कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान जब महाराष्ट्र और मुंबई से मजदूरों का पलायन हो रहा था तो जो शख्स सबसे ज्यादा चर्चा में आए वो अभिनेता सोनू सूद (Sonu Sood) हैं. सलमान खान के साथ दबंग में फिल्म में निगेटिव रोल कर चुके सोनू सूद को लेकर बिहार में मंदिर बनने जैसी खबरें आने लगीं. सोशल मीडिया पर उनकी उदारता से जुड़े किस्से, उनके बयान और मदद की खबरें छा गईं. अभिनेता सोनू सूद ने कुछ दिन पहले एनडीटीवी से बातचीत में बताया था कि वह और उनकी टीम अब तक 16-17,000 प्रवासी मजूदरों को उनके घर पहुंचा चुकी है. उनका लक्ष्य 40-50 हजार श्रमिकों या उससे भी ज्यादा को घर पहुंचाना है. उन्होंने ने बताया था कि उनकी टीम दिन रात लोगों की लिस्ट तैयार करने में लगी हुई है. इधर-इधर जैसे मुंबई में कोरोना वायरस के मरीजों की केसों की संख्या बढ़ती जा रही है, प्रवासियों में सोनू सूद की लोकप्रियता भी बढ़ रही है. हालात ये हैं कि उनसे मदद मांगने वालों में दुबई में फंसे लोग और एक बीजेपी विधायक तक शामिल हैं. मुंबई में उनकी बढ़ती लोकप्रियता शिवसेना को नहीं सुहा रही है. शिवसेना को लगता है कि सोनू सूद की ओर से बढ़चढ़कर दी जा रही मदद सिर्फ महाराष्ट्र और सीएम उद्धव ठाकरे को नीचा दिखाने की कोशिश है.
इसी बीच शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने सामना में लेख लिखकर सोनू सूद को पर निशाना साधते हुए कहा कि लॉकडाउन के दौरान अचानक सोनू सूद नाम का एक महात्मा तैयार हो गया है. इतने झटके और चतुराई के साथ किसी को महात्मा बनाया जा सकता है? राउत ने प्रवासी मजदूरों को बस में भेजने के लिए आये पैसों पर सवाल उठाते हुए सोनू सूद को बीजेपी का मुखौटा बताने की कोशिश की है.
शिवसेना नेता संजय राउत ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि कहीं लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र में फंसे उत्तर भारतीय प्रवासियों को ''सहायता की पेशकश'' करने के पीछे अभिनेता सोनू सूद को भाजपा का अंदरूनी तौर पर समर्थन हासिल तो नहीं था ? इस राजनीतिक मकसद के साथ कि राज्य की उद्धव ठाकरे सरकार को बदनाम किया जा सके.
संजय राउत के इस बयान पर बीजेपी ने भी प्रतिक्रिया देने में रोक नहीं लगाई. बीजेपी नेता राम कदम ने कहा, 'Corona के संकट काल में इंसानियत के नाते मजदूरों को सड़क पर उतर के सहायता करने वाले सोनू सूद पर संजय राउत का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है. खुद की सरकार कोरोना से निपटने में नाकाम हो गई? यह सच्चाई सोनू सूद पर आरोप लगाकर छुप नहीं सकती. जिस काम की सराहना करने की आवश्यकता है उस पर भी आरोप?" वहीं मुंबई में बीजेपी महामंत्री अमरजीत मिश्र ने भी कहा कि जब प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की जब खबरें सामने आईं तो एक अभिनेता जो रियल हीरो बनकर उभरता है और वह सारे काम करता है जो राज्य सरकार नहीं कर पाई. लेकिन सामना में जब सोनू सूद का अपमान करते हुए लेख छपा है उसकी भर्त्सना की जाती है. सोनू सूद का सम्मान कोरोना योद्धा के रूप में होना चाहिए.
हालांकि शिवसेना की ओर से आए इतने तीखे बयान के बाद सोनू सूद ने आखिरकार महाराष्ट्र में सीएम उद्धव ठाकरे से मिलने में ही भलाई समझी. बताया जा रहा है कि इस मुलाकात को कराने में कांग्रेस नेता और राज्य सरकार में मंत्री असलम शेख का बड़ा हाथ है. असलम शेख भी सोनू सूद के साथ मातोश्री उनके घर पहुंचे थे. इसके बाद असलम शेख ने सोनू सूद की जमकर तारीफ की. कहा तो यह भी जा रहा है कि असलम शेख ने सोनू सूद को महानायक तक कहा डाला और यह भी आश्वासन दिया कि महा आघाड़ी गठबंधन उनको लगातार समर्थन देती रहेगी.
अब इस पूरे खेल के पीछे की कहानी ये है कि जहां शिवसेना खुद को सोनू सूद के सामने नीचा महसूस कर रही है. पहले तो सोनू सूद सीएम उद्धव ठाकरे से मिलने के बजाए सीधे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने चले गए. वहीं बीजेपी और कांग्रेस सोनू सूद पर डोरे डालने में जुटे हैं. क्योंकि दोनों ही पार्टियों को बिहार के चुनावी मैदान में उतरना है. सोनू सूद की लोकप्रियता इस समय बिहार वापस लौटे मजदूरों के बीच चरम पर है. दोनों दलों की कोशिश है कि सोनू सूद को प्राथमिक सदस्यता दिलाकर बिहार के चुनाव प्रचार में उतार दिया है. हालांकि सोनू सूद की ओर से अभी इस बात के संकेत नहीं मिले हैं कि वह राजनीति में जाने के इच्छुक हैं.