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मलबे की मोटी दीवार, बढ़ रहा जोखिम... तेलंगाना टनल के श्रमिकों को लेकर ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ का अनुमान डरा रहा

तेलंगाना टनल दुर्घटना में बचे श्रमिकों ने अपनी आंखों के सामने हुई खौफनाक घटना का मंजर बयां करते समय अपने साथियों की सुरक्षित वापसी की उम्मीद जताई है.

हैदराबाद:

तेलंगाना में दो दिन पहले श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग के निर्माणाधीन हिस्से के ढहने के बाद उसमें फंसे आठ लोगों के बचने की संभावना बेहद कम होती जा रही है. हालांकि उन तक पहुंचने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. बचाव दल और फंसे लोगों के बीच 50 मीटर से भी कम की दूरी बची है, लेकिन मलबे वाले दीवार के एक मीटर और मोटे हो जाने से लोगों की सलामती को लेकर खतरा और बढ़ गया है.

घटना के 48 घंटे बाद की स्थिति को लेकर एनडीटीवी को बताया गया कि बचाव अभियान को धीमा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के एक विशेषज्ञ सहित कई जानकारों ने ढहे हुए हिस्से की स्थिरता के बारे में सवाल उठाए हैं. ऐसा माना जाता है कि अधिक खुदाई करने से न केवल फंसे हुए श्रमिकों को और खतरा हो सकता है, बल्कि उन्हें बचाने की कोशिश करने वालों की भी जान खतरे में पड़ सकती है.

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मोटी हो रही मलबे वाली दीवार

भूविज्ञानी और ड्रोन विशेषज्ञ सहित अब तक पांच टीमें सुरंग के अंदर जा चुकी हैं. एक टीम ने अपने फीडबैक में कहा कि पहले की सात मीटर ऊंची मलबे वाली दीवार अब कम से कम एक मीटर और ऊंची हो गई है, जिससे चिंता बढ़ गई है.

बचाव अधिकारियों का मानना ​​है कि सुरंग में हर मिनट 3,200 लीटर पानी भर रहा है, जो बड़ी मात्रा में रेत, चट्टान और मलबे के साथ मिलकर अधिक कीचड़ बना रहा है. यह अप्राकृतिक या अप्रत्याशित नहीं है और सुरंग से पानी निकाला जा रहा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि कीचड़ का बढ़ना जारी है.

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2023 में उत्तराखंड में ‘सिल्कयारा बेंड-बरकोट' सुरंग में फंसे निर्माण श्रमिकों को बचाने वाले ‘रैट माइनर्स' (हाथ से पर्वतीय क्षेत्रों की खुदाई करने में महारत रखने वाले व्यक्तियों) की एक टीम लोगों को निकालने के लिए बचाव दल के साथ सहयोग कर रही है. फंसे लोगों को बचाने में कम से कम तीन से चार दिन और लग सकते हैं, क्योंकि दुर्घटना स्थल कीचड़ और मलबे से भरा हुआ है, जिससे बचाव दल के लिए यह एक मुश्किल काम बन गया है.

श्रमिकों के जिंदा बचने की संभावना बहुत ही कम - तेलंगाना के मंत्री

हालांकि तेलंगाना के मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव का कहना है कि ईमानदारी से कहूं तो उनके बचने की संभावना बहुत ही कम है, क्योंकि मैं खुद उस आखिरी छोर तक गया था जो (दुर्घटना स्थल से) लगभग 50 मीटर दूर था. जब हमने तस्वीरें लीं तो (सुरंग का) अंत दिखाई दे रहा था और नौ मीटर के व्यास वाली सुरंग में लगभग 30 फुट में से 25 फुट तक कीचड़ जमा हो गया है. उन्होंने कहा कि जब हमने उनके नाम पुकारे, तो कोई जवाब नहीं मिला, इसलिए, उनके बचने की कोई संभावना नहीं दिखती है.

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इस सुरंग में पिछले 48 घंटों से फंसे लोगों की पहचान उत्तर प्रदेश के मनोज कुमार और श्री निवास, जम्मू कश्मीर के सनी सिंह, पंजाब के गुरप्रीत सिंह और झारखंड के संदीप साहू, जेगता जेस, संतोष साहू और अनुज साहू के रूप में हुई है. इन आठ लोगों में से दो इंजीनियर, दो ऑपरेटर और चार मजदूर हैं.

