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सुधा मूर्ति ने रक्षाबंधन पर सुनाई 'हुमायूं वाली कहानी', इंटरनेट यूजर्स ने उठाए सवाल तो देनी पड़ी सफाई

राज्यसभा सांसद ने बाद में स्पष्टीकरण जारी कर कहा, "रक्षाबंधन पर मैंने जो कहानी साझा की, वो त्योहार से जुड़ी कई कहानियों में से एक है और निश्चित रूप से इसकी शुरुआत नहीं है."

सुधा मूर्ति ने रक्षाबंधन पर सुनाई 'हुमायूं वाली कहानी', इंटरनेट यूजर्स ने उठाए सवाल तो देनी पड़ी सफाई
नई दिल्ली:

राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने रक्षाबंधन के मौके पर एक वीडियो संदेश साझा किया. उन्होंने बताया कि एक धागा या राखी का क्या महत्व है. मूर्ति ने कहा कि ये उनके लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इस दौरान उन्होंने इस फेस्टिवल के पीछे की कहानी साझा की, जिसके बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसको लेकर बहस छिड़ गई. फिर सुधा मूर्ति ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि उनका इरादा बड़ी होने के दौरान सीखी गई कई कहानियों में से एक को सिर्फ बताना था.

एक्स पर पहले किए गए एक वीडियो पोस्ट में उन्होंने कहा, "रक्षाबंधन मेरे लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जहां एक बहन एक धागा बांधती है जो ये संकेत देता है कि किसी भी कठिनाई में, वो हमेशा बहन की मदद करने के लिए मौजूद रहेगा."

इंफोसिस चेयरमैन की पत्नी ने उत्सव के पीछे की एक कहानी साझा की और कहा, "ये उस समय की बात है जब रानी कर्णावती मेवाड़ साम्राज्य पर हमले के कारण मुसीबत में थीं, तब उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को एक धागा भेजा और कहा कि मैं खतरे में हूं, कृपया मुझे अपनी बहन समझें और मेरी रक्षा करें."

सुधा मूर्ति ने कहा, "हुमायूं को नहीं पता था कि ये क्या है, फिर उन्होंने पूछा तो लोगों ने बताया कि ये एक बहन का भाई को बुलावा है. यह इस भूमि का रिवाज है. फिर सम्राट ने कहा कि ठीक है, अगर ऐसी बात है तो मैं रानी कर्णावती की मदद करूंगा. वो दिल्ली से निकले, लेकिन समय पर वहां नहीं पहुंच सके और रानी कर्णावती की मृत्यु हो गई."

उन्होंने कहा, "ये विचार तब आता है, जब आप किसी खतरे का सामना कर रहे हों. इस कहानी से हमें ये सीखने को मिलता है कि अगर बहन किसी मुसीबत में हो तो वो अपने भाई को एक धागा भेजकर उसे अपनी मदद के लिए बुला सकती है."

हालांकि, एक्स पर कई यूजर ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि रक्षाबंधन शुरू होने की कहानी महाभारत काल की है, न कि मध्यकालीन भारत की. यूजर्स का कहना था कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण के शिशुपाल को मारने के लिए सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते समय अनजाने में उनकी उंगली थोड़ी कट गई थी, तब द्रौपदी ने उनके घाव को अपने पल्लू का टुकड़ा फाड़कर बांधा था.

भगवान कृष्ण उनके इस काम से प्रभावित हुए और उन्हें किसी भी मुसीबत से बचाए रखने का वादा किया. चीरहरण की घटना के दौरान, जब कौरवों ने द्रौपदी को लज्जित और अपमानित करने की कोशिश की, तब भगवान कृष्ण प्रकट हुए और उनकी रक्षा की.

राज्यसभा सांसद ने बाद में स्पष्टीकरण जारी किया और कहा, "रक्षाबंधन पर मैंने जो कहानी साझा की, वो त्योहार से जुड़ी कई कहानियों में से एक है और निश्चित रूप से इसकी शुरुआत नहीं है. मैंने वीडियो में कहा है कि, "ये पहले से ही एक परंपरा थी. मेरा इरादा रक्षाबंधन के पीछे के सुंदर प्रतीकों के बारे में उन कई कहानियों में से एक को उजागर करना था, जिनके बारे में मैंने बड़े होने के दौरान सीखा था."

त्योहार को लेकर इतिहास में कई कहानियां हैं, जिनमें राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कहानी भी शामिल है. राजा बलि भगवान विष्णु के कट्टर भक्त थे और देवी लक्ष्मी ने बलि के राज्य की रक्षा करने की जिम्मेदारी ली थी, जिसके लिए उन्होंने बैकुंठ तक छोड़ दिया था.

देवी लक्ष्मी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर राखी बांधी. ऐसा माना जाता है कि उस दिन के बाद से श्रावण की पूर्णिमा पर अपनी बहन को राखी बांधने की प्रथा बन गई.

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