अच्छे मुस्लिम उम्मीदवार भी सबकुछ बदल सकते हैं.'
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