याकूब मेमन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
याकूब मेमन को भारत लाने के लिए किसी प्रकार का गुप्त समझौता नहीं हुआ था। बल्कि उसे भारत लाने के प्रयास के तहत भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान में अपने संपर्कों के माध्यम से उसे यह भरोसा दिला दिया कि वह भारत में पूरी तरह से सुरक्षित रहेगा। एक वरिष्ठ जांचकर्ता ने एनडीटीवी को इस बारे में जानकारी दी।
फिलहाल 1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई को संभावित फांसी के मामले की सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा। याकूब को फांसी देने के लिए नागपुर जेल में तैयारी पूरी कर ली गई है। याकूब इसी जेल में है।
उल्लेखनीय है कि 1993 बम धमकों से ठीक एक दिन पहले याकूब अपने पूरे परिवार के साथ देश छोड़कर चला गया था। बता दें कि इन धमाकों में 257 नागरिकों की मौत हो गई थी। मुंबई के तमाम जगहों पर इन धमाकों को अंजाम दिया गया था।
इन धमाकों के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों को याकूब को भारत लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। और अगस्त 1994 में उसे भारत लाया गया और मुंबई की अदालत में पेश किया गया। उस दौरान यह भी कहा गया कि याकूब मेमन ने नेपाल में स्वयं आत्मसमर्पण किया जबकि सुरक्षा एजेंसियों ने उसे गिरफ्तार करने का दावा किया था। कई नेताओं और अधिकारियों का कहना है कि उसे भारत लाने के लिए जांचकर्ताओं ने एक समझौता किया गया था।
धमाकों की जांच करने में लगे सीबीआई की विशेष जांच बल के प्रमुख शांतनु सेन थे। उनका कहना है कि हमें पता चला था कि याकूब मेमन के भाई टाइगर मेमन ने उसे भारत आने से कई बार रोका था। उसे समझाने का प्रयास किया था। दोनों में इस बात को लेकर काफी मतभेद भी थे। शांतनु के अनुसार उस समय याकूब और उसका भाई टाइगर पाकिस्तान के कराची में थे। हमलों के मुख्य सूत्रधार दाउद इब्राहिम और टाइगर मेमन तब भी लापता बताए गए थे।
सेन के अनुसार भारत लौटने को लेकर मेमन परिवार में गहरे मतभेद हो गए थे। याकूब और उसके परिवार को पाकिस्तान में घुटन महसूस हो रही थी। वे वहां असुरक्षित महसूस कर रहे थे। उन्हें यह अहसास होने लगा था कि वह ऐसे माहौल में ज्यादा दिन तक नहीं रह सकते हैं और यह भी पाकिस्तानी उन पर ज्यादा भरोसा नहीं करेंगे।
सेन के अनुसार मेमन परिवार के साथ आईबी और रॉ के अधिकारी संपर्क में थे। सेन के अनुसार उन्हें हमने भारतीय न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखने की बात कही थी।
सेन के अनुसार पहले दिन से हमें उनकी हरकत की जानकारी थी। हमारे अपने संपर्क थे। हमे सब जानकारी थी कि वह कब कहां आ जा रहे हैं। वे कब कहां हैं, ताकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सके।
सेन का दावा है कि मेमन बंधुओं को किसी प्रकार धोखा नहीं दिया गया है, उनसे कोई झूठा वादा नहीं किया गया था। याकूब मेमन के भारत आने के बाद उसने अपने परिवार के कई अन्य सदस्यों को भारत आने में काफी अहम भूमिका अदा की। पाकिस्तान से भारत वापस आने वालों में उसके दो अन्य भाई भी थे जिन्होंने उम्र कैद की सजा दी गई है।
सेन के अनुसार 11 लोगों में केवल चार ही दोषी साबित हुए। उसके अभिभावकों को बेल मिल गई और अपनी मौत मरे। अगर उनके खिलाफ भी केस चलता तो उन पर लगे आरोप हटा दिए जाते।
बी रमन रॉ के वरिष्ठ अधिकारी थे। रमन का कॉलम उनकी मृत्यु के बाद हाल ही में प्रकाशित किया गया। इस कॉलम में रमन ने लिखा था कि याकूब ने पूरी जांच में पूरा सहयोग दिया। रमन का कहना था कि हालांकि याकूब मेमन का रोल धमाकों में साफ है, लेकिन उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए।
यही बात याकूब मेमन के वकील श्याम केसवानी ने कही। केसवानी का दावा है कि सीबीआई के एक अधिकारी ओपी चटवाल ने वादा किया था कि सीबीआई याकूब मेमन की जमानत का विरोध नहीं करेगी। और इस वादे पर भरोसा करके याकूब ने जांच में पूरा साथ दिया था। बाद में केसवानी ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने मामले में यू-टर्न लिया है।
लेकिन चटवाल ने एनडीटीवी से कहा कि यह गलत है। उनका कहना है कि सीबीआई के किसी भी अधिकारी ने मुझे कभी भी मामले में नरमी बरतने के लिए नहीं कहा।
