नई दिल्ली:
आतंकवाद के रास्ते पर जाने वाले चार लड़कों की घर वापसी से उत्साहित आतंकियों के परिजन अब उनसे वापसी की अपील कर रहे हैं. वहीं पुलिस ने भी आतंकियों के परिजनों से सीधे बातचीत शुरू कर दी है ताकि उनकी मुख्यधारा में वापसी जल्द हो सके. गौरतलब है कि आतंकियों की वापसी का सिलसिला नवंबर के दौरान अनंतनाग के माजिद इरशाद खान के लौटने के साथ शुरू हुआ. माजिद आतंकी बनने के करीब आठ दिन बाद ही घर लौट आया था. उसके बाद तीन और स्थानीय लड़के आतंकवाद को छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हुए हैं. आतंकियों की घर वापसी के लिए पुलिस के आला अधिकारी अब उनके परिजनों से लगातार संवाद कर रहे हैं. वह उनकी शंकाओं का समाधान करते हुए यकीन दिला रहे हैं कि अगर उनके बच्चे हथियार डालते हैं और मुख्यधारा में शामिल होते हैं तो न सिर्फ उनके खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिया जा सकता है बल्कि उनके पुनर्वास की पूरी व्यवस्था भी की जाएगी. एक आतंकी के पिता ने कहा कि 'मैं चाहता हूं वो वापस आ जाए क्योंकि वो मेरा एकमात्र सहारा है. मैं दिल का मरीज हूं और उससे दरख्वास्त है कि वो वापस आ जाए.'
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डीआइजी (दक्षिण कश्मीर रेंज) एस पी पाणि, एसएसपी शोपियां श्रीराम अंबरकर व अन्य पुलिस अधिकारियों ने जिले में करीब 30 ऐसे परिवारों से बातचीत की है, जिनके बच्चे आतंकी बन चुके हैं. डीआइजी ने आतंकियों के परिवारों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के अलावा उनके साथ निजी तौर पर भी बातचीत की और उनसे दिल की बात जानने का प्रयास किया.
अधिकारियों के मुताबिक कई आतंकियों के परिजनों की ओर से आत्मसमर्पण की अपील और एक माह के दौरान चार लड़कों की वापसी को सकारात्मक मानते हुए पुलिस भी आतंकियों की घर वापसी के लिए सक्रिय हो गई है. पुलिस ने बकायदा इसके लिए अभियान चलाया है. आतंकियों के परिजनों के साथ संवाद का यह अभियान पुलिस ने दक्षिण कश्मीर के जिला शोपियां से शुरू किया है.
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गौरतलब है कि शोपियां ही इस समय सबसे ज्यादा आतंकग्रस्त है. इस जिले में करीब 50 आतंकी सक्रिय बताए जाते हैं. इस दौरान कई आतंकियों के परिजन फूट-फूटकर रोए. उन्होंने अपने बच्चों के आतंकवाद के रास्ते पर जाने पर दुख जताते हुए कहा कि यहां कई लोग बेशक बंदूक उठाने वाले लड़कों को हीरो बताकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन वह यह नहीं बताते कि किस तरह किसी स्थानीय आतंकी के परिजन रोज तिल-तिल कर मरते हैं. जब कोई आतंकी मरता है तो उसके परिवार की क्या हालत होती है.
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आतंकियों के परिजन इस बात से काफी राहत महसूस कर रहे थे कि पुलिस उन्हें मुठभेड़ में मारने के बजाय जिंदा पकड़ कर मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ठोस कदम उठाकर खुद आतंकियों के परिजनों से मिल रही है. आपसी बातचीत के दौरान आतंकियों के परिजनों ने उन सभी बातों का सिलसिलेवार ढंग से जिक्र किया, जिनसे प्रभावित होकर उनके बच्चे आतंकी बने हैं. इन लोगों ने यकीन दिलाया कि वह अपने बच्चों से मुख्यधारा में लौटने की अपील करने के साथ कोई दूसरा लड़का आतंकी न बने, इसके लिए प्रयास जारी ऱखेंगे. सुरक्षाबलों का कहना है कि मेल मिलाप की इस पहल से शायद फौरन नतीजे न निकलें लेकिन लगातार कोशिशें होती रहें तो कामयाबी मिल सकती है.
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अधिकारियों के मुताबिक कई आतंकियों के परिजनों की ओर से आत्मसमर्पण की अपील और एक माह के दौरान चार लड़कों की वापसी को सकारात्मक मानते हुए पुलिस भी आतंकियों की घर वापसी के लिए सक्रिय हो गई है. पुलिस ने बकायदा इसके लिए अभियान चलाया है. आतंकियों के परिजनों के साथ संवाद का यह अभियान पुलिस ने दक्षिण कश्मीर के जिला शोपियां से शुरू किया है.
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