महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra assembly elections) में इंडिया गठबंधन की हार के बाद अब घटक दलों में टकराव के हालत बन रहे हैं. सावरकर के मुद्दे पर शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस के बीच हमेशा से विवाद रहा है. जहां एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी सावरकर के मुद्दे पर बीजेपी पर हमलावर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे की पार्टी सावरकर के सम्मान की लड़ाई लड़ती रही है. अब एक बार फिर सावरकर के मुद्दे पर इंडिया गठबंधन में टकराव की नौबत आने वाली है. उद्धव ठाकरे ने सावरकर के लिए केंद्र सरकार से भारत रत्न की मांग की है.
देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद क्या बोले उद्धव ठाकरे?
शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में केंद्र सरकार से सवाल पूछा.
- उद्धव ठाकरे
सीधे तौर पर उद्धव ठाकरे का बयान केंद्र सरकार पर उनके हमले के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि जब हम इसके तह में पहुंचते हैं कि सावरकर को भारत रत्न की मांग इंडिया गठबंधन के सहयोगी की तरफ से कांग्रेस को असहज करने वाली हो सकती है.
राहुल गांधी सावरकर का क्यों करते हैं विरोध?
राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा विनायक दामोदर सावरकर का विरोध ऐतिहासिक और वैचारिक दृष्टिकोण से जुड़ा रहा है. सावरकर के प्रति उनका विरोध वैचारिक रहा है. सावरकर हिंदुत्व के प्रमुख विचारक थे. उन्होंने "हिंदुत्व" को हिंदू धर्म से अलग एक सांस्कृतिक और राजनीतिक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया था. राहुल गांधी सावरकर की हिंदुत्व-आधारित विचारधारा का विरोध करते रहे हैं.कांग्रेस का मानना है कि सावरकर की विचारधारा देश को विभाजित कर सकती है और इसे धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की ओर ले जा सकती है.
- राहुल गांधी ने कई बार यह कहा है कि सावरकर ने अंडमान जेल में रहते हुए ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी और खुद को रिहा करने का अनुरोध किया था। इसे राहुल गांधी "वीरता" के विपरीत मानते हैं और इस पर सवाल उठाते हैं.
- कांग्रेस और कई अन्य पार्टियों का कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सावरकर ने माफी मांगकर ब्रिटिश सरकार के साथ समझौता किया, जबकि गांधी, नेहरू, भगत सिंह जैसे अन्य नेता जेल में कठोरता से डटे रहे थे.
- सावरकर पर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश का आरोप लगा था। हालांकि उन्हें अदालत में बरी कर दिया गया था.
- राहुल गांधी भाजपा और आरएसएस की विचारधारा का विरोध करते हुए सावरकर के मुद्दे को उठाते हैं.
शिवसेना सावरकर का क्यों समर्थन करती है?
सावरकर महाराष्ट्र के महान नेता, स्वतंत्रता सेनानी और विचारक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि महाराष्ट्र थी, और राज्य में उनकी एक मजबूत सांस्कृतिक पहचान है. महाराष्ट्र की जनता सावरकर को न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखती है, बल्कि एक स्वाभिमानी नेता और "हिंदुत्व" के नेता के तौर पर देखती है. शिवसेना, जो मूल रूप से मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है, सावरकर का समर्थन करके अपने मराठी और हिंदुत्ववादी आधार को मजबूत बनाए रखना चाहती है.
- शिवसेना का गठन बहुत हद तक हिंदुत्व की विचारधारा पर आधारित है.
- सावरकर को "हिंदुत्व" के संस्थापक विचारक के रूप में देखा जाता है.
- शिवसेना अक्सर सावरकर के "हिंदुत्व" की तुलना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के "हिंदुत्व" से अलग करती है.
- शिवसेना महाराष्ट्र की मराठी अस्मिता को अपनी राजनीति का केंद्र मानती है। सावरकर को महाराष्ट्र का गौरव मानती है.
- जब शिवसेना ने महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में कांग्रेस के साथ सरकार बनाई, तब भी उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया कि सावरकर पर उनकी पार्टी का रुख कभी नहीं बदलेगा.
सावरकर को भारत रत्न की मांग पुरानी है
सावरकर के मुद्दे पर बीजेपी और शिवसेना का कांग्रेस के साथ पुराना टकराव रहा है. बीजेपी की तरफ से सावरकर को भारत रत्न देने की पुरानी मांग रही है. वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था. उस समय भी सरकार के कदम का कांग्रेस पार्टी ने विरोध किया था.
सावरकर के मुद्दे पर टकराव का इंडिया गठबंधन पर क्या असर होगा?
महाराष्ट्र में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को अच्छी सफलता मिली थी. उद्वव ठाकरे की पार्टी के पास लोकसभा में 9 सांसद हैं. ऐसे में अगर इंडिया गठबंधन में कोई फूट होती है तो इसका सीधा लाभ बीजेपी और केंद्र सरकार को होगा. महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद उद्धव ठाकरे भी माराठा राजनीति और हिंदुत्व की तरफ वापसी कर सकते हैं. ऐसे में अगर यह विवाद बढ़ता है तो केंद्र सरकार जो कि अभी बहुमत के लिए जदयू और टीडीपी जैसे दलों पर निर्भर है उसकी निर्भरता कम होगी.
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