जहां तक मेमन से सहयोग की बात है तो चटवाल ने कहा कि याकूब के पास गिरफ्तारी के समय धमाकों के सिलसिले में जो भी सबूत थे, उसे एजेंसी ने अपने कब्जे में ले लिया था। इनको कोर्ट में केस के दौरान प्रयोग में लाया गया। याकूब ने सबूत अपने आप नहीं दिए थे, सारे सबूत बरामद किए गए थे।
फिलहाल 1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई को संभावित फांसी के मामले की सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा। याकूब को फांसी देने के लिए नागपुर जेल में तैयारी पूरी कर ली गई है। याकूब इसी जेल में है।
उल्लेखनीय है कि 1993 बम धमकों से ठीक एक दिन पहले याकूब अपने पूरे परिवार के साथ देश छोड़कर चला गया था। बता दें कि इन धमाकों में 257 नागरिकों की मौत हो गई थी। मुंबई के तमाम जगहों पर इन धमाकों को अंजाम दिया गया था।
इन धमाकों के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों को याकूब को भारत लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। और अगस्त 1994 में उसे भारत लाया गया और मुंबई की अदालत में पेश किया गया। उस दौरान यह भी कहा गया कि याकूब मेमन ने नेपाल में स्वयं आत्मसमर्पण किया जबकि सुरक्षा एजेंसियों ने उसे गिरफ्तार करने का दावा किया था। कई नेताओं और अधिकारियों का कहना है कि उसे भारत लाने के लिए जांचकर्ताओं ने एक समझौता किया गया था।
धमाकों की जांच करने में लगे सीबीआई की विशेष जांच बल के प्रमुख शांतनु सेन थे। उनका कहना है कि हमें पता चला था कि याकूब मेमन के भाई टाइगर मेमन ने उसे भारत आने से कई बार रोका था। उसे समझाने का प्रयास किया था। दोनों में इस बात को लेकर काफी मतभेद भी थे। शांतनु के अनुसार उस समय याकूब और उसका भाई टाइगर पाकिस्तान के कराची में थे। हमलों के मुख्य सूत्रधार दाउद इब्राहिम और टाइगर मेमन तब भी लापता बताए गए थे।
सेन के अनुसार भारत लौटने को लेकर मेमन परिवार में गहरे मतभेद हो गए थे। याकूब और उसके परिवार को पाकिस्तान में घुटन महसूस हो रही थी। वे वहां असुरक्षित महसूस कर रहे थे। उन्हें यह अहसास होने लगा था कि वह ऐसे माहौल में ज्यादा दिन तक नहीं रह सकते हैं और यह भी पाकिस्तानी उन पर ज्यादा भरोसा नहीं करेंगे।
सेन के अनुसार मेमन परिवार के साथ आईबी और रॉ के अधिकारी संपर्क में थे। सेन के अनुसार उन्हें हमने भारतीय न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखने की बात कही थी।
सेन के अनुसार पहले दिन से हमें उनकी हरकत की जानकारी थी। हमारे अपने संपर्क थे। हमे सब जानकारी थी कि वह कब कहां आ जा रहे हैं। वे कब कहां हैं, ताकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सके।
सेन का दावा है कि मेमन बंधुओं को किसी प्रकार धोखा नहीं दिया गया है, उनसे कोई झूठा वादा नहीं किया गया था। याकूब मेमन के भारत आने के बाद उसने अपने परिवार के कई अन्य सदस्यों को भारत आने में काफी अहम भूमिका अदा की। पाकिस्तान से भारत वापस आने वालों में उसके दो अन्य भाई भी थे जिन्होंने उम्र कैद की सजा दी गई है।
सेन के अनुसार 11 लोगों में केवल चार ही दोषी साबित हुए। उसके अभिभावकों को बेल मिल गई और अपनी मौत मरे। अगर उनके खिलाफ भी केस चलता तो उन पर लगे आरोप हटा दिए जाते।
बी रमन रॉ के वरिष्ठ अधिकारी थे। रमन का कॉलम उनकी मृत्यु के बाद हाल ही में प्रकाशित किया गया। इस कॉलम में रमन ने लिखा था कि याकूब ने पूरी जांच में पूरा सहयोग दिया। रमन का कहना था कि हालांकि याकूब मेमन का रोल धमाकों में साफ है, लेकिन उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए।
यही बात याकूब मेमन के वकील श्याम केसवानी ने कही। केसवानी का दावा है कि सीबीआई के एक अधिकारी ओपी चटवाल ने वादा किया था कि सीबीआई याकूब मेमन की जमानत का विरोध नहीं करेगी। और इस वादे पर भरोसा करके याकूब ने जांच में पूरा साथ दिया था। बाद में केसवानी ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने मामले में यू-टर्न लिया है।
लेकिन चटवाल ने एनडीटीवी से कहा कि यह गलत है। उनका कहना है कि सीबीआई के किसी भी अधिकारी ने मुझे कभी भी मामले में नरमी बरतने के लिए नहीं कहा।
जहां तक मेमन से सहयोग की बात है तो चटवाल ने कहा कि याकूब के पास गिरफ्तारी के समय धमाकों के सिलसिले में जो भी सबूत थे, उसे एजेंसी ने अपने कब्जे में ले लिया था। इनको कोर्ट में केस के दौरान प्रयोग में लाया गया। याकूब ने सबूत अपने आप नहीं दिए थे, सारे सबूत बरामद किए गए थे।
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