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उद्धव ठाकरे के हाथ से कैसे निकली शिवसेना? जानें- कौनसी 5 बड़ी गलतियां पड़ी भारी

महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष ने कहा कि चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में शिंदे गुट ही असली शिवसेना है. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद 2018 की जानकारी को ही आधार माना जाएगा.

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उद्धव ठाकरे के हाथ से कैसे निकली शिवसेना? जानें- कौनसी 5 बड़ी गलतियां पड़ी भारी
नई दिल्ली:

महाराष्ट्र विधानसभा (Maharashtra Assembly) के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर (Rahul Narvekar) ने बुधवार को शिंदे गुट के विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग वाली उद्धव ठाकरे गुट की याचिका को खारिज कर दिया. स्पीकर ने कहा कि विधानसभा में शिंदे गुट ही असली शिवसेना है.  विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि चुनाव आयोग के सामने पेश किया गया पार्टी का संविधान ही मान्य होगा. आइए जानते हैं वो कौन से पांच अहम कारण रहे जिसके कारण उद्धव ठाकरे के हाथ शिवसेना चली गयी.  

समय रहते पार्टी संविधान का नहीं हो पाया था पंजीकरण

विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाते हुए इस बात का जिक्र किया कि उद्धव ठाकरे ने समय रहते पार्टी के संविधान को चुनाव आयोग में पंजीकृत नहीं करवाया. इस कारण पार्टी के 1999 के संविधान को ही आधार मानकर फैसला सुनाया जाएगा. गौरतलब है कि शिवसेना में बाल ठाकरे के निधन के बाद साल 2013 और 2018 में संविधान में संशोधन किया गया था लेकिन उसे पंजीकृत चुनाव आयोग में नहीं करवाया गया. 

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि स्पीकर के पास भी पार्टी ने कभी कोई संविधान की कॉपी सबमिट नहीं की. इसलिए असली पार्टी कौन ये तय करने के लिए चुनाव आयोग के पास मौजूद 1999 का संविधान ही योग्य माना जाएगा.

पार्टी संविधान से बड़ा ख़ुद को समझना

शिवसेना के संविधान के विपरित उद्धव ठाकरे खुद को सबसे ऊपर समझने लगे थे. कई मौके ऐसे आए जब उन्होंने किसी को पद से हटाने या बनाने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था. शिवसेना के संविधान के अनुसार किसी भी बड़े फैसले लेने का अधिकार राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पास है लेकिन उद्धव ठाकरे खुद ही कई फैसले ले लेते थे.  राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी नहीं होती थी. 

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ताक़त को न समझना

उद्धव ठाकरे द्वारा अपने दौर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ताक़त को लगातार कम करके रखा गया. कई मौकों पर उन्होंने इसकी बैठक भी नहीं बुलायी. उनकी ये आदत उनके खिलाफ गयी. विधानसभा अध्यक्ष के सामने इस बात को भी शिंदे गुट की तरफ से मजबूती से रखा गया.

21 जून को बिना राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के शिंदे को हटाना

21 जून वो तारीख है जब एकनाथ शिंदे अपने विधायकों को लेकर शिवसेना से बगावत कर ली थी. और विधायकों को लेकर गुजरात चले गए थे. उस दिन उद्धव ठाकरे जो कि उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे के सरकारी आवास पर एक बैठक हुई जिसमें शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटाने का फैसला लिया गया. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने माना कि विधायक दल के नेता को हटाने का फैसला पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बिना बैठक के नहीं ली जा सकती है. अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी का संविधान उद्धव ठाकरे को इसकी इजाजत नहीं देता है. 

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि बालासाहब की वसीयत को पार्टी की वसीयत नहीं माना जा सकता है. सिर्फ ठाकरे को पसंद नही, इसलिए शिंदे को हटा नहीं सकते थे. पार्टी के संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है.

व्हिप जारी करने के अधिकार को नजर अंदाज करना

पांचवा सबसे अहम कारण विधानसभा अध्यक्ष ने माना कि  व्हिप जारी करने के अधिकार का भी उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से नजर अंदाज किया गया.  व्हिप जारी विधानसभा में पार्टी के नेता की तरफ से किया जाता रहा है. लेकिन उद्धव गुट ने यह अधिकार सुरेश प्रभु को दे दिया. किसी भी तरह का बदलाव करने का अधिकार भी पार्टी के विधायक दल के नेता को ही है. पार्टी अध्यक्ष के पास यह अधिकार नहीं है. राहुल नार्वेकर ने उद्धव ठाकरे की इन गलती को भी आधार बनाते हुए अपने फैसले सुनाए.

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