शोपिंया में मुठभेड़ में शहीद हुए थे गुलाम मोहिउद्दीन राठेर
नई दिल्ली:
कश्मीर में ऐसा शायद बरसों बाद हुआ है जब देश के लिए शहीद होने वाले जवान को अंतिम विदाई देने हजारों लोग आए. अक्सर तो ऐसा तब देखने में आता है जब आतंकियों का अंतिम संस्कार होता है और हजारों की भीड़ जुटती है. आज तो हालत यह है कि घाटी में ज्यादातर जगहों पर सेना को फूल की बजाए पत्थरों का सामना करना पड़ता है. सेना के लांस नायक गुलाम मोहिउद्दीन राठेर सहित दो और जवान बुधवार देर रात उस वक्त शहीद हो गए जब आतंकियों ने शोपिंया में घात लगाकर हमला किया. जब राठेर का शव उनके पैतृक गांव अनंतनाग के पंचपोरा पहुंचा तो हजारों लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचे. सबकी आंखे नम थीं. ऐसे भी लोग एक देखने आए जो सेना के इस हीरो को जानते भी नहीं थे कि जिसने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी. 35 साल के राठेर के पैर में छह गोलियां लगी थी लेकिन ज्यादा खून बहने की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका.
गुलाम के चाचा शकील अहमद ने कहा, 'हम बहुत आहत और दुखी हैं. सारे गांव में शोक की लहर दौड़ गई है. इसके जाने से परिवार बरबाद हो गया क्योंकि वो परिवार का इकलौता बेटा था.' वहीं मोहिउद्दीन के चचेरे भाई खुशर्दी अहमद ने कहा कि 'गुलाम मोहिउद्दीन एक सीधा सादा इंसान था. पूरा गांव उसकी इज्जत करता था. उसकी किसी से कभी कोई लड़ाई नहीं हुई, वो एक अच्छा इंसान था.'
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के पंचपोरा गांव के रहने वाले मोहिउद्दीन 20 साल की उम्र में साल 2002 में जम्मू कश्मीर लाइट इंफेंट्री रेजीमेंट में भर्ती हुए. वे अपने पीछे पत्नी और एक साल का बेटा छोड़ गए हैं. उसके पिता मानसिक रोगी हैं और मां कैंसर की मरीज. अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे मोहिउद्दीन. इसी गांव से करीब 25 किलोमीटर दूर शोपिंया के चित्रग्राम में आतंकियों ने अचानक हमला किया. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे कुछ स्थानीय लोगों का भी हाथ है जिनकी मदद से वे इस हमले को अंजाम देकर अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकले.
सेना के जवान के लिए उमड़ी इतनी भीड़ को देखकर किसी को यकीन नहीं हो रहा था, खासकर सेना के अधिकारियों को लेकिन एक अधिकारी ने बताया कि मोहिउद्दीन ने सेना की परंपरा को अतिम सांस तक निभाया और ऐसे जवान पर हमें गर्व है. यही वजह है श्रीनगर में हुए शहीद के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी शामिल हुए. जहां एक ओर कश्मीर में हर जगह सेना को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा रहा है वहां ये सेना के मनोबल के लिए एक अच्छा संकेत है.
गुलाम के चाचा शकील अहमद ने कहा, 'हम बहुत आहत और दुखी हैं. सारे गांव में शोक की लहर दौड़ गई है. इसके जाने से परिवार बरबाद हो गया क्योंकि वो परिवार का इकलौता बेटा था.' वहीं मोहिउद्दीन के चचेरे भाई खुशर्दी अहमद ने कहा कि 'गुलाम मोहिउद्दीन एक सीधा सादा इंसान था. पूरा गांव उसकी इज्जत करता था. उसकी किसी से कभी कोई लड़ाई नहीं हुई, वो एक अच्छा इंसान था.'
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के पंचपोरा गांव के रहने वाले मोहिउद्दीन 20 साल की उम्र में साल 2002 में जम्मू कश्मीर लाइट इंफेंट्री रेजीमेंट में भर्ती हुए. वे अपने पीछे पत्नी और एक साल का बेटा छोड़ गए हैं. उसके पिता मानसिक रोगी हैं और मां कैंसर की मरीज. अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे मोहिउद्दीन. इसी गांव से करीब 25 किलोमीटर दूर शोपिंया के चित्रग्राम में आतंकियों ने अचानक हमला किया. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे कुछ स्थानीय लोगों का भी हाथ है जिनकी मदद से वे इस हमले को अंजाम देकर अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकले.
सेना के जवान के लिए उमड़ी इतनी भीड़ को देखकर किसी को यकीन नहीं हो रहा था, खासकर सेना के अधिकारियों को लेकिन एक अधिकारी ने बताया कि मोहिउद्दीन ने सेना की परंपरा को अतिम सांस तक निभाया और ऐसे जवान पर हमें गर्व है. यही वजह है श्रीनगर में हुए शहीद के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी शामिल हुए. जहां एक ओर कश्मीर में हर जगह सेना को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा रहा है वहां ये सेना के मनोबल के लिए एक अच्छा संकेत है.
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