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This Article is From Oct 17, 2018

इलाहाबाद का नाम बदलने के यूपी सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी

इलाहाबाद का नाम बदलने के फैसले पर वकीलों की अलग-अलग राय, अधिवक्ता और यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट के अध्यक्ष शाहिद अली सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे

इलाहाबाद का नाम बदलने के यूपी सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट के अध्यक्ष शाहिद अली इलाहाबाद का नाम बदलने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. उनका कहना है कि इलाहाबाद का नाम बदलना भारत सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देश अधिसूचना  27.09.1975 का उल्लंघन है. इसके मुताबिक किसी भी शहर या सड़क वगैरह का नाम अगर वह ऐतिहासिक नाम है या इतिहास से उसका कोई भी संबंध है तो उसे बदला नहीं जा सकता.

शाहिद अली ने एनडीटीवी से कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 (एफ) में यह बताया गया है कि यह हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को संरक्षित और मूल्यवान रखने के लिए हर नागरिक का कर्तव्य होगा और इस कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए हमें कोर्ट जाना होगा. सरकार जब गलत करने पर अमादा है तो हमारे पास सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता बचता है. उनका मनना है कि गाइडलाइन कहती हैं कि इसके अलावा, उन नामों को बदलने के लिए जो ऐतिहासिक नहीं हैं, कम से कम 45 दिन का समय लेते हैं.
 
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शाहिद अली.


उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा सरकार में हैं, तो क्या कानून को ताक पर रख देंगे. यह वास्तव में शर्मनाक है. उन्होंने कहा कि हम यूपी सरकार के इस भयानक और अवैध कृत्य की निंदा करते हैं और भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका पेश करेंगे.
 
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माजिद मेमन.

प्रसिद्ध वकील माजिद मेनन का मानना है कि इलाहबाद का नाम बदलने की क्रिया प्राथमिक क्रिया थी कि नाम बदल दिया जाए.पूरे उत्तर प्रदेश में बहुत सारे मुद्दे मुंह फाड़े मौजूद हैं लेकिन मुख्यमंत्री उस तरफ ध्यान देने के बजाय नाम बदलने की मुहिम में लगे हैं. उन्होंने कहा कि एक नाम बदलने से कितना राजस्व का नुकसान होता है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. नाम बदलना किसी तरह का विकास कार्य नहीं है बल्कि देश और प्रदेश को राजस्व का नुकसान सहना पड़ता है जिसका बोझ जनता पर पड़ता है.
 
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प्रशांत भूषण.

प्रशांत भूषण का कहना है कि इलाहाबाद का नाम बदलना पूरी तरह से गलत है. सरकार का एक ही काम रह गया है कि जहां-जहां मुस्लिम नाम दिखाई दे उसको बदल दो और हिन्दू नाम रख दो. सरकार हर जगह नफरत फैलाना चाहती है और इस पर वह राजनैतिक रोटी सेंक रहे हैं. ज़माने से जब इलाहबाद जाना जाता है तो आखिर परेशानी क्या है. अगर कुछ करना ही है तो उत्तर प्रदेश में सैकड़ों मुद्दे ऐसे हैं जिससे जनता पूरी तरह से परेशान है. लेकिन उनको इससे राजनैतिक फायदा नहीं होगा, इसलिए ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिससे उनको सियासी फायदा मिल सके.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अमिताभ सिन्हा का मानना है कि पुनः नामकरण करने की प्रक्रिया के उदाहरण देश ही नहीं वरन पूरे विश्व में मिलते हैं. ये लोकप्रिय स्थानीय जनभावनाओं पर आधारित होते हैं. लोकप्रिय जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकारें करती हैं, इसके उदहारण हैं. त्रिवेन्द्रम को तिरुवनंतपुरम, कोचीन को कोच्चि, मद्रास को चेन्नई , कलकत्ता से कोलकाता, गौहाटी को गुवाहाटी , बॉम्बे से मुंबई करना. बॉम्बे को छोड़ सभी कांग्रेस, लेफ्ट और विभिन क्षेत्रीय पार्टियों ने पुनः नामकरण की प्रक्रिया पूरी की.
 
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अमिताभ सिन्हा

अमिताभ सिन्हा कहते हैं कि जहां तक इलाहाबाद का विषय है, इलाहबाद प्राचीनतम नगरों में से एक है और हज़ारों साल से कुम्भ की व्यवस्था चली आ रही है और कुम्भ हमेशा  प्रयाग में होता है, इलाहाबाद में नहीं. ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर अकबर ने अपनी पारिवारिक परम्पराओं का अनुकरण करते हुए पुनः नामकरण प्रयाग से हटाकर अल्लाहाबाद किया था. अतः प्रयागराज पूर्णतः उपयुक्त और सामयिक कदम है, भारतीयता के पुनर्जागरण के संदर्भ में.
 
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एमएल शर्मा.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एमएल शर्मा कहते हैं कि राजनीति से अलग करते हुए नाम बदलने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अगर नाम बदलने के पीछे राजनैतिक भावना है तो इससे घिनौनी बात नहीं हो सकती. शर्मा आगे कहते हैं की इलाहबाद का पहले नाम अल्लाहाबाद था अल्लाहाबाद से पहले इसको प्रयाग कहते थे. इलाहबाद नाम ऐतिहासिक नहीं है इसलिए इस पर विवाद नहीं होना चाहिए, लेकिन अगर राजनीति के लिए सिर्फ नाम परिवर्तित किया जा रहा है तो वो बहुत बुरी बात है.

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