संसद में सोनिया गांधी
नई दिल्ली:
बुधवार को लोकसभा में सोनिया और राहुल गांधी ने अहम संवैधानिक संस्थाओं की अनदेखी को लेकर सरकार पर जम कर हमला बोला। शायद ये पहला मौका रहा जब सदन से बाहर निकलकर सोनिया गांधी ने रिपोर्टरों से बात की। लोकसभा के भीतर भी सोनिया गांधी ने सरकार को संवैधानिक संस्थाओं की अनदेखी के लिए घेरा।
सोनिया गांधी ने पूछा कि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) का ओहदा ख़ाली क्यों पड़ा है। सोनिया ने 'सीवीसी' की नियुक्ति में हो रही देरी का भी सवाल उठाया। सोनिया ने ये भी आरोप लगाया कि सरकार ने पारदर्शिता का वादा किया था, लेकिन वो अब आरटीआई को कमज़ोर कर रही है। सोनिया गांधी ने कहा, 'अब लोगों को अपनी सरकार पर सवाल उठाने का हक़ नहीं रह गया है। सूचना में देरी असल में सूचना न देना है। ये मंज़ूर नहीं किया जा सकता।'
जवाब में एनडीए सरकार ने याद दिलाया कि यूपीए के समय भी सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में इन्फॉर्मेशन कमिशनरों के पद खाली रहे थे। कार्मिक मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, '2011 में सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में बस पांच सूचना आयुक्त थे, 2012 में बस सात थे, यूपीए के पूरे कार्यकाल के दौरान कभी भी सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में पूरे दस सूचना आयुक्त नहीं रहे।'
सोनिया के बाद राहुल ने भी सरकार को गरीब विरोधी बताया। राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार सूट-बूट की सरकार है। सरकार को गरीब-विरोधी बताते हुए राहुल ने आरोप लगाया कि सरकार 6 से 8 उद्योगपतियों के हाथ में पूरी शक्ति सौंपना चाहती है।
जवाब में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि कांग्रेस को एनडीए सरकार की नीतियों पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। नायडू ने आरोप लगाया कि यूपीए के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने सिर्फ गरीबों के लिए घोषणाएं की और अमीरों का पोषण किया।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और एनडीए सरकार की नातियों पर सवाल उठाया है उससे साफ है कि लोकसभा में एनडीए सरकार के दबदबे का जवाब कांग्रेस अब मोदी सरकार के करीब एक साल के कार्यकाल की कमज़ोर कड़ियों में ढूंढ़ने की कोशिश कर रही है।
सोनिया गांधी ने पूछा कि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) का ओहदा ख़ाली क्यों पड़ा है। सोनिया ने 'सीवीसी' की नियुक्ति में हो रही देरी का भी सवाल उठाया। सोनिया ने ये भी आरोप लगाया कि सरकार ने पारदर्शिता का वादा किया था, लेकिन वो अब आरटीआई को कमज़ोर कर रही है। सोनिया गांधी ने कहा, 'अब लोगों को अपनी सरकार पर सवाल उठाने का हक़ नहीं रह गया है। सूचना में देरी असल में सूचना न देना है। ये मंज़ूर नहीं किया जा सकता।'
जवाब में एनडीए सरकार ने याद दिलाया कि यूपीए के समय भी सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में इन्फॉर्मेशन कमिशनरों के पद खाली रहे थे। कार्मिक मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, '2011 में सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में बस पांच सूचना आयुक्त थे, 2012 में बस सात थे, यूपीए के पूरे कार्यकाल के दौरान कभी भी सेन्ट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन में पूरे दस सूचना आयुक्त नहीं रहे।'
सोनिया के बाद राहुल ने भी सरकार को गरीब विरोधी बताया। राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार सूट-बूट की सरकार है। सरकार को गरीब-विरोधी बताते हुए राहुल ने आरोप लगाया कि सरकार 6 से 8 उद्योगपतियों के हाथ में पूरी शक्ति सौंपना चाहती है।
जवाब में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि कांग्रेस को एनडीए सरकार की नीतियों पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। नायडू ने आरोप लगाया कि यूपीए के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने सिर्फ गरीबों के लिए घोषणाएं की और अमीरों का पोषण किया।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और एनडीए सरकार की नातियों पर सवाल उठाया है उससे साफ है कि लोकसभा में एनडीए सरकार के दबदबे का जवाब कांग्रेस अब मोदी सरकार के करीब एक साल के कार्यकाल की कमज़ोर कड़ियों में ढूंढ़ने की कोशिश कर रही है।
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