नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को किशोर न्याय अधिनियम पर अपनी मुहर लगा दी, जो नाबालिगों के साथ अलग तरीके से पेश आने का प्रावधान मुहैया कराता है, चाहे उनके अपराध की प्रकृति किसी भी तरह की क्यों न हो।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की वह अपील खारिज कर दी, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिगों की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने और जघन्य अपराधों में संलिप्त नाबालिगों के साथ रियायत न बरतने की अपील की थी।
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले जघन्य अपराध के मामले में सजा का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड न करे। लेकिन याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति कबीर ने कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह याचिका पिछले साल 16 दिसंबर को राष्ट्रीय राजधानी में चलती बस में 23 साल की युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बर्बर व्यवहार के मामले में एक नाबालिग के शामिल होने के संदर्भ में दायर की गई थी। पीड़िता की बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में मौत हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की वह अपील खारिज कर दी, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिगों की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने और जघन्य अपराधों में संलिप्त नाबालिगों के साथ रियायत न बरतने की अपील की थी।
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले जघन्य अपराध के मामले में सजा का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड न करे। लेकिन याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति कबीर ने कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह याचिका पिछले साल 16 दिसंबर को राष्ट्रीय राजधानी में चलती बस में 23 साल की युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बर्बर व्यवहार के मामले में एक नाबालिग के शामिल होने के संदर्भ में दायर की गई थी। पीड़िता की बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में मौत हो गई थी।
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