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This Article is From Jul 17, 2020

राजस्थान HC में पायलट और विधायकों की याचिका, स्पीकर का नोटिस रद्द किए जाने की मांग

Rajasthan Crisis: राजस्थान का सियासी संग्राम अब कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है. राजस्थान हाईकोर्ट में पायलट खेमे द्वारा डाली गई याचिका पर सुनवाई होनी है.

राजस्थान HC में पायलट और विधायकों की याचिका, स्पीकर का नोटिस रद्द किए जाने की मांग
पायलट और विधायकों की याचिका में मांग की गई कि स्पीकर के नोटिस को रद्द किया जाए.
जयपुर:

Rajasthan Crisis: राजस्थान का सियासी संग्राम अब कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है. राजस्थान हाईकोर्ट में पायलट खेमे द्वारा डाली गई याचिका पर सुनवाई होनी है. इस याचिका में 4 मांगे मुख्य तौर पर की गईं. पायलट और विधायकों की याचिका में मांग की गई कि स्पीकर के नोटिस को रद्द किया जाए. साथ ही 10 वीं अनुसूची के क्लॉज 2 (1) (a) को असंवैधानिक घोषित किया जाए इसके अलावा कोर्ट ये घोषित करे कि वो कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ही सदन के सदस्य हैं और अदालत ये घोषित करे कि याचिकाकर्ताओं का इस कदम के चलते उन्हें विधानसभा से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. 

बता दें कि विधानसभा स्पीकर की तरफ से भेजे गए नोटिस के बाद सचिन पायलट औक विधायकों ने कोर्ट का रुख किया था. इस नोटिस में स्पीकर ने कहा कि  विधायक दल की बैठक में शामिल ना होने की वजह बताएं और उन्हें अयोग्य क्यों ना घोषित किया जाए. याचिका में कहा गया कि उन्होंने न कोई बयान दिया, न ही ऐसा कोई काम किया जिससे ये लगे कि वो कांग्रेस पार्टी छोड़ना चाहते हैं. विधायकों के अनुसार उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी के भीतर नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन जिस तरह से अयोग्य करार देने की प्रक्रिया शुरू की गई उससे साफ है कि उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की गई है. जोकि उनके मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. 

याचिका के अनुसार पार्टी नेतृत्व के खिलाफ असंतोष या यहां तक ​​कि मोहभंग की अभिव्यक्ति को भारत के संविधान की 10 वीं अनुसूची के खंड 2 (1) (ए) के तहत आने वाला आचरण नहीं माना जा सकता है. याचिका में कहा गया है कि अगर विचारों और राय की अभिव्यक्ति, चाहे कितने भी जोरदार शब्दों में हो, को क्लॉज 2 (1) (ए) का एक हिस्सा माना जा रहा है तो उक्त प्रावधान को जांच के दायरे में नहीं ला सकते और इसे सामान्य रूप से भारत के संविधान की मूल संरचना के विपरीत घोषित किया जाना चाहिए. 

याचिका में कहा गया है कि ये कदम  विशेष रूप से अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने की आजादी  के अधिकार के खिलाफ है इसलिए नोटिस को रद्द किया जाए. याचिका में कहा गया कि चूंकि स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराने के लिए नोटिसों का आधार कुछ विधायकों द्वारा नेतृत्व के प्रति असंतोष के भाव के कारण है इसलिए यह आवश्यक है कि उच्च न्यायालय 10 वीं अनुसूची के तहत लगाए गए प्रावधान की वैधता की जांच करे. अयोग्य ठहराए जाने के नोटिसों को रद्द करने के अलावा संशोधित याचिका में 10 वीअनुसूची के क्लॉज 2 (1) (a) को असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की गई है, ये कहते हुए कि  यह बोलने की आजादी के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. 

सचिन पायलट व 18 विधायकों ने 10 वीं अनुसूची के क्लॉज  2 के 1 (A) की संवैधानिकता को चुनौती दी है. इस क्लॉज में कहा गया है कि किसी भी सदस्य को सदन से अयोग्य करार दिया जा सकता है अगर उसने स्वैच्छिक तौर पर राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ दी हो.हालांकि सुप्रीम कोर्ट का पांच जजों का संविधान पीठ 1992 में एक फैसले में पूरी दसवीं अनुसूची को बरकरार रख चुका है. दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत एक राजनीतिक दल को अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का संवैधानिक अधिकार है. हम पार्टी के सदस्य हैं और कभी भी किसी ऐसी चीज में लिप्त नहीं हैं जो गहलोत-सरकार को गिराए. 

विधायकों की तरफ से लगाई गई याचिका में कहा गया कि हम पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करना जारी रखे हुए हैं और किसी भी अन्य पार्टी में नहीं जाना चाहते हैं, जिससे सरकार में कमी हो जिसका वे हिस्सा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम "आशंका" व्यक्त करते हैं कि स्पीकर अशोक गहलोत के दबाव और प्रभाव में उन्हें अयोग्य ठहराएंगे. हम जारी किए गए नोटिसों की वैधता को चुनौती देते हैं. यह सरकार के नेतृत्व को बदलने के लिए उनके असंतोष के लोकतांत्रिक अधिकार को छीनने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि पार्टी की बैठकों में भाग लेने में विफलता संविधान की दसवीं अनुसूचि के पैरा 2 (ए) या 2 (बी) के तहत अयोग्य घोषित करने का आधार नहीं है. 

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