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रमजान विशेष : इस्लाम में रोज़ा कितना जरूरी? जानबूझकर छोड़ने वालों के लिए क्या है सज़ा? जानें हर सवालों के जवाब

रमज़ान का महीना मंगलवार (12 मार्च) से शुरू हो चुका है. इस साल ईद उल फितर 10 अप्रैल 2024 को या 11 अप्रैल 2024 को मनाई जाने की उम्मीद है. हालांकि, सटीक तारीख इस्लामिक कैलेंडर के 10वें महीने शव्वाल के चांद दिखने के ऊपर निर्भर है. आइए जानते हैं रमज़ान से जुड़े हर सवालों के जवाब:-

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रमजान विशेष : इस्लाम में रोज़ा कितना जरूरी? जानबूझकर छोड़ने वालों के लिए क्या है सज़ा? जानें हर सवालों के जवाब
नई दिल्ली:

रमज़ान का महीना मंगलवार (12 मार्च) से शुरू हो चुका है. इस्लाम धर्म में रमजान (Ramadan 2024) का महीना सबसे पाक माना जाता है. इस पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा यानी उपवास रखते हैं. यह पूरे महीने रहेगा और 10 अप्रैल 2024 को इसका आखिरी दिन होगा. भारत में चांद दिखाई देने के अगले दिन ईद-उल-फितर (मीठी ईद) मनाई जाएगी. इस साल ईद उल फितर 10 अप्रैल 2024 को या 11 अप्रैल 2024 को मनाई जाने की उम्मीद है. हालांकि, सटीक तारीख इस्लामिक कैलेंडर के 10वें महीने शव्वाल के चांद दिखने के ऊपर निर्भर है.

आइए जानते हैं रोजा रखने का सही तरीका क्या है और इस दरमियान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए:-

रमज़ान का कॉन्सेप्ट कहां से आया?
दिल्ली के कश्मीरी गेट मस्जिद के इमाम मौलाना मोहसिन तकवी ने बताया कि रमज़ान का कॉन्सेप्ट इंसानों का या इतिहास के जरिए नहीं है, बल्कि अल्लाह के ज़रिए हुकुम है. हर मुसलमान का मानना है कि अल्लाह ने इस महीने को इंसान के नफ्स की तरबियत का महीना करार दिया है. इसमें एक महीने का रोज़ा जरूरी होता है. इंसान इन दिनों में अपने हर रोज़ के काम भी करता है और रोज़े भी रखता है. यही इंसान का इम्तिहान है. इसी से इंसान अपने ऊपर कंट्रोल पाने का तरीका सीखता है.

रमज़ान का महीना फिक्स क्यों नहीं है?
इसके जवाब में मौलाना मोहसिन तकवी कहते हैं, "रमज़ान कोई त्योहार नहीं है. ये खुदा की तरफ से हुकुम है, जिस पर इंसान को अमल करना होता है. इस्लामिक कैलेंडर के महीने अगर सोलर कैलेंडर के हिसाब से तय कर दिए गए होते, तो उसके हिसाब से कई देशों में रमज़ान हमेशा सर्दियों में आता. जबकि भारत जैसे कुछ देशों में रमज़ान का पाक महीना गर्मी के मौसम में पड़ता. ऐसा न होते हुए पूरी दुनिया में 33 साल के अंदर हर मौसम के अंदर रमज़ान का महीना आता है. 

रोज़े में किस किस को छूट है?
मौलाना मोहसिन तकवी कहते हैं, "रोज़ा हर किसी को रखना पड़ेगा, जो रोज़ा रख सकता है. जिसके अंदर इतनी शक्ति है कि वो बिना कुछ खाए-पिए सुबह से शाम तक रह सकता है. ऐसे लोगों को रोज़ा रखना चाहिए. अगर कोई बीमार है, या बच्चे या कोई बुजुर्ग जो रोज़ा न रख सकते हो तो उनके लिए आजादी है कि वो रोज़ा न रखें. लेकिन तब भी पेट भरकर खाना उनके लिए मकरूह है. 

जो लोग जानबूझ कर रोज़ा छोड़ रहे हैं, उनके लिए इस्लाम में क्या हुकुम है?
मौलाना मोहसिन तकवी कहते हैं, "जान-बूझकर रोज़ा छोड़ना या रोज़े को बातिल करने पर उस इंसान को कफ्फारा देना होगा. जिसमें उसे 60 रोज़े रखने पड़ेंगे. इसमें भी 31 रोज़े लगातार रखने होंगे या 60 फकीरों को खाना खिलाना होगा. इससे अच्छा है कि इंसान अगर सेहतमंद है, तो रोज़ा जरूर रखें."

रोज़े में हमें क्या-क्या करना चाहिए? क्या नहीं करना चाहिए?
मौलाना मोहसिन तकवी बताते हैं, "रोज़ा इबादत है. इसलिए इसमें ज्यादातर वक्त इबादत में गुजरना चाहिए. जैसे कुरान-ए-मजीद पढ़ें. मजहब की किताब पढ़ें. नेक बातें कहिए और सुनिए. दुआएं पढ़ते रहें, जिससे खुदा से राब्ता (रिश्ता) करीबी बना रहे.

सुबह से शाम तक ऑफिस या रोज़गार में रहने वाले किस तरह रोज़ा रखें?
उन्होंने कहा, "ऑफिस जाने से कोई परेशानी नहीं होती. रोज़े के लिए तो ये तक कहा गया है कि रोज़े में सांस लेना भी इबादत है. रोज़गार कमाना भी वाजिब है और रोज़ा भी."

इस रमजान के महीने में कौन कौन सी मखसूस तारीखें हैं? 
इसके जवाब में मौलाना मोहसिन तकवी कहते हैं, "माहे रमजान ए मुबारक में कई खुशी की तारीख है. जैसे 15 रमजान को नवासे ए रसूल ए खुदा (सवअ) इमाम हसन अस की विलादत का दिन है. वहीं, 19 रमज़ान को रसूल ए खुदा के चाचा जात भाई और दामाद हजरत अली की मस्जिद ए कूफा के अंदर नमाज पढ़ते हुए तलवार अब्दुर रहमान नाम के व्यक्ति ने मार दी थी. 21 रमजान को उनकी शहादत हो गई थी. वहीं, इस महीने में शब ए कद्र की रात भी है, जो बहुत ही अफ़ज़ल (पवित्र) है...जिसमें पूरी रात इबादत की जाती है.

ईद उल फितर क्या है? क्या है मीठी ईद और फीकी ईद?
मौलाना मोहसिन तकवी कहते हैं, "जब रमजान का महीना पूरा हो जाता है, तो उसके बाद ईद आती है. जिसे ईद उल फितर कहा जाता है. इसे ही आम जुबान में मीठी ईद बोलते हैं, क्योंकि इस दिन सेवइयां बनती है. इस दिन फितरा निकाला जाता है. फितरा यानी गरीब की मदद करना. हर मुसलमान पर तीन किलो गेहूं निकालना वाजिब होता है, जिसे गरीब लोगों को दिया जाता है. जिससे गरीबों की गुरबत का एहसास इंसान के दिलों में हो. इसी के लिए फितरा निकाला जाता है.

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