कृष्ण राव ने कहा कि कई मशीनों की मदद से मलबा हटाने का काम जारी है. सुरंग खोदने वाली मशीन (टीबीएम) का वजन कुछ सौ टन है, लेकिन सुरंग ढहने के बाद और पानी के तेज बहाव के कारण मशीन लगभग 200 मीटर तक बह गई. ऑक्सीजन की आपूर्ति और पानी निकालने का काम लगातार किया जा रहा है. हालांकि उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर फंसे हुए लोगों के बचने की संभावना को लेकर निराशा जताते हुए कहा, "अगर यह मान लें कि वे (फंसे हुए लोग) टीबीएम मशीन के निचले हिस्से में हैं, यह भी मान लें कि वह मशीन ऊपर है, तो हवा (ऑक्सीजन) कहां है? नीचे, ऑक्सीजन कैसे जाएगी?"

मलबे को हटाने के लिए सुरंग में ‘कन्वेयर बेल्ट' बहाल

सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी के साथ बचाव अभियान की देखरेख करने वाले राव ने कहा, "सभी प्रकार के प्रयासों, सभी प्रकार के संगठनों (काम करने) के बावजूद, मलबा और अवराधकों को हटाने में, मुझे लगता है कि लोगों को निकालने में तीन-चार दिन से कम समय नहीं लगेगा." राव ने कहा कि मलबे को हटाने के लिए सुरंग में ‘कन्वेयर बेल्ट' को बहाल किया जा रहा है.

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वहीं, दुर्घटना में बचे श्रमिकों ने अपनी आंखों के सामने हुई खौफनाक घटना का मंजर बयां करते समय अपने साथियों की सुरक्षित वापसी की उम्मीद जताई है. उन्होंने कहा कि जब वे 22 फरवरी की सुबह सुरंग के अंदर गए तो पानी का बहाव काफी बढ़ गया था और ढीली मिट्टी ढहने लगी थी. जिन लोगों को खतरा महसूस हुआ वे सुरक्षित बाहर निकल गए, लेकिन आठ लोग बाहर नहीं आ सके. हमें उम्मीद है कि सरकार हमारे साथियों को सुरक्षित बाहर निकालेगी. हमें उम्मीद है कि वे जीवित होंगे.

फंसे श्रमिकों के परिजन पहुंच रहे तेलंगाना

इधर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर तेलंगाना के निर्माणाधीन टनल में फंसे झारखण्ड के श्रमिकों के परिजनों को लेकर पदाधिकारी तेलंगाना रवाना हो गए. गुमला जिला प्रशासन के नेतृत्व में चार परिवारों के एक-एक सदस्य, पुलिस अधिकारी और गुमला जिला प्रशासन का कर्मी बिरसा मुंडा हवाई अड्डा से तेलंगाना के लिए प्रस्थान किया. वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री के निर्देश पर श्रम विभाग के अधिकारी स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं.

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यह है वर्तमान स्थिति

तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में स्थित श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल टनल कुल 8 श्रमिक फंसे हुए हैं, जिनमें झारखण्ड के चार,  उत्तर प्रदेश के दो,  जम्मू-कश्मीर और पंजाब का एक-एक श्रमिक शामिल है. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीम बचाव अभियान में जुटी हुई है. नियंत्रण कक्ष ने एडिशनल लेबर ऑफिसर (ALO), नागरकुरनूल एवं फंसे हुए झारखण्ड के श्रमिकों के साथ तेलंगाना गए अन्य श्रमिकों से संपर्क किया है. श्रमिकों ने बताया कि वे जयप्रकाश एसोसिएट्स LTS के अंतर्गत श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल टनल प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं.

लगातार ली जा रही है रिपोर्ट

राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष, तेलंगाना प्रशासन एवं वहां मौजूद अन्य श्रमिकों के साथ निरंतर संपर्क में है. एनडीआरएफ की टीम द्वारा किए जा रहे बचाव कार्यों की नियमित रिपोर्ट ली जा रही है.  गुमला जिला प्रशासन के नेतृत्व में गई टीम भी वहां पहुंचकर नियंत्रण कक्ष को वस्तुस्थिति से अवगत कराएगा.

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तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में एसएलबीसी परियोजना में शनिवार को सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद सुरंग के अंदर 48 घंटे से अधिक समय से फंसे आठ लोगों को निकालने के लिए भारतीय सेना, एनडीआरएफ और अन्य एजेंसियों के अथक प्रयासों के बावजूद बचाव अभियान में अब तक कोई सफलता नहीं मिली है.

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