नई दिल्ली:
रविवार को चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर ने जजों की कम संख्या के मुद्दे को उठाया जिस पर पीएम नरेंद्र मोदी ने 'कोर्ट की छुट्टियों' में कटौती की सलाह दे डाली। इस पर जस्टिस ठाकुर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'गर्मियों की छुट्टियों के दौरान जज मनाली नहीं जाते हैं, वह संवैधानिक बेंच के फैसलों को लिखते हैं। जब एक साइड तैयार होता है तो दूसरा नहीं होता। बार से पूछिए क्या वह तैयार हैं।'
2600 केस प्रति जज
रविवार को मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ने भावुक होकर पीएम मोदी से जजों की संख्या बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने पीएम से कहा था 'यह देश के विकास के लिए है इसलिए मैं आपसे विनती करता हूं। आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते। जजों की क्षमता की भी एक सीमा होती है।' भारत में लंबित केस और जजों की संख्या पर सभागार में मौजूद लोगों का ध्यान खींचते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भारत में एक जज साल में औसतन 2600 केस देखता है, वहीं अमेरिका में एक जज महज़ 81 केस सुनता है।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का बोलना तय नहीं था लेकिन चीफ जस्टिस की शिकायत पर पीएम ने आश्वासन देते हुए कहा कि उनकी सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार कर रही है। पीएम ने कहा 'अगर संवैधानिक सीमाएं न हों तो CJI की टीम और सरकार के प्रमुख लोग आपस में बैठकर समाधान निकाल सकते हैं।' वहीं कानून मंत्री डीवी सदानंद गोवड़ा ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि उम्मीदवारों के सत्यापन में आईबी को वक्त लगता है। इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि उम्मीदवारों से संबंधित रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक समय सीमा तय करनी चाहिए। साथ ही जज के नाम की सिफारिश के बाद प्रक्रिया कहां तक पहुंची उसे ट्रैक करने का तरीका भी होना चाहिए ताकि पता चल सके कि मामला सचिव के पास ही है या फिर पीएमओ या कानून मंत्रालय तक पहुंच गया है।
2600 केस प्रति जज
रविवार को मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ने भावुक होकर पीएम मोदी से जजों की संख्या बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने पीएम से कहा था 'यह देश के विकास के लिए है इसलिए मैं आपसे विनती करता हूं। आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते। जजों की क्षमता की भी एक सीमा होती है।' भारत में लंबित केस और जजों की संख्या पर सभागार में मौजूद लोगों का ध्यान खींचते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भारत में एक जज साल में औसतन 2600 केस देखता है, वहीं अमेरिका में एक जज महज़ 81 केस सुनता है।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का बोलना तय नहीं था लेकिन चीफ जस्टिस की शिकायत पर पीएम ने आश्वासन देते हुए कहा कि उनकी सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार कर रही है। पीएम ने कहा 'अगर संवैधानिक सीमाएं न हों तो CJI की टीम और सरकार के प्रमुख लोग आपस में बैठकर समाधान निकाल सकते हैं।' वहीं कानून मंत्री डीवी सदानंद गोवड़ा ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि उम्मीदवारों के सत्यापन में आईबी को वक्त लगता है। इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि उम्मीदवारों से संबंधित रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक समय सीमा तय करनी चाहिए। साथ ही जज के नाम की सिफारिश के बाद प्रक्रिया कहां तक पहुंची उसे ट्रैक करने का तरीका भी होना चाहिए ताकि पता चल सके कि मामला सचिव के पास ही है या फिर पीएमओ या कानून मंत्रालय तक पहुंच गया है।
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