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This Article is From Sep 05, 2015

इस 82 साल की बुज़ुर्ग औरत के मरने पर इसका परिवार शोकग्रस्त क्यों नहीं है?

इस 82 साल की बुज़ुर्ग औरत के मरने पर इसका परिवार शोकग्रस्त क्यों नहीं है?
जयपुर: बिकानेर में 82 साल की बदनी देवी के अंतिम संस्कार पर हज़ारों लोग उमड़ पड़े हैं। ये सभी जैन समाज के लोग हैं जो बदनी देवी को अंतिम विदाई देने आए हैं।

यह बात अलग है कि आने वाले लोगों के लिए यह दिन शोक मनाने का नहीं है क्योंकि वह मानते हैं कि दरअसल बदनी देवी को मुक्ति मिली है। 50 दिन से संथारा उपवास पर बैठी बदनी देवी सिर्फ कुछ चम्मच पानी पीकर सांस ले रहीं थीं।

बदनी देवी अपने तीन बेटे-बहू और अपने पोतों के साथ बिकानेर में रहती थीं। अपने आखिरी दिनों में वह इतनी कमज़ोर हो गई थीं कि बोल भी नहीं पाती थीं।

पचास दिन उपवास करने के बाद बीकानेर की बदनी देवी ने प्राण त्याग दिए। उन्होंने 25 जुलाई को संथारा लेने कि इच्छा जाहिर की थी। परिवार वालों का दावा है कि उन्होंने मना किया लेकिन वे संथारा लेने पर अड़ी रहीं।

जैन समुदाय में संथारा वह प्रथा है जिसमें अन्न-जल त्यागकर इंसान मृत्यु को अपनाता है। माना जाता है कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद संथारा लेकर प्राण त्यागने का यह पहला मामला सामने आया।

संथारा को लेकर विवाद भी हो गया था। सन 2006 में संथारा के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई थी। इस पर राजस्थान हाई कोर्ट ने अगस्त में आदेश दिया था कि संथारा आत्महत्या जैसा है और यह दंडनीय अपराध है।   

जैन समुदाय ने कहा कि यह उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ जैन समुदाय सुप्रीम कोर्ट गया, जहां से अंतरिम आदेश आया कि संथारा जारी रह सकती है जब तक मामले की सुनवाई दुबारा नहीं होती।

गौरतलब है कि हर साल जैन समाज के कुछ ही लोग (सौ से ज्यादा नहीं) अन्न- जल त्यागकर मृत्यु को गले लगाने के लिए इस उपवास को रखते हैं। जो लोग ऐसा करते हैं जैन समुदाय उन्हें काफी सम्मान के साथ देखता है।

लेकिन संथारा के आलोचकों का कहना है कि ये धार्मिक प्रथा काफी पिछड़ी सोच दिखाती है और इसे इच्छामृत्यु पर चलने वाली बहस के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता निखिल सोनी ने संथारा पर प्रतिबंध लगाने को जायज़ ठहराते हुए कहा है कि समुदाय में कई लोग अपने घर के बुजु़र्गों के प्रति लापरवाही को इस प्रथा की आड़ में छुपा देते हैं।

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