कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते पूरे देश में लॉकडाउन (Lockdown) लागू है. इसके कारण लाखों प्रवासी देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं. सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गांव-घर पहुंचाने के लिए ट्रेनों की व्यवस्था की है. हालांकि, इस व्यवस्था से पहले से भी कई लोग पैदल, साइकिल, ट्रक या अन्य गाड़िय़ों में भरकर जाने के लिए मजबूर थे. कुछ लोगों ने इस दौरान उनकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया. उनमें में एक नाम बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद का है. सोनू सूद ने लॉकडाउन के दौरान, हजारों की संख्या में लोगों को उनके घर पहुंचाने का काम किया. सोनू सूद ने एनडीटीवी से अपने इस अनुभव को साझा किया.
सोनू सूद ने बताया कि हम सब ने प्रवासी मजदूरों को चलते हुए देखा. दुख भी हुआ. उन्होंने हमारे ऑफिस बनाए, सड़कें बनाईं और हमने उन्हें वहीं पर छोड़ दिया. हमने बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को खाना बांट रहे थे. इस दौरान हमने एक परिवार को देखा जो पैदल कर्नाटक जा रहा था. हमने उनसे पूछा और उनसे बोला कि आप हमें एक-दो दिन दीजिए हम आपको घर भिजवाएंगे. पहली बार हमने करीब 350 लोगों को भेजा. धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर हजार तक पहुंच गई. हम अब तक 16-17 हजार लोगों को घर भेज चुके हैं. अभी भी हजारों लोग हैं जिनके संपर्क में हम रहते हैं और उनसे भावनाएं जुड़ गई हैं.
प्लानिंग के सवाल पर उन्होंने कहा, "मैं इंजीनियर हूं, शायद इंजीनियर का दिमाग काम कर गया. मैं अपने काफी दोस्तों को लिस्ट बनाने के काम में लगा दिया. मेरी पत्नी-बेटी भी लिस्ट बनाती हैं. इस काम में दो-तीन दिन हम सो नहीं पाते हैं लेकिन जब लोग अपने घर जाते हैं और अपने परिजनों से मिलते हैं तो हमें बहुत खुशी मिलती है. किसी की मदद करने पर मैं खुद को खुशकिस्मत समझता हूं.
अभिनेता ने बताया कि पहली बस कर्नाटक के लिए भेजी. 350 लोग थे. लोगों को हम पर विश्वास हुआ है. काफी लोगों ने कहा कि हम निकलने वाले थे लेकिन सुना की आप भेज रहे हैं तो हम रूक गए. लोग हम पर भरोसा करते हैं. हमारा एक सेगमेंट है जो खाने का काम देखता है. करीब 20 लाख लोगों को खाना भेजा है. मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त हैं अरोड़ा साहब. उनका फल का कारोबार है. मैंने उनको बोला कि आप भी हमसे जुड़िए. उन्होंने रोज फल के 3-4 ट्रक भेजे. मशहूर शेफ विकास खन्ना ने भी हमारी मदद की. मेरा गांव मोगा के नाम से डिश बनाई.
उन्होंने कहा कि कई प्रोड्यूसर ने मुझे फोन किया और कहा कि सोनू तेरी वजह से इंडस्ट्री का बहुत नाम हुआ है. मुझे नहीं पता था कि लोगों को इतना पता चलेगा, मैं एक जुनून के साथ निकला था. मुझे लगता है कि मैं खुद एक माइग्रेंट हूं जब मैं मुंबई आया था तो मेरे पास रिजर्वेशन नहीं था चालू टिकट पर आया था. बहुत सपने लेकर आया था.
उन्होंने कहा कि समाजसेवा हमारे डीएनए में हैं. मेरे पिता की कपड़े की दुकान थी वो शुरू से दुकान के आगे लंगर लगाते थे. मेरी मां प्रोफेसर थी, वो बच्चों को फ्री में पढ़ाती थीं. कहीं न कहीं अच्छा करने की शिक्षा मिलती थी. मेरी पत्नी बहुत चैरिटी के काम में शामिल रहती हैं. ये करना हर किसी के लिए जरूरी है.
जब तक आखिर प्रवासी मजदूर घर नहीं पहुंच जाता तब तक हमारा काम जारी रहेगा. ट्रेनों को लाइनअप करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि कई लोगों को एक साथ भेजा जा सके. हमारा लक्ष्य तो 50,000 प्रवासी मजदूरों या कहें तो उससे भी ज्यादा मजदूरों को घर भेजने का है.
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