राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया है। इसके हत्यारों को राहत न पहुंचाते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि हत्यारों की रिहाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा है कि सजा माफ़ी का अधिकार राज्यों को नहीं है। वहीं, कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि केन्द्र को ही सज़ा माफ़ी का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि उम्रक़ैद का मतलब ताउम्र जेल में रहना ही होता है।
राजीव गांधी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला 258 पेज का है। संवैधानिक पीठ ने कहा है अगर फांसी को उम्र कैद में तब्दील करने के वक्त अगर कोर्ट ये शर्त कोर्ट लगा देता है कि इसकी रिहाई नहीं हो सकती तो रिहाई नहीं होगी। उस समय राज्य अपने अधिकारों का प्रयोग कर दोषी को रिहा नहीं कर सकता।
इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के एक बार माफ़ी के बाद यानी दोषी को (फांसी से उम्र कैद की सज़ा में बदलते है) तो उसके बाद भी अगर राज्य सरकार या केंद्र सरकार चाहे तो अपने अधिकार का प्रयोग कर उम्र कैद की सजा पाये दोषी को रिहा कर सकती है (लेकिन तब जब कोर्ट ने कोई शर्त न लगाई हो)। मगर, संवैधानिक पीठ ने यह भी साफ़ कर दिया कि जिस मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी ने जांच की, उस मामले में उम्र कैद की सज़ा पाये दोषी को रिहा करने से पहले केंद्र से परामर्श ही नहीं सहमति भी जरूरी है।
संवैधानिक पीठ ने कहा कि अगर दोषी को सज़ा केंद्र के कानून के तहत किया है तो रिहाई का फैसला बिना केंद्र की सहमति के नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी अर्जी के राज्य सरकार स्वतः संज्ञान लेकर उम्र कैद की सज़ा पाये दोषी को रिहा नहीं कर सकती। दोषी के तरफ से अर्जी आने के बाद ही राज्य सरकार कोई फैसला ले सकती है।
क्या था पूरा मामला...
दरअसल राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा से राहत पाने वाले सभी दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
राज्य सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा से राहत पाने वाले सभी दोषियों संथन, मुरुगन, पेरारीवलन और उम्रकैद की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन, रॉबर्ट पायस, रविचंद्रन और जयकुमार को रिहा करने का आदेश दिया था। लेकिन, इसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि मामले की जांच सीबीआई ने की थी और इस केस में केंद्रीय कानून के तहत सजा सुनाई गई। ऐसे में रिहा करने का अधिकार केंद्र का है।
सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता सरकार के फैसले पर रोक लगाकर मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था। कोर्ट ने सारे राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और फैसला आने तक उम्रकैद के कैदियों को रिहा न करने के आदेश दिए थे।
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